बिहार : कौनी किसनवा के हइन पहिरोपना...अब रोपनी के वक्त नहीं सुनाई पड़ते ऐसे गीत

अभी खेतों में रोपनी हो रही है। अब खेतों में जब महिलाएं धान रोकने के लिए उतरती हैं तो कौनी किसनवा के हइन पहिरोपना... और सातों बहिनी गावअ हई गीत के डुली-डुली नाज् जैसे पारंपरिक गीत अब सुनने को नहीं मिलते हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 11:06 AM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 02:08 PM (IST)
बिहार : कौनी किसनवा के हइन पहिरोपना...अब रोपनी के वक्त नहीं सुनाई पड़ते ऐसे गीत
लुकमा कसार वितरण करने जैसी कई परंपराएं अब हो रही लुप्‍त, सांकेतिक तस्‍वीर।

दाउदनगर (औरंगाबाद), उपेंद्र कश्यप। अभी मौसम कृषि कार्य का है। खेतों में रोपनी हो रही है। कई कृषि परंपराएं अब समाप्त प्राय हैं। अब खेतों में जब महिलाएं धान रोकने के लिए उतरती हैं तो कौनी किसनवा के हइन पहिरोपना... और सातों बहिनी गावअ हई गीत के डुली-डुली नाज् जैसे पारंपरिक गीत अब सुनने को नहीं मिलते हैं। लुकमा कसार कृषि मजदूरों को देने जैसी परंपराएं अब विलुप्त हो गई हैं। किसान सुरेंद्र ङ्क्षसह यादव बताते हैं कि बिचड़ा तैयार होने के बाद मजदूर आरी गोहट करते हैं। पचाठ होता है, यानी खेत की पूजा की जाती है। धान, चावल, अक्षत, रोली, ङ्क्षसदूर का इस्तेमाल होता है। मुख्य रोपनी जो प्राय: स्थाई कृषि मजदूर होते हैं वह पति पत्नी जाकर खेत की पूजा करते हैं। रोपनी किसान के घर पहुंचती है। रोपनी शुरू करने से पहले और उसे खोइन्छा मिलता है। चावल, तेल और विवाहित के मांग में ङ्क्षसदूर दिया जाता है। यही चावल कृषि मजदूर रोपनी से पहले खेतों में छिड़कते हैं। ईश्वर से यह अपेक्षा करते हैं कि फसल लहलहाए। कृषि मजदूर और किसान खुश रहे। कबरिया गोरिया बाबा, शंकर भगवान, देवी माई, इंद्र भगवान, सूर्य भगवान का जयकारा लगाते हैं। रोपणहार गीत गाकर कार्य करती हैं।

अब भी रोपनी मांगती हैं लुकमा-कसार : सुरेंद्र यादव

किसान सुरेंद्र ङ्क्षसह यादव बताते हैं कि रोपण हार अभी भी लुकमा कसार की मांग करते हैं। पहले यह उन्हें दिया जाता था लेकिन दलहन की उपज कम होने के कारण अब इसका वितरण बंद हो गया है। बताया कि फुला हुआ मटर को किसानी भाषा में लुकमा कहते हैं और चावल का मिठाई जो शादी ब्याह में इस्तेमाल होता है वह कसार। रोपनहार इसे अपने घर ले जाती थी और लुकमा का भभरा, चटनी बनाकर या सीधे खाने में इसका इस्तेमाल करती थी।

जोश और अनुकूल मौसम के लिए जयकारा : जटहा राम

कृषि मजदूर जटहा राम बताते हैं कि बिहन करते समय विभिन्न देवताओं के नाम से जयकारा लगाया जाता है। हालांकि अब यह परंपरा भी विलुप्त हो रही है और कहीं कहीं कोई कोई मजदूर जयकारा लगाकर काम करता है। इससे मजदूरों के अंदर काम करने का जोश पैदा होता है। थकान कम होती है और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मौसम सुहावना बना रहे ताकि तीखी धूप न होने के कारण काम करना थोड़ा सहज हो। जिससे अधिक से अधिक काम कम से कम समय में किया जा सके।

तीन नक्षत्र महत्वपूर्ण

बताया गया कि कृषि कार्य के लिए रोहण मृगडाह और अदरा तीन नक्षत्र होते हैं, जो कृषि कार्य के लिए काफी महत्वपूर्ण और आवश्यक होते हैं।

बहुत कम है अभी मजदूरी

अभी इलाके में कृषि मजदूरों के लिए पांच किलो चावल प्रतिदिन का पारिश्रमिक तय है। कई किसानों का भी यह मानना है कि मजदूरी का यह दर काफी कम है। जितना हाड़ तोड़ मेहनत कृषि मजदूरों को करना पड़ता है उस मुकाबले 5 किलो चावल का कोई महत्व नहीं है। आज बाजार भाव के हिसाब से इतने चावल का मूल्य लगभग 100 रुपया है जो काफी कम है। न्यूनतम मजदूरी से भी कम है।

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