Bihar: कैमूर पहाड़ी के इस जंगल में भी विचरण कर रहे बाघ; NTCA को मिले इसके साक्ष्य, आप भी जरूर जाएं
कैमूर वन्य क्षेत्र का इलाका 1800 वर्ग किमी से ज्यादा है। मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र और झारखंड के बेतला टाइगर रिजर्व क्षेत्र से भी इसका सीधा कारिडोर बनता है। इस जंगल में लगातार बाघों की आवाजाही हो रही है।
ब्रजेश पाठक, सासाराम। रोहतास जिले की कैमूर पहाड़ी पर बसे कैमूर वन्यप्राणी क्षेत्र के जंगल में भी बाघ हैं। इसका पुख्ता प्रमाण वन विभाग के पास भी है। जिससे अब इस क्षेत्र को भी टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित करने की कवायद तेज हो गई है। यही नहीं, मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh, MP) के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर काॅरिडोर बनाने की पहल भी हो रही है, ताकि यहां के जंगलों में और बाघ आकर निवास करें। कैमूर वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, औरैया व भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के कई पदचिह्न देखे गए हैं।
वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि लगातार इस जंगल में बाघों की आवाजाही होने का पुख्ता सबूत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को उपलब्ध कराया गया है। यही नहीं मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल भी हो रही है, ताकि यहां के जंगलों में बाघ आकर स्वच्छंद विचरण करें। एनटीएसए की मंजूरी मिलने के बाद यहां फिर जंगल का राजा बाघ स्वच्छंद विचरण करेंगे।
चार दशक पहले भी यहां थे बाघ
कैमूर पहाड़ी के घने जंगलों में चार दशक पूर्व तक बाघ रहने की बात पहाड़ी पर बसे गांवों के बुजुर्ग बताते हैं। लोगों का कहना है कि यहां काफी संख्या में 1975-76 तक बाघ थे। पेड़ों के कटने, वन माफिया के कारण वनों में आवाजाही बढऩे के कारण बाघों की संख्या धीरे-धीरे समाप्त हो गई। हाल के वर्षों में माफिया व नक्सलियों पर कसे शिकंजे तथा वन विभाग द्वारा सक्रियता बढऩे से इस क्षेत्र में बाघों की आवाजाही फिर बढ़ गई है।
बाघ की आवाजाही का है पुख्ता सबूत
मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से बाघ यहां आते-जाते रहे हैं। इस क्षेत्र में वाटर होल बना बाघों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। नवंबर 2019 में तिलौथू क्षेत्र में पहली बार बाघ के पंजों के निशान व मल प्राप्त हुआ था, जिसके बाद मल को देहरादून (Dehradoon) स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की प्रयोगशाला में जांच कराई गई थी, जहां से इसकी पुष्टि भी हुई। जांच में पंजे के निशान भी बाघ के ही पाए गए हैं।
कहते हैं अधिकारी
डीएफओ प्रद्युम्न गौरव ने कहा कि कैमूर वन्य क्षेत्र का इलाका 1800 वर्ग किमी से ज्यादा है। मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र और झारखंड के बेतला टाइगर रिजर्व क्षेत्र से भी इसका सीधा कारिडोर बनता है। इस जंगल में लगातार बाघों की आवाजाही हो रही है। इसका पुख्ता प्रमाण भी एनटीसीए को उपलब्ध कराया गया है।
मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल भी हो रही है। पहले भी यहां के जंगलों में बाघ विचरण करते थे। इस वन्य क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, चेनारी, औरैया व भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के पद चिह्न व उनकी आवाजाही देखी गई है तथा बाघ का विचरण करते हुए तस्वीर भी ऑटोमेटिक कैमरे से ली गई है।