क्लीनिकल स्किल के साथ सेवाभाव से हो इलाज : सिविल सर्जन
फोटो 202 -सीएस ने कहा भारतवर्ष में जमाने से चली आ रही क्वारंटाइन की परंपरा -बिसतौरी में मां-बचे को अलग कमरे में रख जाना इसका श्रेष्ठ उदाहरण ---------------- जागरण संवाददाता गया
गया । कोरोना महामारी ने समूचे चिकित्सा जगत के लिए एक नई चुनौती पेश की है। अब और अधिक सजगता रखनी होगी। इस बार के कोरोना संकट ने समूचे मेडिकल जगत को आगाह किया है।
ये बातें सिविल सर्जन डॉ. ब्रजेश कुमार सिंह ने कहीं।
उन्होंने डॉक्टरों के लिए क्लीनिकल स्किल के साथ मरीजों का सेवाभाव के साथ इलाज की सलाह दी। पूर्व के मशहूर चिकित्सक डॉ. शिवनारायण सिंह, शीतल प्रसाद, डॉ. बी प्रसाद, डॉ. केके सिन्हा सरीखे नामचीन चिकित्सकों का जिक्र करते हुए कहा कि ये सभी क्लीनिकल स्किल के जरिए इलाज के कारण ही चर्चित हुए। सिविल सर्जन ने जटिल बीमारियों के इलाज में आधुनिक चिकित्सीय जांच की जरूरत पर जोर दिया, लेकिन सामान्य चिकित्सा में क्लीनिकल स्किल का बड़ा योगदान बताया। वायरस व बैक्टीरिया जनित दोनों ही बीमारियों में क्वारंटाइन अहम
सिविल सर्जन ने क्वारंटाइन को लेकर कहा, इसकी उपयोगिता भारत जैसे संस्कृति प्रधान राष्ट्र में दशकों से रही है। 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू के समय बड़ी संख्या में लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा था। भारत में अब तक हुए प्लेग में भी गांव-कस्बे के लोग खुद को क्वारंटाइन कर लेते थे। गांव में बीमारी फैलने पर लोग घर से दूर जाकर रहने लगते थे। सीएस ने कहा, क्वारंटाइन प्रक्रिया से संक्रमण का प्रसार काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। बिसतौरी में मां व शिशु को अलग कमरे में रहना भी क्वारंटाइन
गांव-देहात में आज भी प्रसव के बाद (बिसतौरी) मां व उनके शिशु को सामान्य जनों से कोई संक्रमण नहीं लगे इसी सोच से लोग उन्हें अलग कमरे में 20 दिनों तक रखते हैं। साफ-सफाई से लेकर खान-पान में विशेष ध्यान रखा जाता है। 20 दिन पूरा होने पर सभी परिवार के लोग स्नान करते हैं। जिस कमरे में शिशु के साथ मां रहती है, उसे अच्छी तरह से धोया जाता है। सिविल सर्जन ने इसे क्वारंटाइन का बेहतरीन उदाहरण माना है।