लुधियाना में पराली प्रबंधन का प्रशिक्षण लेंगे रोहतास के धर्मेंद्र, बिहार से 20 कृषि वैज्ञानिकों का हुआ चयन

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो बायोचार तकनीक काफी आसान व सस्ता है। बायो फर्टिलाइजर न केवल मिट्टी को स्वस्थ रख इसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाएगा बल्कि इसके उपयोग से किसानों का उत्पादन दो गुना से भी अधिक बढ़ सकता है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 03:22 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 03:22 PM (IST)
लुधियाना में पराली प्रबंधन का प्रशिक्षण लेंगे रोहतास के धर्मेंद्र, बिहार से 20 कृषि वैज्ञानिकों का हुआ चयन
पराली प्रबंधन का प्रशिक्षण लेंगे बिहार के किसान। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

जागरण संवाददाता, सासाराम। पराली जलाने से जहां खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट होने के साथ पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। वहीं इसका कुशल प्रबंधन खेतों में सोना उगलने की कहावत को चरितार्थ कर सकता है। इस पराली के माध्यम से बायोचार तकनीक विकसित कर खेतों में उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। बायोचार तकनीक के माध्यम से पराली उच्च तापमान पर गलाकर चारकोल का निर्माण किया जाएगा। इसी चारकोल से बायो फर्टिलाइजर बनाया जाएगा।पराली प्रबंधन का प्रशिक्षण लेने के लिए कृषि विभाग ने रोहतास जिला के करगहर धर्मेंद्र का चयन पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना के लिए किया है। इनके साथ राज्य भर से 20 कृषि वैज्ञानिक, तकनीकी के जानकार व कृषि क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वाले लोगों को चयनित किया गया है। प्रशिक्षण 27 से 30 सितंबर तक चलेगा। प्रशिक्षण लेने के बाद जिले में बायोचार तकनीक को किसानों तक पहुंचाने की जवाबदेही इनकी होगी।

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो बायोचार तकनीक काफी आसान व सस्ता है। बायो फर्टिलाइजर न केवल मिट्टी को स्वस्थ रख इसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाएगा बल्कि इसके उपयोग से किसानों का उत्पादन दो गुना से भी अधिक बढ़ सकता है। धर्मेंद्र कुमार बताते हैं कि खेती में बायोचार यहां किसानों की तकदीर बदल सकती है। फसल अवशेष पराली को बायोचार में तब्दील कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जाएगी। धर्मेंद्र के अनुसार जिस प्रकार लकड़ी को जलाकर कोयला बनाया जाता है उसी प्रकार फसल अवशेष कोउच्च तापमान पर गलाकर उसे कोयले का रूप दिया जाता है। तैयार इस कोयले को किसी चूल्हे में नहीं जलाया जाता, बल्कि इसका प्रयोग लंबे समय तक खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए मिट्टी में दबा दिया जाता है।

मिट्टी में इस कोयले को मिला देने से उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। इससे जल धारण क्षमता भी बढ़ जाती है। नुकसानदेह गैस का उत्सर्जन भी कम होता है तथा लंबे समय तक कार्बन की मात्रा को स्थिर की जाएगी। बताया कि इस प्रशिक्षण के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा उन्हें पत्र प्राप्त हुआ है। जिसमें 27 से 30 सितंबर तक पंजाब विश्वविद्यालय लुधियाना में प्रशिक्षण लेने के लिए चयनित किया गया है। इसमें राज्य भरे 20 लोगों को चयनित किया गया है। वहीं रोहतास जिला से उनके अलावा अशोक कुमार, कुमार प्रेमचंद, भीखारी राय का भी चयन हुआ है। ज्ञातव्य हो कि इसके पहले धर्मेंद्र उन्नत खेती की तकनीक के बारे में आइआइटी खडग़पुर से प्रशिक्षण ले चुके हैं।

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