तीन दारोगा की अग्रिम जमानत रद करने के बाद नवादा की अदालत ने पुलिसिंग पर की कड़ी टिप्‍पणी

पुलिस अभिरक्षा में अजित कुमार उर्फ गुड्डु की पिटाई के मामले में तीन पुलिस पदाधिकारियों की अग्रिम जमानत रद करने के आदेश में अदालत ने कुछ ऐसे तथ्यों का जिक्र किया गया है जो पुलिसिंग पर सवाल खड़े करते हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 11:40 AM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 01:01 PM (IST)
तीन दारोगा की अग्रिम जमानत रद करने के बाद नवादा की अदालत ने पुलिसिंग पर की कड़ी टिप्‍पणी
अदालत ने पुलिसिंग पर की कड़ी टिप्‍पणी, सांकेतिक तस्‍वीर।

नवादा, जागरण संवाददाता। पुलिस अभिरक्षा में अजित कुमार उर्फ गुड्डु की पिटाई के मामले में तीन पुलिस पदाधिकारियों की अग्रिम जमानत रद करने के आदेश में अदालत ने कुछ ऐसे तथ्यों का जिक्र किया गया है, जो पुलिङ्क्षसग पर सवाल खड़े करते हैं। कांड के आरोपित तत्कालीन नारदीगंज प्रभारी थानाध्यक्ष रामकृपाल यादव की खारिज अग्रिम जमानत आवेदन में तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने उल्लेख किया है कि मैजिक वाहन पलटने के मामले को रफा दफा करने के लिए 10 हजार रुपये की मांग की गई। कांड के पीडि़त अजित कुमार उर्फ गुड्डु के घर में घुस कर तोडफ़ोड़ भी किया तथा क्रूरतापूर्वक उनकी पिटाई भी किया। वर्तमान में पुलिस पदाधिकारी की हैसियत से सेवा में बने हुए हैं तथा प्रभावशाली व्यक्ति का हैसियत धारण करते हैं। इसी आधार पर अदालत ने अग्रिम जमानत आवेदन को खारिज किया गया।

पुलिस के आचरण में सुधार की है आवश्यकता

अदालत ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि पुलिस बल के कतिपय सदस्यों के आचरण में सुधार अभी बाकी है। सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा विभिन्न मामलों में पुलिस अभिरक्षा के व्यक्तियों के मूल अधिकारों एवं मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु कई बार दिशा निर्देश जारी किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता में भी इस मामले को लेकर कई संशोधन किये गये हैं। बावजूद पुलिस अधिकारियों के द्वारा अपने अहम की संतुष्टि हेतु पुलिस अभिरक्षा के दौरान निरूद्ध व्यक्तियों के साथ मारपीट व क्रूरता किये जाने का आरोप चिकित्सकीय जांच से प्रतीत होता है जो सभ्य समाज की अत्यंत ही घृणित एवं निंदनीय घटना है। पुलिसबल के आचरण में सुधार की आवश्यकता है।

आरोपितों की गिरफ्तारी के लिये नहीं किया जा रहा प्रयास अदालत ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि कांड दर्ज होने के बाद आरोपित दारोगा रामकृपाल यादव लंबे समय तक नगर थाना में कार्यरत रहे। बावजूद अनुसंधानकर्ता उनकी गिरफ्तारी के लिये कोई कार्यवाही नहीं किया। मामले को लंबित रखने के उद्देश्य से केवल खानापूर्ति की जा रही है। जो अभियुक्त पुलिस पदाधिकारी के प्रभाव को प्रकट करता है।

जख्म प्रतिवेदन बताता है पुलिस की क्रूरता

अदालत ने सूचक के इस आरोप को सही पाया कि कांड संख्या-67/21 के आरोपित पुलिस पदाधिकारियों ने अहंकार की संतुष्टि हेतु बदले की भावना से प्रेरित होकर पुलिस अभिरक्षा में पिटाई किया। जो जख्म प्रतिवेदन से भी स्पष्ट होता है।

आरोपित पुलिस पदाधिकारी ने उच्च न्यायालय का नहीं माना आदेश

अभिलेख अवलोकन के बाद अदालत ने पाया कि उच्च न्यायालय के द्वारा दिनांक 23/12/20 को पारित आदेश के चार माह बाद दिनांक 13/04/21 को प्राथमिकी दर्ज की गई। अदालत ने यह भी पाया कि कांड के अभियुक्त पुलिस पदाधिकारीगण इतने प्रभावशाली हैं कि नारदीगंज थाना कांड संख्या-175/20 का अनुसंधान को सीआइडी को सौंपने का आदेश दिनांक 23/12/20 को दरकिनार करते हुए 26/06/21 को आरोप पत्र न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में समर्पित किया गया।

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