सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर-कर्मी लापरवाह, सक्रिय हैं दलाल, तो कैसे पूरा हो संस्थागत प्रसव का लक्ष्य
औरंगाबाद के सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव का लक्ष्य किसी भी वर्ष पूर्ण नहीं हो रहा। यहां तक कि लक्ष्य का आधा भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। इसके पीछे सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी के साथ डॉक्टर-कर्मियों की लापरवाही मूल वजह है।
शुभम कुमार सिंह, औरंगाबाद। सुरक्षित प्रसव के लिए सरकारी अस्पतालों में पहुंचने को लेकर गर्भवती महिलाओं को प्रेरित करने के लिए योजना बनाई गई। प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी अस्पताल में प्रसव कराने वाली महिलाओं को आर्थिक मदद भी दी जाने लगी। लेकिन इसके बावजूद संस्थागत प्रसव का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। जनसंख्या नियंत्रण के साथ ही मातृ-शिशु दर को कम करने के लिए सुरक्षित प्रसव के उद्देश्य से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने पर काफी पैसा खर्च किया गया। गांवों में आशा की नियुक्ति की गई। इसके बावजूद लक्ष्य के आसपास भी नहीं पहुंचना कई सवाल खड़े करता है।
चिकित्सक, कर्मियों की लापरवाही और दलालों की सक्रियता
जिले में सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल, तीन रेफरल अस्पताल, पांच सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, 11 प्राथमिक स्वास्थ केंद्र, 65 अतिरिक्त स्वास्थ उपकेंद्र एवं 285 स्वास्थ उपकेंद्र है। कहने को तो इतनी संख्या है लेकिन इन सभी में संसाधन की घोर कमी है। चिकित्सक एवं नर्स की कमी है। इसके अलावा चिकित्सकों व कर्मियों की उदासीनता, संसाधन के दुरुपयोग और दलालों की सक्रियता के कारण लक्ष्य पाना इस वर्ष ही नहीं, अन्य वर्षों में भी असंभव सा रहेगा। यहां लक्ष्य और उसको पाने के लिए की जा रही कोशिश का मामला उल्टा है। लक्ष्य हर साल बढ़ता जा रहा है और उसे पाना और कठिन बनता जा रहा है। परिवार नियोजन, संस्थागत प्रसव से लेकर सीजेरियन आपरेशन तक के लक्ष्य दिए गए हैं। टीकाकरण से लेकर ओपीडी तक में मरीजों को देखने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन लगता ही नहीं कि लक्ष्य को पाने की कोशिश विभाग कर रहा है।
किसी भी वर्ष लक्ष्य के आसपास भ्ाी नहीं पहुंच रहे
आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष वर्ष 2016 से 2017 में पूरे जिले में 62 हजार 30 महिलाओं के संस्थागत प्रसव का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन केवल 31 हजार 349 महिलाओं का प्रसव हो सका। यानी लक्ष्य का महज 51 फीसद। वर्ष 2017 से 2018 में 63 हजार 687 महिलाओं के लक्ष्य की तुलना में 33 हजार 121 (52 फीसद) महिलाओं का ही प्रसव हो सका। वर्ष 2018-19 की स्थिति भी अत्यंत दयनीय रही। इस वर्ष 40.6 प्रतिशत लक्ष्य ही पूरा हो सका। वर्ष 2020 में जनवरी से लेकर दिसंबर तक 83 हजार 616 प्रसव कराने का लक्ष्य निर्धारित था परंतु इस बार भी 38 हजार 472 महिलाओं का ही प्रसव सरकारी अस्पतालों में हो सका।
मरीज को मिलता है रेफर का पुर्जा, कैसे पूरा होगा लक्ष्य
संस्थागत प्रसव का लक्ष्य पूरा न होना एक बड़ी समस्या है। लक्ष्य न पूरा होने का मुख्य कारण चिकित्सक की लापरवाही है। मरीज को अस्पताल में आने के साथ ही रेफर का पुर्जा थमा दिया जाता है। चिकित्सक प्रसव कराने में कतराते हैं। हालात यह होता है कि मरीज के स्वजन निजी क्लीनिक का रास्ता देखते हैं। निजी क्लीनिक में मरीजों का दोहन किया जाता है। पैसों के चक्कर में वहां आपरेशन कर प्रसव कराया जाता है। निजी क्लीनिक में प्रसव के लिए 25 से 30 हजार रुपये ऐंठ लिए जाते हैं।
रात में सोकर वेतन लेती है महिला चिकित्सक
जिले के सभी अस्पतालों में महिलाओं का प्रसव नर्सें कराती हैं। चिकित्सक के नहीं होने के कारण मरीज के स्वजन नर्स से प्रसव कराने में डर जाते हैं इस कारण वे निजी क्लीनिक में चले जाते हैं। जिले के सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल, रेफरल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ केंद्र हो या स्वास्थ उपकेंद्र सभी जगह नर्स ही प्रसव कराती हैं। बता दें कि सदर अस्पताल में आठ महिला चिकित्सक कार्यरत हैं परंतु एक भी रात में ड्यूटी नहीं करती हैं। सुरक्षा का हवाला देती हैं। विभाग से सुरक्षा की मांग करती हैं। यह सोचने वाली विषय है कि वे अपने क्लीनिक पर कौन सी सुरक्षा लेकर मरीज का इलाज करती हैं। महिला चिकित्सक अपने घर में सोकर वेतन ले रही हैं। यह सब देखते हुए भी विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता। इससे साफ स्पष्ट हो रहा है कि स्वास्थ विभाग महिलाओं एवं होने वाले शिशु के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा है। प्रसव के दौरान जब स्थिति अनियंत्रित होती है तो आनन-फानन में महिला चिकित्सक को फोन करना शुरू कर दिया जाता है। चिकित्सक के आते-आते कई बड़ी घटनाएं घट जाती है।
सरकारी अस्पतालों में सक्रिय हैं दलाल
सरकारी अस्पतालों में दलाल सक्रिय रहते हैं। अस्पतालों में कई रैकेट सक्रिय हैं। दूर-दराज, गांव-देहात व कम पढ़े लिखे मरीजों को बरगलाकर शहर एवं प्रखंड के निजी क्लीनिक में भेज देते हैं। इसके एवज में प्राइवेट अस्पताल एवं नर्सिंग होम के चिकित्सक दलालों को मोटा कमिशन देते हैं। गड़बड़ झाला में सरकारी अस्पतालों के कर्मचारी, आशा एवं कुछ चिकित्सक भी सक्रिय हैं। माना जाता है कि अस्पतालों में सक्रिय दलाल पहले तो खुद मरीज व उनके परिजन को बरगलाते हैं। झांसे में नहीं आने पर चिकित्सकों की मिली भगत से साजिश को सफल बनाने का प्रयास करते हैं। मरीजों को अस्पताल पहुंचते ही उन्हें समझाने का प्रयास किया जाता है कि यहां ठीक इलाज नहीं किया जाता है।
इधर सिविल सर्जन डॉ. अकरम अली कहते हैं कि संस्थागत प्रसव के प्रति लोगों को जागरुकता की कमी है। वे बेवजह निजी क्लीनिक में चले जाते हैं। बहुत सारी महिलाओं का प्रसव घर पर ही हो जाता है। आशा के माध्यम से जागरुकता फैलाई जा रही है। सरकार द्वारा तमाम योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। सभी सरकारी अस्पताल में संस्थागत प्रसव का बेहतर प्रबंध किया गया है।