Bihar Panchayat Chunav 2021: पंचायत चुनाव में पहले प्रत्याशी अकेले मांगते थे वोट, गया में पहले चरण का चुनाव 24 को

24 सितंबर को गया जिले के बेलागंज व खिजसराय प्रखंड के सभी पंचायतों में मतदान होगा। 26 सितंबर को पहले चरण के मतदान के नतीजे सामने आएंगे।खिजरसराय प्रखंड के सरबहदा पंचायत के 23 साल तक लगातार मुखिया रहे चंद्रिका सिंह ने सुनाए चुनावी संस्‍मरण।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 07:46 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 08:13 AM (IST)
Bihar Panchayat Chunav 2021: पंचायत चुनाव में पहले प्रत्याशी अकेले मांगते थे वोट, गया में पहले चरण का चुनाव 24 को
गया में पहले चरण का मतदान 24 सितंबर को, सांकेतिक तस्‍वीर ।

गया, जागरण संवाददाता। गया जिले में पंचायत चुनाव  के पहले चरण का मतदान 24 सितंबर को होगा। ईवीएम की सीलिंग से लेकर मतपेटिकाओं को तैयार करने का काम पूरा हो गया है। पहले चरण में बेलागंज औश्र खिजसराय के सभी पंचायतों में वोट डाले जाएंगे। पहले चरण में कुल 3317 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा। अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करने के लिए मतदाताओं में भी जबरदस्त उत्सुकता है। इस बीच खिजसराय प्रखंड के सरबहदा पंचायत के पूर्व मुखिया ने चुनावी संस्‍मरण सुनाए।

एक भी समर्थक साथ नहीं चलता

'पंचायत चुनाव में पहले प्रत्याशी अकेला घर-घर जाकर वोट मांगते थे। प्रत्याशी के साथ एक भी समर्थक नहीं चलते थे। क्योंकि प्रत्याशी के अपना चरित्र पर वोट मिलता था।' उक्त बातें 23 साल तक लगातार मुखिया के पद बने रहे चंद्रिका सिंह ने कहीं। खिजरसराय प्रखंड के सरबहदा पंचायत का 23 सालों तक मुखिया बनकर नेतृत्व किए। उन्होंने कहा कि 1971 पर पहली बार मुखिया पद के लिए चुनाव मैदान में आए थे। लेकिन 23 वोट से पराजय का मुंह देखना पड़ा था। उसके बाद 1978 के चुनाव में मुखिया पद बाजी मार दिया। उस समय चुनाव का परि²श्य काफी अलग था। वोट मंगाने का तरीका काफी अगल थे। वोट मंगाने के लिए सुबह नाश्ता कर घर से निकलते थे। दोपहर का भोजन किसी भी मतदाताओं के घरों में हो जाता है। मतदाता बड़ा स्नेह और प्यार से भोजन करते थे।

चुनाव में शराब व पैसे का चलन नहीं था

चुनाव में पैसा और शराब तो बिल्कुल नहीं चलता था। 85 वर्षीय पूर्व मुखिया कहते है कि मान-सम्मान के लिए मुखिया बनते थे। जनता के साथ मुखिया हमेशा रहे थे। उनके सुख-दूख में साथ रहते थे। उस समय मुखिया प्रखंड कार्यालय जाते ही नहीं थे। पदाधिकारी मुखिया आते थे। क्योंकि जनप्रतिनिधियों को दबदबा पदाधिकारियों पर रहता थ। लेकिन आज का चुनाव में काफी बदलाव हो गया। पैसा वाले ही लोग चुनाव जीत सकते है। लोग प्रत्याशी के चरित्र पर वोट नहीं देकर पैसे की लालच में वोट गलत प्रत्याशी को देते है। जो लोकतंत्रिक व्यवस्था  व्यवस्था के लिए खतरा बनते जा रहा है।

chat bot
आपका साथी