गया के 24 में से 20 प्रखंड थे नक्‍सल प्रभावित, सीआरपीएफ ने विश्वास और सम्मान से लिख दी बदलाव की कहानी

पहले पुलिस को देखकर लोग घरों का दरवाजा बंद कर लेते थे। 2007 में सीआरपीएफ व कोबरा कैंप की स्थापना से शांति की पहल शुरु हुई। सिविक एक्शन प्रोग्राम के तहत महिलाओं को स्वजरोगार व युवाओं को प्रशिक्षण और कार्य कौशल से जोड़ा गया।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 09:11 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 01:43 PM (IST)
गया के 24 में से 20 प्रखंड थे नक्‍सल प्रभावित, सीआरपीएफ ने विश्वास और सम्मान से लिख दी बदलाव की कहानी
सीआरपीएफ के अधिकारी व जवान ग्रामीणों का स्‍वास्‍थ्‍य जांच कराते हुए, जागरण फाइल फोटो।

गया, नीरज कुमार। गया जिला के 24 प्रखंड अंतर्गत 332 पंचायत है। 24 में से 20 प्रखंड नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आता है। 1990 के दशक में नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भाकपा माओवादी का वर्चस्व था, लेकिन 21वीं सदी में व्यापक बदलाव दिख रहा है। नक्सली संगठन का वर्चस्व कम हो गया। यहां रहने वाले लोगों के अंदर पुलिस ने विश्वास और सम्मान जगाया। आपस में लोग हिलमिल रहने लगे। इन क्षेत्र की महिलाएं भी स्वाभिमान के साथ काम कर रही है। उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा गया है। यहां के युवाओं को कार्य कौशल से जोड़कर समाज के मुख्य धारा में जोड़कर रखा गया।

2007 से बदलाव की बयार

गया जिला में वर्ष 2007 में 159 वीं सीआरपीएफ बटालियन की स्थापना हुई। पहले जिला मुख्यालय, उसके बाद बाराचट्टी के बीबी पेसरा, 205 कोबरा की स्थापना बाराडीह की गई। चूंकि बाराचट्टी में सर्वाधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र में था। इसलिए शांति की बयार यहां शुरु की गई। उसके बाद अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज, बांकेबाजार, डमरिया प्रखंड में कैंप की स्थापना के बाद व्यापक बदलाव आया। धीरे-धीरे कैंपों में रहने वाले जवान और पदाधिकारी आम से लोगों से जुडऩे लगे। शुरुआती दौर में पुलिस को देखकर लोग घरों का दरवाजा बंद कर लेते थे। उनसे मिलना तो दूर बात तक नहीं करते थे, चूंकि नक्सलियों का खौफ था। लेकिन लगातार पुलिस का कैंप और गश्ती होने लगी। तब ग्रामीण पुलिस के संपर्क में आए। उनके प्रति विश्वास जगा और सम्मान पैदा हुआ।

कहां-कहां है नक्सल क्षेत्र

गया जिले के अति नक्सल क्षेत्र में इमामगंज, डुमरिया, बांकेबाजार, आमस, बाराचट्टी, परैया, गुरुआ, गुरारु, शेरघाटी, कोंच, डोभी सहित 20 प्रखंडों के अधिकांश पंचायत व गांव शामिल है।

कौन-कौन क्षेत्र में आया बदलाव

नक्सल क्षेत्र में बदलाव लाने में वर्ष 2014 के बाद जब केंद्र एनडीए की सरकार बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली। तब नक्सल क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए स्वजरोजार से जोडऩे के लिए बड़ी राशि मुहैया कराया गया। इसी के तहत विशेष केन्द्रीय सहायता योजना में राशि मिली।             स्वास्थ्य विभाग के अन्तर्गत नक्सल के सूदूर क्षेत्रों में 46 एल वन सेन्टर का निर्माण,अनुमंडलीय अस्पताल, शेरघाटी, टिकारी में प्रस्तावित आई०सी०यू० एवं ऑपरेशन थियेटर उत्क्रमन का कार्य किया जाना है। शिक्षा विभाग के अन्तर्गत गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 20 प्रखण्डों में आधुनिक पुस्तकालय का निर्माण एवं पुस्तकों की आपूर्ति योजना पूर्ण की गई है।

सिविक एक्शन प्रोग्राम: अलग-अलग प्रखंड में सीआरपीएफ, कोबरा द्वारा घरेलू समान से लेकर स्वरोजगार के लिए बर्तन, सिलाई मशीन उपलब्ध कराया। महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर सिलाई, कढ़ाई, पेङ्क्षटग व मेहंदी का प्रशिक्षण दिया गया। साथ हीं लडका व लड़की को मोबाइल और तकनीकी प्रशिक्षण से जोड़ा गया। प्रशिक्षण के उपरांत कई युवा दूसरे प्रदेशों में नौकरी कर रहे हैं।

प्रोत्साहन: केंद्रीय सहायता योजना के तहत जो युवा पुलिस में जाना चाहते थे उन्हें सीआरपीएफ कैंप में शारीरिक और सैद्धांतिक अभ्यास कराया गया। बिना कोई शुल्क के उन युवाओं को निरंतर प्रयास की जा रही है। यही वजह है कि सीआरपीएफ पर विश्वास जगा। कैंप के माध्यम से जो युवा ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे हैं, उनकी शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए समय-समय पर खेलकूद का आयोजन एवं उन्हें खेलकूद समान उपलब्ध कराया गया।

निष्कर्ष : विश्वास, सम्मान, आत्मबल, स्वरोजगार के बाद गया में नक्सली गतिविधियां काफी कम हुई है। हर मोर्च पर पुलिस को सफलता मिली है। नक्सली के फन को कुचलने की कोशिश हुई है। पिछले एक दशक से नक्सलियों द्वारा बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दिया गया है। चूंकि समय रहते पुलिस को सूचना मिल जाती है और उन पर पुलिस की बड़ी कार्रवाई होती है।

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