गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र की ढाई सौ एकड़ भूमि हुई आबाद, नाबार्ड का सहयोग व ग्रामीणों की मेहनत रंग लाई

नक्सल प्रभावित गया जिले के डुमरिया के बाघपुर औरवाटाड़ पनछंदा गांव से करीब ढाई सौ एकड़ भूमि आबाद हो गई। यहां विभिन्न तरह के फसल उपजाए जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि नाबार्ड की मदद और ग्रामीणों के श्रमदान की वजह से बंजर भूमि में हरियाली आई है

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Sun, 18 Jul 2021 09:14 AM (IST) Updated:Sun, 18 Jul 2021 01:13 PM (IST)
गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र की ढाई सौ एकड़ भूमि हुई आबाद, नाबार्ड का सहयोग व ग्रामीणों की मेहनत रंग लाई
दिनसगरी पईन में बहता पानी । जागरण फोटो।

 मानपुर (गया), जागरण संवाददाता। जंगलों और पहाड़ पर बसे लोग कभी सोचे नहीं थे कि उनकी बंजर भूमि एक दिन उपजाऊ बन जाएगी। लेकिन आज नक्सल प्रभावित गया जिले के डुमरिया के बाघपुर, औरवाटाड़, पनछंदा गांव से करीब ढाई सौ एकड़ भूमि आबाद हो गई। जिसमें विभिन्न तरह के फसल उपजाए जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि नाबार्ड की मदद और ग्रामीणों के श्रमदान  की वजह से आज बंजर भूमि में हरियाली आई है। इसके वजह आज तीन गांव से करीब डेढ़ सौ घर में बेहतर भोजन बनना शुरू हो गया। उन लोगों की आथिॅक स्थिति अच्छी हो गई। रहन सहन भी बदल गया। वे अपने बच्चों को  पढा़ना-लिखाना शुरू कर दिए। उक्त लोगों की खुशहाली की चर्चा आज पूरे इलाके में हो रही है।

ऐसे आबाद हुआ जंगल में बसा गांव

दस साल पूर्व समन्वय तीर्थ संस्था के सचिव ओम सत्यम त्रिवेदी के साथ नावार्ड के अधिकारी डुमरिया के बाघपुर जंगल में पहुंचे। उक्त जंगल में बसे गांव में रहने वोलों की दैयनिय स्थिति देख दंग रह गए। यहां की भूमि उपजाऊ है लेकिन सिंचाई के संसाधन के अभाव में बंजर बनी है। बारिश का पानी पहाड़ से आता है और किसानों के खेत से गुजरते हुए चला जाता है। अगर पानी को ठहराव करने की व्यवस्था कर दी जाए तो किसानों की बंजर भूमि उपजाऊ हो सकती है। तब जाकर नावार्ड के अधिकारी ग्रामीणों के साथ बैठक की। जहां दो पहाड़ी के बीच बांध बांधकर वर्षा के पानी को इक्कठा करने की योजना बनी। नावार्ड की आथिॅक मदद और ग्रामीणों के श्रमदान से बना  अर्जुन बांध वर्ष 2011 में  बांधा गया। फिर उससे तीन किमी लंबी दिनसगरी पईन निकाली गई। जिससे आज ढाई सौ एकड़ भूमि सिंचित हो रही है।

पइन का मुहाना टूटने से परेशान  किसान

अर्जुन बांध के समीप पइन की मुहाना टूटने से किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंच रहे थे। जिससे किसानों के खेत में बेहतर फसल नहीं उपज रहे थे। यहां के किसानों की स्थिति पूर्व की तरह होने लगी। तब जाकर नावार्ड ने बारबार टूटने वाली बांध को बांधने की प्लानिग बनाई। नावार्ड की 40 हजार रुपए सहयोग की और ग्रामीणों ने श्रमदान कर बांध बाधने की पहल शुरु की । अप्रैल 2021 में टूटे हुए बांध बांधा गया।  तब जाकर उक्त खेत में विभिन्न तरह के फसल उपजने लगे।

क्या कहते हैं किसान

लालु भुइया, रामनंदन भुइयां, जानकी पासवान, कैलाश यादव आदि का कहना है कि बांध बांधकर वर्षा के पानी जमा होने हमलोगों का बंजर भूमि उपजाऊ हो गयी है। आज हमलोग मूंग, मडुंआ, मकई,धान आदि फसल उपजा रहे हैं। बांध में सालो भर पानी रहती है। जिससे गेहूं की फसल भी सिंचित होती है।

क्या कहते संस्था के लोग

ओम सत्यम त्रिवेदी का कहना है कि नावार्ड प्रायोजित बागपुर जलवायु परिवर्तन परियोजना समन्वय तीर्थ संस्था द्वारा अति नक्सल प्रभावित डुमरिया में चलाई जा रही है। परिजना के द्वारा बांध बांधकर ग्राम पनछंदा में दिनसगरी पईन का निमाॅण किया गया। जिससे तीन गांव के ढाई सौ एकड़ भूमि सिंचित हो रही है। बाध में सालों भर पानी भरा रहता हैं। जिससे इस इलाका में  जलस्तर की कमी कभी नहीं होती है।

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