जेठ में पानी पानी हुए किसान, आषाढ़ में हो गए बे-पानी, सावन पर टिकी निगाहें, सूखने लगे रोपे गए धान

जेठ माह में जब लू चलने का समय था तब झूम कर बादल बरसे और लोग पानी पानी हो गए। एक पखवाड़े तक क्षेत्र के लोग बारिश से परेशान रहे। मूंग की फसल के साथ धान के बिछड़े डूब कर बर्बाद हो गए। तब किसानों द्वारा दुबारा डाला गया।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 12:13 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 12:13 PM (IST)
जेठ में पानी पानी हुए किसान, आषाढ़ में हो गए बे-पानी, सावन पर टिकी निगाहें, सूखने लगे रोपे गए धान
धान की फसल लगे खेतों में आने लगी दरारें। जागरण।

संवाद सहयोगी, टिकारी (गया)। जेठ माह में जब लू चलने का समय था तब झूम कर बादल बरसे और लोग पानी पानी हो गए। एक पखवाड़े तक क्षेत्र के लोग बारिश से परेशान रहे। मूंग की फसल के साथ धान के बिछड़े डूब कर बर्बाद हो गए। तब किसानों द्वारा दुबारा डाला गया, बिचड़ा अब रोपनी के लायक हो गया है तो पानी की किल्लत हो गयी। आषाढ़ माह में आसमान से पानी की जगह आग बरसती रही।

मौसम का तल्ख मिजाज देख किसानों का कलेजा दहल रहा है। खेतों में धूल उड़ रही है और आसमान में चिंगारी। धान रोपनी के उत्तम पुनर्वसु नक्षत्र समाप्त होने के बाद पुख चल रही है। यह भी धान की रोपनी के लिए उत्तम नक्षत्र माना जाता है। रोहिणी नक्षत्र में जिन किसानों ने धान का बिचड़ा डाला था किसी तरह मोटरपम्प या डीजल पम्प से धान की रोपनी कर ली। लेकिन अब उसे जीवित रखने की चिंता किसानों को सताने लगी है। किसानों को उम्मीद थी की आषाढ़ माह में मौसम खेती के अनुकूल रहेगा। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं।

मानसून की बेरुखी ने किसानों की नींद हराम कर दिया है। खेत में रोपे गए धान के पौधे सूखने लगे हैं। कहीं कहीं खेतों में दरारें फटनी लगी है। खरीफ फसल के प्रारंभिक दौर में ही यह हाल है तो आगे चलकर क्या होगा यह सोचकर किसान परेशान हैं। मौसम की बेरुखी के साथ प्रशासन भी मौन है। जंहा नहरों की सुविधा है तो उसमें पानी नही हैं। किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं।

कभी आसमान में काले बादल दिखाई देते है तो लगता है बारिश होगी लेकिन चंद मिनटों में ही आसमान साफ हो जाता है। किसान हाथ मलते रह जाते हैं। रोपनी के बाद अगर धान की फसल सूखती है तो किसानों को काफी नुकसान होगा।

जिले का धान का कटोरा कहे जाने वाले टिकारी में 10 हजार 460 हेक्टेयर में धान रोपनी के आच्छादन का लक्ष्य रखा गया है। कृषि विभाग के दावे के अनुसार अब तक क्षेत्र में 53 प्रतिशत यानी 5567 हेक्टेयर भूमि में रोपनी हो चुकी है। गौर करने वाली बात यह है कि जुलाई माह में 294.5 मिमी बारिश की जगह अबतक मात्र 41.4 मिमी ही बारिश हुई है। यानी 53 प्रतिशत रोपनी में बारिश की भूमिका न के बराबर है। अर्थार्त खेतों में पानी के लिए किसान मोटरपम्प या डीजल पम्प की सहायता ले रहे हैं।

इधर, उच्च स्तरीय सोन कैनाल में टिकारी डिवीजन को 136 आरडी पर 900 क्यूसेक पानी की आवश्यकता है लेकिन नही मिल रही है। कुर्था डिवीजन को कम से कम 150 क्यूसेक पानी की आवश्यकता है। 252 आरडी पर 365 क्यूसेक पानी की जरूरत है लेकिन 90 क्यूसेक ही मिल रही है। इसमें रतनी वितरणी में 48 और फरीदपुर में 42 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। सिंचाई विभाग के अनुसार 252 आरडी पर कम से कम 200-250 क्यूसेक पानी मिलने पर ही नीचले इलाके तक पानी पहुंचाया जा सकता है। टिकारी डिवीजन से 4300 में से अब तक 1505 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होने का दावा किया गया है। कुर्था डिविजन से टिकारी की 2330 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है।

बहरहाल, परंपरागत सिंचाई साधनों की बदहाली क्षेत्र के किसानों की तबाही और कंगाली का कारण बना है। शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को कंक्रीट वाला विकास योजना तो दिखता है। लेकिन, जिससे आम से लेकर खास तक को निवाला मिलता है। उसके संसाधनों का विकास कैसे होगाए कभी सोंचने की फुर्सत इनमें से किसी को नहीं मिलती।

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