साहित्य समाज एवं समय का दर्पण

जागरण संवाददाता, गया: साहित्य महापरिषद द्वारा अशोक विहार घुघरीटाड़ स्थित कार्यालय कक्ष में हुई।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 09:51 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 09:51 PM (IST)
साहित्य समाज एवं समय का दर्पण
साहित्य समाज एवं समय का दर्पण

जागरण संवाददाता, गया: साहित्य महापरिषद द्वारा अशोक विहार घुघरीटाड़ स्थित कार्यालय कक्ष में सोमवार को साहित्यिक कार्यकम का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. रामसिंहासन सिंह ने की। सर्वप्रथम आज के संदर्भ में हिन्दी साहित्य का स्वरूप विषय पर बोलते हुए डॉ. रामसिंहासन सिंह ने कहा कि साहित्य समाज एवं समय का दर्पण होता है और उसे होना भी चाहिए। साथ ही उसे उत्पन्न समस्याओं का समाधान भी बनना होगा। तभी इसे हम लोक और समाज से जोड़ सकेंगे। साहित्य का सौंदर्य समय के साथ तेजी से बदल रहा है। जिसे बदलना भी चाहिए नहीं तो यह कुम्हलाने लगेगा। आज के साहित्यकारों का यह कर्तव्य है कि साहित्य की आत्मा को अक्षुण्ण रखें। दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी की शुरूआत करते हुए डॉ. अब्दुल मन्नान अंसारी ने कहा, वतन पर मिटने की ख्वाहिश लिए हैं मुद्दत से, कहो जमाने से बेकार हमें आजमाना है। राजीव रंजन ने इन सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे सोने वालों की व्यथा अपनी कविता सर्द रात का रावण में यूं रखी, बहुत सुना गुणगान तेरे नाम का, जब जीत ही जाएगा आज रावण तो बता राम ए तू किस काम का। खालिक हुसैन परदेशी ने कहा सर यूं तो कर लिए हैं कई मारके मगर, दानिस्ता हारते हैं तेरी दोस्ती से हम। गजेन्द्र लाल अधीर ने कहा जिंदगी जीना अगर तो प्रेम करना सीख लो। मान की यदि चाह तुमको मान देना सीख लो। डॉ. सुल्तान अहमद ने कहा मैं एक नाचीज हूं अहमद किसी काबिल नहीं हूं, कसौटी पर मगर सोना समझकर सब परखते हैं। एमए फातमी ने कहा करना है हर हाल में स्वागत, अद्भुत है सृष्टा की विरासत। कुमार कांत ने कहा सुनहरे ये सपने मेरे तुम्हें प्रतिपल बुलाते हैं ऋचाओं की तरह पावन, सुरीले गीत गाते हैं। इसके अलावा नौशाद सदफ, धनश्याम अवस्थी, नीरज सहित अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

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