केविवि के भवन निर्माण के लिए अभी 167 एकड़ भूमि की दरकार
मोतिहारी में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय को अस्तित्व में आए पांच वर्ष से अधिक हो गए। बावजूद इसके विश्वविद्यालय का अपना परिसर पूर्णत आकार नहीं ले सका है। भवन निर्माण का काम शुरू होना दूर की बात है डीपीआर भी तैयार नहीं हो सकी है। इसके पीछे भूमि की अनुपलब्धता को कारण बताया जा रहा है।
मोतिहारी । मोतिहारी में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय को अस्तित्व में आए पांच वर्ष से अधिक हो गए। बावजूद इसके विश्वविद्यालय का अपना परिसर पूर्णत: आकार नहीं ले सका है। भवन निर्माण का काम शुरू होना दूर की बात है, डीपीआर भी तैयार नहीं हो सकी है। इसके पीछे भूमि की अनुपलब्धता को कारण बताया जा रहा है। विश्वविद्यालय के लिए कुल तीन सौ एकड़ भूमि की दरकार है। इसमें से अबतक जिला प्रशासन द्वारा मोतिहारी के बनकट में मात्र 134 एकड़ जमीन विश्वविद्यालय को हस्तांतरित की गई है। अब भी 167 एकड़ भूमि की दरकार है। बताया जाता है कि शेष भूमि के अधिग्रहण कार्य में शिथिलता के कारण इसमें विलंब हो रहा है। परिणामस्वरूप भवन निर्माण का काम भी अधर में लटका पड़ा है। किराए के भवन में हो रहा केविवि का कार्य
अपना भवन नहीं होने के कारण विश्वविद्यालय के काम-काज के लिए अलग-अलग कई भवनों का उपयोग किया जा रहा है। इनमें से कुछ किराए के भी हैं। प्रशासनिक कार्य मोतिहारी के रघुनाथपुर स्थित किराए के भवन से हो रहे हैं। कुलपति सहित अन्य सभी विश्वविद्यालयीय अधिकारियों के कार्यालय इसी भवन में हैं। जबकि शैक्षणिक कार्य के लिए तीन अलग-अलग भवन उपयोग में हैं। इनमें से एक बलुआ टाल स्थित किराए का भवन है। सबसे पहले जिला स्कूल के छात्रावास को विश्वविद्यालय के उपयोग के लिए लिया गया था। वहां आज भी शैक्षणिक गतिविधियां संचालित हो रही हैं। या यू कहें कि केंद्रीय विश्वविद्यालय का वह स्थान केंद्र है, तो गलत न हो होगा। हालांकि बनकट स्थित विश्वविद्यालय के स्वयं के परिसर में बने एक छोटे से भवन में भी शिक्षण कार्य हो रहे हैं। महापुरुषों के नाम से जाने जाते हैं कैंपस
केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य के लिए उपयोग किए जा रहे कैंपस के नाम महापुरूषों के नाम से जुड़े हैं। प्रशासनिक भवन बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के नाम पर है। जबकि जिला स्कूल परिसर स्थित विश्वविद्यालय का कैंपस चाणक्य परिसर के नाम से जाना जाता है। वहीं, बलुआ टाल स्थित किराए के भवन की पहचान पंडित दीनदयाल उपाध्याय कैंपस के रूप में है। इधर, बनकट स्थित केविवि का भवन महात्मा गांधी के नाम पर है। इतना ही नहीं, सभी वर्ग कक्षों के नाम भी नदियों एवं नक्षत्रों के नाम पर हैं। जगह-जगह विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से लिए गए श्लोक अंकित किए गए हैं। मकसद है कि इनके अनुकूल परिसर में सकारात्मकता की अनुभूति हो।
मिले भूखंड में हो रही मिट्टी कटाई
एक तरफ विश्वविद्यालय के लिए शेष जमीन की आवश्यकता बताई जा रही है, तो दूसरी ओर मिल चुके भूखंड के साथ मनमानी किए जाने से परेशानी बढ़ रही है। बनकट में जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए भूखंड के एक बड़े हिस्से में अवैध रूप से मिट्टी कटाई का काम भी चल रहा है। इसके लिए कई एकड़ भूभाग में तालाब-सा नजारा दिख रहा है। जब भवन निर्माण के लिए इस जमीन का उपयोग होगा अब इन बड़े तालाबनुमा गड्ढों को भरने में बड़ी राशि खर्च करनी पड़ेगी। बताया जाता है कि प्रशासन के स्तर पर इस पर रोक लगाने की कोशिश भी की गई है, मगर लोग चोरी-छुपे मिट्टी कटाई से बाज नहीं आ रहे। केंद्रीय विश्वविद्यालय को अब तक 134 एकड़ भूमि मिली है। अभी 167 एकड़ जमीन की दरकार है। जमीन मिलने के बाद भवन निर्माण के लिए डीपीआर तैयार किया जाएगा। तत्पश्चात उसे स्वीकृति के लिए सरकार को भेजा जाएगा। इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद ही भवन निर्माण संभव है। हालांकि विश्वविद्यालय स्तर पर सभी कार्यों की तैयारी कर ली गई है। दूसरी ओर शिक्षण कार्य को लेकर विश्वविद्यालय लगातार प्रगति कर रहा है। बीटेक के छात्रों का शत-प्रतिशत प्लेसमेंट इसका उदाहरण है।
- प्रो. संजीव कुमार शर्मा
कुलपति, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय
भूमि अधिग्रहण को लेकर प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। बनकट एवं मठिया में भूमि को चिन्हित कर अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। उम्मीद है कि शीघ्र ही इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा। अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरा होते ही जमीन विश्वविद्यालय को हस्तांतरित कर दी जाएगी।
- विजय कुमार
जिला भू-अर्जन पदाधिकारी, पूचं