स्टिग बग व लॉकडाउन से संकट में लीची किसान

मोतिहारी। एक तरफ स्टिग बग व लीची माइट जैसे कीटो का कहर तो दूसरी तरफ कोरोना व लॉक ड

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 11:43 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 11:43 PM (IST)
स्टिग बग व लॉकडाउन से संकट में लीची किसान
स्टिग बग व लॉकडाउन से संकट में लीची किसान

मोतिहारी। एक तरफ स्टिग बग व लीची माइट जैसे कीटो का कहर तो दूसरी तरफ कोरोना व लॉक डाउन की मार से लीची हब के रूप में देश मे मशहूर मेहसी के लीची किसान संकट में है। स्थिति यह है कि मई माह में देश के विभिन्न राज्यो से आने वाले व्यवसायियों से गुलजार रहने वाला मेहसी वीरान नजर आ रहा है। इस बार अभी तक बाहर के व्यवसायियों द्वारा एक भी लीची के बाग की खरीदारी नहीं करने की बात सामने आई है। कोविड 19 प्रोटोकाल के तहत लगे लॉकडाउन के कारण लकड़ी के बक्सा बनाने वाले मजदूर, हार्डवेयर व्यवसायी, ट्रांसपोर्ट जैसे व्यस्था भी इस संकट से अछूता नहीं है। मौसम के प्रतिकूल प्रभाव के कारण लीची के फल भी अभी तक अपुष्ट है। जबकि 15 मई से प्रत्येक वर्ष लीची का टूटना आरंभ हो जाता था। इस बार ऐसा प्रतीत नही हो रहा है। पिछले वर्ष भी लॉकडाउन के कारण किसानों व व्यापारियों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी। इस बार भी स्थिति पूर्ववत बनी हुई है। यह अलग बात है कि एक सप्ताह पूर्व से हो रही बरसात से किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली है। लेकिन पर्याप्त बारिस नही होने के कारण आशातीत सफलता मिलने की उम्मीदें न के बराबर है। बताया जाता है कि अकेले मेहसी में करीब 11 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। अगर पूरे जिले को शामिल कर लिया जाए तो यह आंकड़ा 15 को पार कर जाता है। जिसमे मेहसी की लीची अन्य क्षेत्रों के वनिस्पत गुणवत्ता व स्वाद में अव्वल है। कारोबार के ²ष्टिकोण से अगर देखा जाए तो प्रतिवर्ष कड़ोरो रुपये का कारोबार होता है। यह कृषि व्यवसाय यहां के किसानों की आर्थिक रीढ़ मानी जाती है। देश का यह पहला कृषि व्यवसाय है जो करीब डेढ़ माह तक प्रतिदिन हजारों हाथों को रोजगार मुहैया कराने के साथ साथ ट्रांसपोर्टर, हार्डवेयर, व लकड़ी व्यवसाइयों को एक साथ जोड़ता है। पिछले पांच वर्षों से यह कृषि जनित व्यवसाय बिभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। उत्पादन में भारी गिरावट आई है। किसान भूखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं। इस लिए की उपज में आई भारी गिरावट के कारण उनके आर्थिक समृद्धि का रास्ता धीरे-धीरे बंदी के कगार पर है। विडंबना यह है कि बिभागीय स्तर पर इन आपदाओं से लीची की स्थायी सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदम का कोई सार्थक परिणाम अब तक नहीं निकल सका है। यह अलग बात है कि स्टिग बग नामक कीटो से मेहसी के लीची के बचाव हेतु कनीय वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र पिपराकोठी, सहायक निदेशक उद्यान, सहायक निदेशक पौधा संरक्षण सहित तीन सदस्यीय कमिटी के अनुशंसा पर जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने करीब 17 लाख रुपए अनुमानित व्यय का योजना तैयार कर राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा है। लेकिन अभी तक इसका भी कोई प्रतिफल सामने नहीं आया है। जिससे किसानों में मायूसी है। सामाजिक शोध विकास केंद्र मेहसी के संस्थापक अध्यक्ष अमर, किसान व व्यवसायी हाजी महबूब अली, नैमुल हक, मोहम्मद एहसान, लतिफुर रहमान आदि बताते है कि कोविड 19 के दूसरी और अब तीसरी लहर की संभावना के बीच लगे लॉकडाउन लीची किसानों व व्यवसायियों के सामने बड़ी मुसीबत के रूप में सामने है। स्टिग बग व लीची माइट जैसे कीटो के दुष्प्रभाव से आधे से अधिक फसल बर्बाद हो चुके हैं। जो आधे शेष बचे है वह मौसम की मार झेल रहे है। उत्पादन में भारी गिरावट आई है। इस बार भी बड़े पैमाने पर लीची व्यवसाय को प्रभावित होने से नही रोका जा सकेगा। क्योकि 15 मई से लीची टूटने का आस लगाए बैठे सैकड़ों महिला पुरुष मजदूर, कारीगर, ट्रांसपोर्टर, हार्डवेयर व्यवसायी, किसान, व्यापारी सब के सब निराश है। मेहसी क्षेत्र के एक मात्र नगदी फसल के रूप में लीची यहां के किसान, व्यापारी व मजदूरों के आर्थिक समृद्धि का मजबूत स्तम्भ बन कर खड़ा रहा है।सामाजिक कार्यकर्ता अमर ने उपरोक्त बिदुओं की ओर जिला प्रशासन और बागवानी विकास बोर्ड का ध्यान आकर्षित करते हुए मांग किया कि जिस प्रकार सरकार ने सब्जी विक्रेताओं के लिए ऑनलाइन सब्जी बिक्री का मार्ग प्रशस्त किया है। उसी प्रकार लीची व्यवसायियों और व्यापारियों के लिए बाजार और माल ढुलाई के वास्ते सुगम रास्ता निकालने का प्रयास करे, जिससे मेहसी और जिले के लीची उत्पादक किसानों को सबलता प्रदान किया जा सके। सरकार स्वयं यहां के लीची उत्पाद की उचित कीमत तय कर खरीददारी करे व बाजार उपलब्ध करवाए। ताकि किसानों को होने वाले क्षति की भरपाई किया जा सके।

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