क्‍योंकि जनून बड़ी चीज है, लॉकडाउन में नौकरी छोड़ झारखंडे ने किया ऐसा कमाल, लोग कहने लगे वाह-वाह

नौकरी छोड़ घर आए झारखंडे ने गांव को स्वच्छ व हरा भरा बनाने का उठाया बीड़ा प्रतिदिन गांव‌ की गलियों की सफाई कर पौधों की करते हैं देखभाल ग्रामीणों के सहयोग नहीं करने का है मलाल उत्साह देख बनाया गया वन रक्षी।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 01:59 PM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 01:59 PM (IST)
क्‍योंकि जनून बड़ी चीज है, लॉकडाउन में नौकरी छोड़ झारखंडे ने किया ऐसा कमाल, लोग कहने लगे वाह-वाह
अपने गांव में सफाई करते जॉब छोड़कर आए झारखंडे। जागरण।

संवाद सूत्र, नुआंव (भभुआ)। प्रखंड के अकोल्ही गांव के झारखंडे प्रसाद चौरसिया (उम्र करीब 54 वर्ष) को प्रतिदिन अहले सुबह गांव की गलियों की साफ सफाई में पूरी तन्मयता के साथ जुटे हुए देखा जा सकता है। न किसी तरह का चेहरे पर लज्जा का भाव और न किसी तरह के लाभ की आकांक्षा , मन में अगर भाव है तो प्रकृति संरक्षण और स्वच्छता का।

उद्देश्य है तो केवल यह कि कोई भी व्यक्ति गांव से गुजरे तो उसके मन में गांव के प्रति एक सकारात्मक भाव पैदा हो । इस संबंध में वे बताते हैं कि वैसे तो मैं गरीब परिवार से ताल्लुक रखता हूं। दो पुत्री और एक पुत्र की परवरिश मुश्किल हालातों में करता हूं। बड़ी बेटी की शादी हो गई है। एक बेटी जिसकी उम्र करीब 14-15 वर्ष है तथा पुत्र जिसकी उम्र करीब 10 वर्ष है विद्यालय में पढ़ते हैं।

पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में जे पी कंपनी में काम करता था। पिछले साल लॉकडाउन के समय कंपनी बंद हो गई तो घर आ गया। तब से गांव में हीं निःशुल्क सेवा दे रहा हूं। किसी तरह के लाभ प्राप्त करने की आकांक्षा भी नहीं है। ऐसी बात नही है कि जब लॉकडाउन के कारण गांव में हूं तभी यह काम कर रहा हूं। प्रकृति के प्रति जुड़ाव और स्वच्छता के प्रति मेरे झुकाव बचपन से हीं था। पहले भी जब छुट्टी आता था तो पूरे गांव की साफसफाई करता था।

अब जबकि स्थाई रूप से गांव में रह रहा हूं तो यह कार्य भी स्थाई रूप से हो रहा हूं। गांव के लोगों के प्रति हल्की नाराजगी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि लोग साफ सफाई  पर ध्यान नहीं देते। लोगों से मैं कहता हूं कि सभी लोग अपने अपने घरों में डस्टबीन रखे और यदि नहीं रख सकते तो कूड़े को एक जगह डालें ताकि उसे उठाने में विशेष परेशानी न हो लेकिन कोई सुनता नहीं। खैर इससे मेरे उत्साह में कोई कमी नही आ सकती। पहले तो कई लोग हंसते भी थे लेकिन अब धीरे धीरे लोग स्वीकार करने लगे हैं।

पहले अपने पैसे झाड़ू भी खरीदना पड़ता था अब गांव के हीं एक व्यक्ति पिंटू पाण्डेय जब गांव आते हैं तो कहने पर झाड़ू खरीद कर दे देते हैं। गांव की साफ सफाई के अतिरिक्त उनका प्रकृति से भी लगाव अनूठा है । शुरू से हीं जहां कही कोई पौधा बेतरतीब उगे रहते थे उसे उखाड़ कर सही जगह पर लगाते रहते थे। जब से गांव आ गए हैं गांव के सड़क के किनारे पौधा रोपण किए हैं। उनके इस जुनून को देखते हुए उन्हें वनरक्षी भी नियुक्त किया गया है। जिसके एवज में उन्हें 1500 रुपये पारिश्रमिक भी मिलता है।

इस संबंध में उन्होंने कहा कि पारिश्रमिक की कोई बात नहीं है और मैं पारिश्रमिक के लिए यह कार्य करता भी नहीं हूं। वनरक्षी के रूप में जहां तक मेरे ड्यूटी है उसके आगे के पौधों की भी देखभाल मैं करता हूं। अभी हाल हीं में कोई पदाधिकारी पौधों की जांच करने आए थे तो उन्हें मेरे क्षेत्र के पौधों को दिखाने की हीं बात हो रही थी। कोई भी व्यक्ति यदि इनके देखरेख वाले पौधों को और अन्य पौधों को देखेगा तो फर्क साफ महसूस कर सकता है। कहां से प्रेरणा प्राप्त हुई।

इस संबंध में वे कहते हैं कि बाहर जाने पर देखते हैं कि महाराष्ट्र , गुजरात या मध्यप्रदेश में लोग घरों में डस्टबीन रखते हैं। गलियां व सड़के साफ सुथरी हैं पौधों की उचित देखभाल होती है। वहां की व्यवस्था देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। मध्यप्रदेश के एक शहर इंदौर को पूरे देश में स्वच्छता सूचकांक में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। वहां सरकारी मशीनरी तो कार्यरत हैं हीं लोग भी इन सब मामलों में काफी जागरूक हैं।

गांवों में तो यदि सभी लोग थोड़ा सा जागरूक हो जाए तो गांव में ऐसी स्थिति प्राप्त करना काफी सरल हो जायेगा। यहां किसी सरकारी सहायता की आवश्यकता नहीं है, बल्कि आवश्यकता है तो जागरूकता की। यदि सभी लोग केवल इन सब मामलों में जागरूक हो जाएं तो गांव स्वर्ग बन जाएगा ।

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