सीता की बहू और बेटी के साथ दो ननद ने जब किया ऐसा तो देखते रह गए गांव के लोग, जानकर आप भी कहेंगे-शाबाश
मोक्षधाम गया की भूमि पर महिलाओं ने समाज की पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए मिसाल पेश की है। बेटी और बहू एवं दो ननदों ने मिलकर सीता देवी की अर्थी को न सिर्फ कंधा दिया बल्कि उसे मोक्षधाम तक पहुंचाया भी।
संवाद सूत्र, परैया (गया)। मोक्षधाम की भूमि परंपरा के निर्वहन के साथ नई परंपरा बनाने में भी आगे रही है। कुछ ऐसा ही गया के परैया प्रखंड की बगाही पंचायत के इटवां गांव में हुआ। यहां सीता देवी की बेटी और बहू के साथ ही उनकी दो ननदों ने उनकी अर्थी को न केवल कंधा दिया बल्कि श्मशान घाट तक पहुंचाया भी। पुरुष प्रधान समाज में ऐसा कदम उठाने का निर्णय घर के पुरुष का ही था। गांव के लोगों का कहना है कि बदलाव तो होना ही चाहिए।
बड़ी संख्या में गांव के लोग हुए अंत्येष्टि में शामिल
राधे यादव की पत्नी सीता देवी का देहावसान बुधवार को हो गया। जब अर्थी उठने की बारी आई तो राधे यादव ने अपनी बेटी और बहू को बुलाया। कहा कि वे अर्थी को उठाएं। यह सुनकर सभी हैरान रह गए। इसके बाद विवाहिता पुत्री रुपा कुमारी, मंझली बहू प्रीति कुमारी आगे बढ़ी तो दो ननद दौरन देवी और मानती देवी ने भी अर्थी उठाई। चार महिलाओं के कंधे पर यह शवयात्रा निकली। गांव के समीप ही मोरहर नदी के मनियारा घाट पर अंत्येष्टि की गई। महिला के तीन पुत्र सुनील कुमार, सुशील कुमार और सनी कुमार भी शवयात्रा में शामिल थे। मुखाग्नि पति राधे यादव ने दी।
पहले भी परिवार में हो चुका है ऐसा
मृतका के ससुर बद्री यादव ने बताया कि परंपरा बदलने का काम पहले भी किए थे। बद्री यादव ने बताया कि उनके भतीजा जिला परिषद सदस्य राघवेंद्र नारायण यादव के माता-पिता की अर्थी को घर की महिलाएं कंधा दे चुकी हैं। उसी को देखते हुए ऐसा किया गया है। उनका कहना है कि माता-पिता पर जितना हक पुरुष का होता है उतना ही महिला का भी। जब हर जगह बेटे-बेटी में बराबरी की बात की जाती तो फिर यहां क्यों नहीं। महिलाओं के श्मशान में जाने पर रोक क्यों होनी चाहिए। परंपरा बदलनी ही चाहिए।