बढ़ती महंगाई व सामान की घटतौली की चक्की में पिस रहे उपभोक्ता
मोतिहारी। एक तरफ लगातार बढ़ती महंगाई तो दूसरी तरफ घटतौली के कारण आम उपभोक्ता आजि
मोतिहारी। एक तरफ लगातार बढ़ती महंगाई तो दूसरी तरफ घटतौली के कारण आम उपभोक्ता आजिज हो चले हैं। हाट बाजार से लेकर कतिपय पेट्रोल पंपों पर भी घटतौली कर उपभोक्ताओं को चुना लगाने की परंपरा बदस्तूर जारी है। वही डीलरों द्वारा भी खाद्यान्न वितरण के दौरान कम तौल किये जाने की शिकायत सामने आती रहती है। वह भी तब जबकि अब इलेक्ट्रॉनिक वाट मशीन से तौल कर ही खाद्यान्न का वितरण किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक वाट में तौल पर तो 20 किलो वजन दिखते हैं, लेकिन जब उसी अनाज को दूसरी जगह पर तौला जाता है तो वह कम होता है। सूत्र बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक वाट मशीन के मीटर में छेड़छाड़ करने के बाद प्रत्येक किलो में करीब 10 ग्राम का शॉर्टेज कर दिया जाता है। ऐसा माप तौल विभाग के अधिकारियों एवं कर्मियों की मिलीभगत से मीटर को छेड़छाड़ कर उस इलेक्ट्रॉनिक वाट मशीन को डबल वायर सीलिग कर दिया जाता है। वही कुछ विक्रेता खूद भी इस प्रकार का छेड़छाड़ पहले से करवाकर सिर्फ डबल वायर सीलिग विभाग से करवा लेते हैं।
इनसेट
पेट्रोल पंप हो या बाजार ठगे जा रहे उपभोक्ता
पिछले कुछ सालों में इलेक्ट्रॉनिक वाट मशीन का चलन जोरो पर है। अमूमन लोगो को लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक मशीन में सही वजन दिया जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि तकरीबन सभी जगहों पर मशीन में छेड़छाड़ कर उपभोक्ताओं से पूरा पैसा वसूलने के बावजूद भी समान का वजन कम दिया जाता है। मिठाई, किराना, मांस सहित तमाम दुकानों में ग्राहकों को घटतौली का शिकार होना पड़ता है। वही कुछ ऐसी ही कारस्तानी पेट्रोल पंपो पर भी सुनने को मिलती है। बताते हैं कि कतिपय पम्पों पर डिजिटल मीटर के साथ छेड़छाड़ कर उपभोक्ताओं को ठगा जाता है। एक लीटर में 20 से 30 मिलीलीटर तक पेट्रोल या डीजल कम दिए जाते हैं। वही मिलावट की शिकायत भी कई बार सुनने को मिलती है।
इनसेट
मौन रहता है विभाग
बताते हैं कि कोरम पूरा करने के लिए विभाग द्वारा अक्सर जांच अभियान चलाया जाता है। लेकिन कतिपय कारणों से इलेक्ट्रॉनिक वाट मशीन में की गई छेड़छाड़ को नजरअंदाज कर दिया जाता है। दूसरी ओर जिले के ढेर सारे ऐसे पेट्रोल पंप हैं जहां उपभोक्ताओं के साथ घटमापी की जाती है। बताया जाता है कि यहां भी डिजिटल मीटर को छेड़छाड़ कर उपभोक्ताओं को कम वजन दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी जिले के आला अधिकारियों को नहीं है। फिर भी कार्रवाई नहीं होती। जबकि इसका नुकसान उपभोक्तओं को उठाना पड़ता है।