दशकों से बदहाली का आंसू बहा रहा चोरदाहा गांव
अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी गाव चोरदाहा अपनी दुर्दशा के लिए आसू बहा रहा है। सड़क हो या पानी, शिक
अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी
गाव चोरदाहा अपनी दुर्दशा के लिए आसू बहा रहा है। सड़क हो या पानी, शिक्षा हो या चिकित्सा, मनरेगा हो या सामाजिक ताना-बाना इस गाव में सब ध्वस्त पड़ा है। गाव के विकास के लिए तमाम दावे झूठे और वादे महज जुमला साबित हुए हैं।
गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालय से 17 किमी दूर बसे झाझ पंचायत के चोरदाहा गाव की बदहाली का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वहा लोगों की मूलभूत सुविधाओं के नाम पर सिर्फ चापाकल लगे हैं। किसी सांसद या विधायक ने इस गांव की दशा बदलने की जहमत नहीं उठाई। अंतत: युवा रोजगार की तलाश में गाव को छोड़ प्रदेश चले गए और अब बुजुर्ग-महिलाएं ही गांव में बची हैं। महिलाएं जंगल से सूखी लकड़ी चुनकर उसे आसपास के बाजारों में बेचकर परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं।
एक हजार आबादी वाले इस गाव में पहुंचने के लिए जंगल से मेढ़नुमा रास्ते से होकर बरवादाह नाले को पार करना पड़ता है। नाले में पानी भर जाए तो पानी घटने का इंतजार करना ही एकमात्र विकल्प है। बीते माह गाव की दो महिलाओं को रात में प्रसव पीड़ा हुई तो किसी तरह बच्चों को जना पर सुबह होते-होते उनकी मौत हो गई।
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विकास से अछूता
वर्ष 2009 में सूबे के पूर्व कल्याणी मंत्री जीतनराम माझी ने बाराचट्टी प्रखंड के 22 गावों को आदर्श ग्राम के लिए चयनित किए थे। सभी में 45 लाख रुपये खर्च किए गए। इन गांवों में चोरदाहा भी शामिल है, जहा योजना के अनुसार राशि तो खर्च हुई पर विकास नहीं हुआ।
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बारिश होने पर स्कूल
हो जाती है बंद
गांव में मध्य विद्यालय है, लेकिन बारिश होने पर बंद रहता है। गांव में आने-जाने के लिए नाले को पार करना पड़ता है। बारिश होने पर नाले का जलस्तर बढ़ जाता है, जिस कारण शिक्षक स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं।
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किसी घर में शौचालय नहीं
चोरदाहा गाव को स्वच्छता अभियान से कोई वास्ता नहीं है। एक भी घर में शौचालय नहीं बन पाया है। लोग जंगल में ही शौच के लिए जाते हैं।
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झोला छाप के सहारे
स्वास्थ्य सुविधा
गाव में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। कोई बीमार पड़े तो झोला छाप आकर इलाज करते हैं। गांव से आठ किलोमीटर दूर अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन वहां तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं।
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मर्जी से खुलता है
आंगनबाड़ी केंद्र
गाव मे आंगनबाड़ी केंद्र है पर स्टाफ की मर्जी से खुलता और बंद होता है। यहा कोई देखने और सुनने वाला नहीं है। यहां प्रशासन तो सिर्फ नाम के लिए है।
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पेयजल के लिए लगा
पंप पर बिजली नहीं
गाव में पेयजल के लिए वैसे सात चापाकल लगे हैं, जबकि मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना से नलजल योजना अंतर्गत सभी 160 घरों तक पाइप बिछाया गया। घरों में पाच माह पहले से नल लगे हैं। परंतु बिजली नहीं होने के कारण इसका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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अशिक्षित होना भी
पिछडे़पन का कारण
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार चाहे लाख दावे कर ले पर हकीकत इससे कोसों दूर है। चोरदाहा गाव जीता जागता प्रमाण है। इस गाव में आज तक कोई मैट्रिक पास नहीं किया है। अशिक्षा होना भी इस गाव के पिछडे़पन का बहुत बड़ा कारण माना जा सकता है।
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हमलोगों को देखने वाला कोई नहीं है। बिजली नहीं रहने के कारण मोमबत्ती जला किसी तरह रात का खाना बनाकर सो जाते है। रोशनी के अभाव में बच्चे शाम होने के बाद पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। राशन में भी दो महीने पर एक बार तेल और आनाज मिलता है।
मीना देवी, ग्रामीण
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गाव के आसपास जंगल नहीं होता तो दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाते। जीना मुश्किल हो जाता। हमें देखने वाला कोई नहीं है। न तो आज तक विधायक और न ही सांसद आए हैं।
मालो देवी, ग्रामीण
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हमलोग भगवान का नाम लेकर बारिश का मौसम बिताते हैं। क्योंकि नाले में पानी आने के बाद गाव से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसी रास्ते व साधन के अभाव में एक माह पूर्व बहू ने रात में बच्चे को जना और सुबह में उसकी मौत हो गई। तीन माह पहले रात के समय बेटी ने बच्चे को जन्म दिया और कुछ ही घंटे बाद उसकी भी इलाज के अभाव में मौत हो गई। अगर सड़क सुविधा होती है ऐसा नहीं होता।
कारू माझी, ग्रामीण
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गाव में हमलोग रहते है। त्योहारों पर युवा गांव आते हैं तो चहल-पहल होती है पर उनके जाने के बाद फिर वीरानगी छा जाती है। शाम होते ही सबके सब अपने घरों में कैद हो जाते हैं। भगवान के भरोसे छोड़ दिए हैं।
चन्द्र माझी, ग्रामीण
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बरवादाहा नाला सबसे
बड़ी रुकावट : मुखिया
मुखिया नीलू कुमारी कहती हैं, गाव का विकास हो इसके लिए हम हर वक्त पंचायत में जो योजना है उससे करने के लिए तैयार हैं। गाव में पीसीसी का कार्य हुआ है और योजनाओं का प्रस्ताव तैयार किया गया है। विधायक ने एक चबूतरे का निर्माण कराया है, लेकिन गाव के लोगों के बीच सबसे बड़ी समस्या सड़क की है। यह हमारे बस की बात नहीं है। अगर सरकार या वरीय पदाधिकारी का निर्देश मिले तो मनरेगा योजना से पार्ट में बाट कर सड़क का निर्माण पंचायत से किया जा सकता है। परंतु बीच में पडने वाले बरवादाहा नाला सबसे बड़ी रुकावट है।