तीन दिनों से खाना नहीं खा रही थी नवादा की किशोरी, परिवारवालों के अंधविश्‍वास का हुआ यह अंजाम

किशोरी तीन दिनों से खाना नहीं खा रही थी तो स्‍वजन उसे अस्‍पताल की बजाए झाड़फूंक करने वाले के पास ले गए। नतीजा हुआ कि स्थिति बिगड़ती चली गई। मामला प्रखंड क्षेत्र की फरका बुजुर्ग पंचायत अंतर्गत धामोचक गांव का है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 11:26 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 11:26 AM (IST)
तीन दिनों से खाना नहीं खा रही थी नवादा की किशोरी, परिवारवालों के अंधविश्‍वास का हुआ यह अंजाम
बीमारी की स्थिति में न लें झाड़फूंक का सहारा। सांकेतिक तस्‍वीर

रजौली (नवादा), संवाद सूत्र। किशोरी तीन दिनों से खाना नहीं खा रही थी तो स्‍वजन उसे अस्‍पताल की बजाए झाड़फूंक करने वाले के पास ले गए। नतीजा हुआ कि स्थिति बिगड़ती चली गई। मामला प्रखंड क्षेत्र की फरका बुजुर्ग पंचायत अंतर्गत धामोचक गांव का है। यहां की 14 वर्षीय किशाेरी की मृत्यु अंधविश्वास के कारण रविवार की दोपहर अनुमंडलीय अस्पताल में हो गई। मृतका के पिता बिनोद प्रसाद ने बताया कि 14 वर्षीया छोटी बेटी रानी कुमारी बीते तीन दिनों से खाना नहीं खा रही थी।

भूत-प्रेत के साया के संदेह में भटकते रहे इधर-उधर 

परिवार वालों को बच्ची के ऊपर भूत-प्रेत के साया का संदेह हुआ। इसके बाद वे बीमार बच्ची का झाड़-फूंक कराने इधर-उधर भटकने लगे। कई ओझा-गुणी के पास गए लेकिन बच्ची की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। तब थक हार कर रविवार को अनुमंडलीय अस्पताल पहुंचे। अस्पताल में ड्यूटी पर रहे चिकित्सक डा. राघवेन्द्र भारती ने बच्ची का प्राथमिक इलाज किया। इलाज के दौरान बच्ची की मौत हो गई।

काफी कम हो गया था शरीर का तापमान 

चिकित्सक ने बताया कि इंसान का सामान्य शारीरिक तापमान लगभग 37 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। बच्ची को जब अस्पताल लाया गया तो वह पूरी तरह से भीगी हुई थी। जीएनएम ने भीगे वस्त्र को बदलकर सूखा वस्त्र पहनाया। साथ ही उसके शरीर का तापमान जांच करने पर 32 डिग्री सेंटीग्रेड पाया गया। बच्ची को बचाने का काफी प्रयास किया गया। परंंतु वे असफल रहे। उन्होंने बताया कि बच्ची की मौत स्वजनों की लापरवाही के कारण सही समय पर उपचार के अभाव में हुई है।

बताते चलें कि इससे पूर्व भी दर्जनों गांव के लोग सर्पदंश पीड़‍ितों को अस्पताल न लाकर झाड़फूंक के चक्कर में रहते हैं। जिसके कारण पीड़ित की जान पर खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। विज्ञान के इस युग में अंधविश्‍वास के चक्‍कर में पड़ना घातक हो जाता है। 

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