इंद्रपुरी जलाशय का निर्माण अधर में, चार दशक से किसानों को इंतजार; झारखंड की आपत्ति विलंब का कारण
मुख्यमंत्री रहे जगरनाथ मिश्र ने शिलान्यास सोन के उस पर एकीकृत बिहार के पलामू जिले के कदवन में 1989 में कर दिया। उस समय के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने इसके प्रारम्भिक कार्य के लिए 35 करोड़ की राशि भी स्वीकृत दी थी।
संवाद सहयोगी, डेहरी ऑनसोन (सासाराम)। सोन नहर प्रणाली को जीवंत रखने को लेकर सोन नदी पर बिहार में जलाशय निर्माण की परिकल्पना 1973 में बाणसागर समझौता के समय किया गया था। 1989 में यहां के सांसद रहे राम अवधेश सिंह की पहल पर इंद्रपुरी जलाशय परियोजना (पूर्ववर्ती नाम कदवन जलाशय) की स्वीकृति मिली।
उस समय के मुख्यमंत्री रहे जगरनाथ मिश्र ने शिलान्यास सोन के उस पर एकीकृत बिहार के पलामू जिले के कदवन में 1989 में कर दिया। उस समय के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने इसके प्रारम्भिक कार्य के लिए 35 करोड़ की राशि भी स्वीकृत दी थी। दोनों तरफ यहां सिचाई विभाग के मुख्य अभियंता व डाल्टेनगंज में इसके कार्यालय भी खुल गए। दोनों जगह कार्यालय खुलने के बाद कोई खास प्रगति नहीं दिखी। एनडीए सरकार ने इसके लिए पहल की। इसमें यूपी सरकार से सहमति मिल गई है। 12 हजार करोड़ लागत से बनने वाला इस जलाशय में झारखण्ड ने पेच डाल दिया है।
डीपीआर को सीडब्ल्यूसी की प्रत्याशा
अनुमंडल क्षेत्र के नौहट्टा प्रखंड में चार दशक से लम्बित पड़े इंद्रपुरी जलाशय परियोजना का प्री डीपीआर (प्रीलीमाइग्लर्नरी प्रोजेक्ट रिपोर्ट ) की आपत्तियों को निपटा कर केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) अनुमोदन की प्रत्याशा में है। सीडब्ल्यूसी ने लगभग 12 हजार करोड़ रुपये की लागत से निर्मित होने वाले इस परियोजना के समग्रता पर रिपोर्ट तलब किया था। प्री डीपीआर की स्वीकृति के बाद फाइनल डीपीआर बनाने का कार्य सीडब्ल्यूसी की स्वीकृति की प्रत्याशा में है। जल संसाधन विभाग के अनुसार, तैयार करनेवाले कार्य एजेंसी रॉडिक्स कंसल्टेंसी ने इसका डीपीआर तैयार किया है।
इंद्रपुरी जलाशय से लाभ
जलाशय आने वाले वर्षों में मध्य बिहार और दक्षिण बिहार के लिए ही नहीं, बल्कि झारखंड में सिचाई के लिए भी वरदान साबित होगा। नहरो का निर्माण कर असिंचित क्षेत्रो में पानी पहुंचाया जाएगा। जिले में दुर्गावती जलाशय से शेष बचे असिंचित क्षेत्रो में भी नहरों का निर्माण कराकर सिंचाई की व्यवस्था की जाएगी। परियोजना के पूरी होने पर लगभग 250 सौ मेगावाट जल विधुत का भी उत्पादन होगा।
जलाशय की खूबियां
इंद्रपुरी जलाशय का लेवल 169 मीटर होगा। इसकी ऊंचाई 59 मीटर होगी। 240 स्क्वार किमी क्षेत्र में इसका फैलाव होगा। इसमें 90 लाख एकड़ फीट जल का भंडारण होगा। 250 मेगावाट जल विधुत का उत्पादन होगा। डीपीआर के अनुसार भूमि अधिग्रहण व इसके निर्माण पर 12 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी।
बढ़ेगी सिंचाई क्षमता
इसके निर्माण के बाद अतिरिक्त 11 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगा। फिलवक्त सोन नहरों से 11 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो रही है। इंद्रपुरी बराज भी सिंचाई के लिए आत्मनिर्भर होगा। पानी के लिए मध्य प्रदेश के बाणसागर व उत्तर प्रदेश के रिहन्द जलाशय से पानी का इंतजार नही करना पड़ेगा।
नाम बदले लेकिन कार्य मे प्रगति शून्य
2000 में बिहार से झारखण्ड राज्य के गठन के बाद इसका नामकरण कदवन जलाशय का नाम बदल इन्द्रपुरी जलाशय योजना कर दिया गया गया। कहा जाता है ' क ' अक्षर से शुरू होने वाले योजनाओं में आ रही बाधा के मद्देनजर इसका नामकरण बदला भी बदल जल के देवता इंद्र के नाम पर किया गया।
एनडीए सरकार ने शुरू की पहल
केंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद 2016 में सोन नहर प्रणाली से लाभान्वित जिलों काराकाट के सांसद व केंद्र में मंत्री रहे उपेन्द्र कुशवाहा, बक्सर के सांसद व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, आरा के सांसद व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह व सांसद छेदी पासवान ने PM (Prime Minister) Narendra Modi से मिलकर इंद्रपुरी जलाशय के निर्माण की मांग की थी।
सीएम ने प्राकलन तैयार कराई
सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने 24 फरवरी 2017 को इस अनुमंडल के नौहट्टा के मठियाव गांव स्थित निर्माण स्थल का निरीक्षण किया था। सोन नहरों को जीवंत रखने को इस चिरलंबित इंद्रपुरी जलाशय निर्माण को ले डीपीआर तैयार करने का निर्देश दिया। सीडब्ल्यूसी में प्राकलन स्वीकृति को लंबित है। इस जलाशय के निर्माण पर लगभग 12 हजार करोड़ की राशि का खर्च आएगा। CWUC (केंद्रीय जल आयोग) को अनुमोदन को समर्पित किया गया है।
कहते है अधिकारी
मुख्य अभियंता ओमप्रकाश सिंह कहते हैं कि राज्य सरकार इस परियोजना के निर्माण को कृतसंकल्पित है। सरकार की ओर से इसके लिए लगातार सार्थक प्रयास कर रही है।