Aurangabad: पर्यटन मानचित्र से मदनपुर का उमगा पहाड़, जानें क्‍या है मां उमंगेश्वरी समेत 52 मंदिरों की श्रृंखला

औरंगाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर उमगा पहाड़ का विकास नहीं हो पा रहा है। चार वर्ष पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहाड़ का दौरा किया था। पहाड़ पर स्थित मंदिरों की श्रृंखला के बारे में जानकारी ली थी। उमगा पहाड़ के विकास की घोषणा की थी।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Tue, 01 Dec 2020 07:05 PM (IST) Updated:Tue, 01 Dec 2020 07:05 PM (IST)
Aurangabad: पर्यटन मानचित्र से मदनपुर का उमगा पहाड़, जानें क्‍या है मां उमंगेश्वरी समेत 52 मंदिरों की श्रृंखला
औरंगाबाद के उमगा पहाड़ स्थित मंदिरों की श्रृंख्‍ला। जागरण आर्काइव।

औरंगाबाद, जेएनएन। औरंगाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर उमगा पहाड़ का विकास नहीं हो पा रहा है। चार वर्ष पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहाड़ का दौरा किया था। पहाड़ पर स्थित मंदिरों की श्रृंखला के बारे में जानकारी ली थी। उमगा पहाड़ के विकास की घोषणा की थी। कहा था कि यहां रोपने लगाया जाएगा ताकि पर्यटक पहाड़ के सौंदर्यीकरण का दर्शन कर सके। सीएम के घोषणा के तीन वर्ष बीत गए परंतु विकास का एक भी कार्य नहीं कराया गया। पहाड़ पर पौराणिक सूर्य मंदिर, मां उमंगेश्वरी मंदिर, शंकर पार्वती, गणेश की दुर्लभ मूर्तियां विराजमान है।

पहाड़ पर है 52 मंदिरों की श्रृंखला

उमगा पहाड़ पर सूर्यमंदिर, मां उमंगेश्वरी मंदिर, गौरी शंकर मंदिर सहित 52 मंदिरों का श्रृंखला है। आज भी कई मंदिरों का अवशेष देखने को मिलता है। पहाड़ स्थित कई बहुमूल्य मूर्तियां रखरखाव के अभाव मे छिन्न भिन्न होती जा रही है। उमगा पर्वत पर भगवान सूर्य की अदभूत विशालकाय मंदिर वर्षा पूर्व से ऐतिहासिकता और साक्ष्य समेटे गौरव गाथा को प्रलक्षित करने के लिए आज भी उत्प्रेरणा स्वरूप खड़ा है। धरातल से सौ फीट की ऊंचाई पर स्थापित यह मंदिर लगभग 90 फीट की लंबा कला एवं कला के ²ष्टिकोण से अद्वितीय है। मंदिर के सौंदर्य प्रसाधन स्वरूप प्रकृति ने स्वयं धारण की है। पहाड़ी पर मां उमंगेश्वरी मंदिर में मे पूजा अर्चना करने से 52 शक्तिपीठों का लाभ मिलता है। मां पूजन सरस्वती के रुप मे बसंत पंचमी को किया जाता है। ङ्क्षकतु यह देवी महिषासुर मर्दनी स्वरूप में है,और अष्टभुजी हैं। इनकी बाईं ओर मार्तंड भैरव हैं। उमंगेश्वरी मां की प्रतिमा हजारों टन वाले विशाल भार वाले पत्थर से बने मंदिर में विराजमान हैं। यह प्राकृतिक रचना आश्चर्यजनक है। यह देवी मनोकामना पूर्ण करने वाली एवं सिद्धिदात्री हैं। पहाड़ की ऊपरी चोटी पर भगवान शिव और गौरी मौजूद हैं। यहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की सैलाब उमड़ती है।

अमरकुंड में नहीं सूखता पानी

उमगा पहाड़ी पर एक छोटे आकार का कुंड बना हुआ है, जिसे लोग अमर कुंड के नाम से जानते हैं। यह कुंड देखने में साधारण दिखाई देता है, पर इस कुंड की खास विशेषता यह है कि यह पहाड़ी की काफी ऊंचाई पर स्थित होते हुए भी इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता। बताया जाता है कि इस कुंड से जितना पानी बाहर निकाला जाता है, पुन: उतना पानी जमा हो जाता है। कुछ लोग बताते हैं कि इसका जल स्रोत पाताल से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि उस कुंड का पानी कभी खत्म नहीं होता। बेहद आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि पहाड़ी की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण इसका जल स्रोत कहां से आता है, जबकि पहाड़ी के नीचे तल से तकरीबन 20 फुट की गहराई में जल का स्रोत मिलता है। यह विज्ञान का विषय व शोध का विषय हो सकता है कि आखिर क्या कारण है कि पहाड़ी की ऊंचाई पर यह स्रोत सालों भर जल से भरा रहता है। ऐसा जल स्रोत उमगा पहाड़ी पर इसके अतिरिक्त कहीं नहीं मिलता। कुछ लोग इसे ईश्वरीय चमत्कार मानते हैं।

औषधीय पौधों से भरा है उमगा पहाड़

मदनपुर का उमगा पहाड़ औषधीय पौधों से भरा है। इस पहाड़ पर 200 से अधिक औषधीय पौधों की पहचान की गई है जो विभिन्न रोगों के लिए कारगर है। दक्षिण भारत एवं हिमालय में पाए जाने वाले पौधे की प्रजाति भी पहाड़ पर है। ङ्क्षपकटोरिया पौधा दक्षिण भारत के जंगलों में पाया जाता है जो इस पहाड़ पर देखा गया है। इस पौधे का बीज दर्द की दवा में उपयोग होता है। इस पौधे की बीज को हाथी पसंद करते हैं। पहाड़ पर मुसलीकंद, बिदारीकंद, गुड़मार, अष्टगंध, श्रृंगारहार, सतावर, गोखुल, कोरैया समेत विभिन्न प्रजाति के पौधे उगे हैं। उमगा मंदिर के पुजारी बालमुकुंद पाठक ने बताया कि पहाड़ पर कई प्रजाति के औषधीय पौधे हैं। पहाड़ की सबसे उपरी चोटी पर गौरीशंकर मंदिर के पास मुसलीकंद पाया गया है। यह महंगा बिकता है। बिदारीकंद दुर्लभ पौधा है। गुड़मार का पौधा डायबिटिज मरीजों के लिए कारगर है। कोरैया का बीज लीवर की दवा बनाने के उपयोग में किया जाता है। मदनपुर से काफी मात्रा में इसका बीज दवा बनाने के लिए बाहर जाता है।

ध्वस्त होने के कगार पर सूर्य मंदिर

उमगा पहाड़ पर स्थित भगवान सूर्य का ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राचीन मंदिर उपेक्षित होने की वजह से नष्ट होने के कगार पर है। मंदिर का सामुचित संरक्षण नहीं होने के कारण अस्तित्व खतरे में है। यह मंदिर जिले ही नहीं बल्कि राज्य की धरोहर सूची में शामिल है। जमीन से करीब 100 फीट ऊंचा पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का दर्शन करने के लिए पर्यटक आते हैं। देखदेख के अभाव में मंदिर पर घास उग आया है। पत्थरों को तरासकर बनाया गया इस मंदिर में दरार उभर आया है। मंदिर के दक्षिणी एवं उत्तरी भाग में दरार साफ दिखता है। दिन-प्रतिदिन पत्थरों के बीच का दरार बढ़ता जा रहा है।

प्रत्येक वर्ष आयोजित होता है महोत्सव

मंदिर की महिमा एवं गरिमा को प्रचारित करने के लिए प्रत्येक वर्ष राज्यस्तरीय उमगा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। महोत्सव पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। प्रख्यात गायकों की प्रस्तुति होती है। अब तक भोजपुरी गायक मनोज तिवारी, सूरसंग्राम के विजेता मोहन राठौर, अंकुश व राजा, अरङ्क्षवद अकेला उर्फ कल्लू, गोलू राजा की प्रस्तुति हो चुकी है। इतना होने के बाद भी संरक्षण के अभाव एवं जिला प्रशासन की अपेक्षा से ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर पहुंच गया है।

कहते हैं पुजारी

पुजारी बालमुकुंद पाठक ने बताया कि मां सती के शव को लेकर भगवान शिव जब क्रोधित होकर तांडव नृत्य शुरू किया था। उस समय मां का शरीर का अंग उमगा पहाड़ पर गिरा था। तब से यह स्थल शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुआ है। आज भी यहां का प्रसाद बिना पकाएं हुए ढकने मे चावल और गुड.मिलाकर लड्डू जैसा बनाकर चढ़ाया जाता है। जिसे मगह में कसार कहा जाता है। मन्न्त पूरा होने पर पूजा करने पहुंचते हैं। पूर्व में जब राजा यहां रहते थे तब मंकर संक्रांति से ही दो माह का मेला यहां लगता था। अब धीरे धीरे सिमटती जा रही है।

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