ये हैं गया जिले के शिक्षक प्रसिद्ध सिंह, आखिर क्यों हैं 'प्रसिद्ध'..जानिए
अपने नाम को सार्थक करते हैं गया जिले के भगहर थानाक्षेत्र स्थित मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रसिद्ध सिंह। बच्चों को शिक्षादान देना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। जानिए....
गया [अमित कुमार सिंह]। कंधे से लटकता कपड़े का एक थैला और हाथ में छाता लेकर पैदल ही पगडंडियां नाप रहा एक शख्स जिधर से गुजरता है, उधर से ही प्रणाम सर...प्रणाम मास्टर साहब! यह सम्मान यूं ही नहीं मिला है। इसके पीछे है उनका अपने पेशे के प्रति समर्पण।
ये हैं मध्य विद्यालय भगहर के प्रधानाध्यापक प्रसिद्ध सिंह। जहां रुक गए, वहीं शुरू हो गई कक्षा। बच्चे इनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। कई इंजीनियर बने, कुछ शिक्षक बनकर स्कूलों में पढ़ा रहे। प्रसिद्ध सिंह की कमाई और प्रसिद्धि यही है। इलाके के हर व्यक्ति की जुबान पर इनका नाम है।
वे बताते हैं कि 1984 में शिक्षक की नौकरी मिली। पहली पोस्टिंग शेरघाटी प्रखंड के कचौड़ी गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई। एक साल के बाद मोहनपुर प्रखंड के बुमुआर में स्थानांतरण हो गया। उसके बाद भगहर और तब से यहीं हैं। दो-दो पीढिय़ों को पढ़ाया। लोगों ने बहुत सम्मान दिया।
समय पर स्कूल आना और दूसरों से भी यही अपेक्षा इनकी कार्यशैली है। कोई शिक्षक दस मिनट भी विलंब से आए तो हाजिरी कटनी तय है। साफ-सफाई के बाद प्रार्थना, फिर पढ़ाई शुरू। इसके बाद शाम में भी बच्चों को शिक्षादान। सब कुछ मुफ्त। इतना ही नहीं, कोई आर्थिक अभाव में है तो अपने वेतन के पैसे से उसके लिए कॉपी-किताब भी खरीदते हैं।
वे बताते हैं-मेरी पीढ़ी ने जो झेला, वह आज की पीढ़ी क्यों झेले। गरीबी को नजदीक से देखा। जंगल से लकड़ी लाकर जलावन की व्यवस्था करना घर के हर सदस्य की ड्यूटी थी। तब खाना बनता था। हर रविवार को गमछा में रोटी या सत्तू बांधकर लकड़ी लाने जाते थे। वह सब याद है, इसलिए चाहता हूं कि हर घर के बच्चे पढ़कर आगे बढ़ें।
वे कहते हैं-छह माह बाद रिटायर्ड हो जाएंगे, पर शिक्षक कभी रिटायर्ड नहीं होते। एक इच्छा रह गई है कि गांव में पुस्तकालय हो। सेवानिवृत्ति के बाद अपने गांव दरबार में इसी तरह बच्चों को पढ़ाता रहूंगा। मध्य विद्यालय भगहर उनके समर्पण की गवाही खुद देता है, जहां चारों तरफ साफ-सफाई। बच्चे स्कूल ड्रेस में। एक सुदूर ग्रामीण इलाके के किसी सरकारी स्कूल में यह दृश्य चौंका सकता है, पर यहां यह दिखता है।