विदेश में नौकरी देने के नाम पर ठगी, औरंगाबाद में पैसे और पासपोर्ट लेकर भाग गई कंपनी

औरंगाबाद में विदेश में नौकरी देने का नाम पर ठगी का मामला सामना आया है। इस को लेकर प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। पीड़ित लोगों का कहना है कि कंपनी पासपोर्ट और पैसे लेकर फरार हो गई है।

By Rahul KumarEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 12:47 PM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 12:47 PM (IST)
विदेश में नौकरी देने के नाम पर ठगी, औरंगाबाद में पैसे और पासपोर्ट लेकर भाग गई कंपनी
औरंगाबाद में विदेश में नौकरी के नाम पर ठगी। सांकेतिक तस्वीर

दाउदनगर(औरंगाबाद), संवाद सहयोगी। जिले में विदेश में नौकरी देने के नाम पर ठगी का मामला सामने आया है। जिले के भखरुआं मोड़ स्थित लालबाबू मार्केट में गोल्डन एचआरसी नाम से आफिस खोला गया था। कंपनी ने लोगों से विदेश जाने के लिए पासपोर्ट मांगा और 25-25 हजार रुपये भी लिए। रविवार को दाउदनगर थाने में ठगी के शिकार लोगों द्वारा प्राथमिकी के लिए एक आवेदन दिया गया है, इस पर 24 लोगों के हस्ताक्षर हैं। लोगों ने कहा है कि कंपनी को पासपोर्ट के साथ-साथ 25-25 हजार रुपया भी दिया। रविवार से कंपनी का दफ्तर बंद कर संचालक फरार हो गया है। पुलिस इस मामले में जांच में जुट गई है। 

प्राथमिकी में मुंबई के कोलाबा निवासी शेख अब्दुल्लाह, कुर्ला के सबीर हसन अंसारी और उत्तर प्रदेश के फैजाबाद निवासी मोईन शेख को आरोपित किया गया है। बताया गया है कि इन तीनों लोगों को ठगी के शिकार व्यक्तियों ने पासपोर्ट और पैसा दिए था और अब ये लोग आफिस बंद कर भाग गए हैं। प्राथमिक आवेदन गुड्डू कुमार ने दिया है, इस पर उनके अलावा जितेंद्र चौधरी, महेंद्र यादव, उपेंद्र यादव, ठाकुर दयाल यादव, योगेंद्र यादव, सुरेश यादव, एस अंसारी, नसीम अंसारी, बसीर अंसारी, रोहित पासवान, अक्षय कुमार चंद्रवंशी, चितरंजन कुमार, दीनदयाल यादव, दिनेश कुमार चंद्रवंशी, मेहंदी मंसूरी, चंदन कुमार, विजेंद्र चौधरी, फिरोज अंसारी, साजिद अंसारी, धीरेंद्र वर्मा एवं अन्य के हस्ताक्षर हैं।

थानाध्यक्ष शशि कुमार राणा ने बताया कि मामले की छानबीन की जा रही है। महत्वपूर्ण है कि करीब दो-तीन माह पूर्व ही यहां कार्यालय खोला गया था और इसके प्रचार-प्रसार के लिए जब कार्यालय खोलने वालों ने विज्ञापन प्रकाशित कराने के लिए अखबारों से संपर्क किया तो इनसे शपथ पत्र की मांग की गई थी। तब ये शपथ पत्र नहीं दे सके थे। इस कारण इनका अखबारों में विज्ञापन नहीं छपा था। अन्यथा ठगी के शिकार व्यक्तियों की संख्या और अधिक हो सकती थी। 

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