बंद हो गई मशीनों की खट-खट, रोटी पर संकट
मोतिहारी। मेहसी प्रखंड का बथना गांव। यह कभी सीप बटन उद्योग का गढ़ था। हर घर से मशीन चलन
मोतिहारी। मेहसी प्रखंड का बथना गांव। यह कभी सीप बटन उद्योग का गढ़ था। हर घर से मशीन चलने की आवाज लोगों को लुभाती थी। इस गांव में आज सन्नाटा पसरा है। कुछ ऐसी ही स्थिति पास के मैन मेहसी व पुरानी मेहसी सहित अन्य गांवों की है। यहां तकरीबन 550 मशीनें बंद होकर जंग खा रही हैं। इसके मालिक तो बेरोजगार हुए ही हैं, यहां काम करने वाले तकरीबन साढ़े पांच हजार कारीगर भी रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर चुके हैं। सीप बटन बनाने का कार्य जब अच्छे दौर में था, तब इन गांवों में खुशहाली थी। मालिक से लेकर मजदूर तक को रोटी की चिता नहीं थी। आज बदहाली का दौर है। बथना गांव में ही 300 से अधिक मशीनें चलती थीं। कच्चे माल और पूंजी की कमी के चलते उद्योग दम तोड़ता गया। सरकारी स्तर पर मदद भी नहीं मिली। काम बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। जो मजदूर काम करते थे, वे दिल्ली व मुंबई के अलावा पंजाब पलायन कर गए।
कभी सीप बटन उद्योग चलाने वाले मोहम्मद सरफुद्दीन अंसारी कहते हैं कि दो दशक पूर्व यहां की पहचान सीप बटन से होती थी। हर घर में इसके हुनरमंद कारीगर थे। मांग कम होने से उद्योग धीरे-धीरे बंद हो गए। वे अब खेती व लीची का व्यवसाय कर जीवन गुजार रहे हैं।
सत्यनारायण प्रसाद कहते हैं कि पूंजी के अभाव में नई मशीनें नहीं लगा सके। ऊपर से लागत भी बढ़ गई। स्थानीय स्तर पर ईजाद की गई पंपिगसेट चालित मशीन भी पूरी तरह से बंद करना पड़ी। सरकारी मदद मिले तो कुछ हो। खेती-बारी कर जीवन गुजार रहे हैं।
मो. मुकीम कहते हैं कि कच्चे माल की कमी और बाजार में बटन की मांग कम होने से लोग इस व्यवसाय को छोड़ दूसरे काम में लग गए। अगर व्यवस्थित तरीके से इस व्यवसाय को संचालित करने की सरकार व्यवस्था करे तो यह उद्योग अपनी पुरानी पहचान को कायम कर सकता है।
मो. आबिद कहते हैं कि पहले छोटे-छोटे सीप बिहार और यूपी की नदियों से निकलते थे। आज उसका आकार बड़ा हो गया है, जो महंगा है। प्रशिक्षित मजदूर का अभाव है। इस वजह से काम बंद करना पड़ा। जो कारखाने चले रहे हैं, वे भी बंदी की ओर हैं।