सुवरन नदी की जमीन पर दोनों ओर कब्जा जमा रहे लोग, नाले में तब्दील होती जा रही है यह पहाड़ी नदी
सरकार एक तरफ जल संचय के लिए प्रखंड क्षेत्र के तालाबों का जीर्णोद्धार कराने का प्रयास कर रही है तो दूसरी ओर कैमूर की पहाड़ी से निकली सुवरन नदी का अस्तित्व ही मिटाने का प्रयास किया जा रहा है।
जेएनएन, गया। सरकार एक तरफ जल संचय के लिए कई योजनाएं चला रही है। प्रखंड क्षेत्र में तालाब-पईन की उड़ाही और जीर्णोद्धार का प्रयास किया जा रहा है। इस क्रम में योजना बनाकर तालाबों को अतिक्रमणमुक्त भी कराया जा रहा है। लेकिन कैमूर की पहाड़ी से निकली सुवरन नदी की जमीन को ही अतिक्रमित किया जा रहा है। नदी के दोनों तरफ के भूस्वामी भूमि का अतिक्रमण कर रहे हैं। अतिक्रमण का सिलसिला नित जारी है। इससे नदी के अस्तित्व पर खतरा बढ़ गया है।
बुजुर्गों ने बताया कि आज से दो दशक पूर्व नदी की चौड़ाई और गहराई काफी थी। लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि नदी की गहराई के साथ-साथ नदी की चौड़ाई भी इतनी कम हो गई है कि कहीं'-कहीं तो नदी नाला के रूप में तब्दील हो गई है। कहा कि कई जगह नदी को भर कर किसान सब्जी की खेती भी करना शुरू कर दिए हैं। लोगों का कहना है कि खासकर गर्मी के समय जब नदी में पानी कम होता है तब लोग अपने खेत को नदी की ओर बढ़ाना शुरू कर देते हैं। लेकिन इस ओर सरकारी अमला का ध्यान ही नहीं है।
लोगों का कहना है कि सुवरन नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाने से जल संचय के अलावा मानव जीवन पर कई तरह का खतरा उत्पन्न हो सकता है। पहले लोग नदी में स्नान करते थे। धोबी समुदाय के लोग नदी में कपड़े धोते थे। लेकिन अब नदी में एक तो पानी काफी कम हो गया है ऊपर से यह गंदा भी हो गया है। इससे लोग अब नदी के पानी का उपयोग नहीं कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर स्थानीय प्रशासन का ध्यान सुवरन नदी पर नहीं पड़ा तो नदी का अस्तित्व जल्द ही समाप्त हो जाएगा। एक तरह से यह सरकार के जलसंचय योजना पर भी सवाल खड़े करता है।