लीची के मंजर को नुकसान पहुंचा सकते हैं ¨स्टक बग कीट

लीची के किसानों को अब सावधान हो जाने का वक्त आ गया है। पिछले वर्ष की भांति इस बार भी लीची के मंजर व फलों को चट करने वाला ¨स्टक बग नामक कीड़ा लीची के बागों में हमले को तैयार है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Feb 2019 05:15 AM (IST) Updated:Wed, 20 Feb 2019 05:15 AM (IST)
लीची के मंजर को नुकसान पहुंचा सकते हैं ¨स्टक बग कीट
लीची के मंजर को नुकसान पहुंचा सकते हैं ¨स्टक बग कीट

मोतिहारी। लीची के किसानों को अब सावधान हो जाने का वक्त आ गया है। पिछले वर्ष की भांति इस बार भी लीची के मंजर व फलों को चट करने वाला ¨स्टक बग नामक कीड़ा लीची के बागों में हमले को तैयार है। अगर अभी से इसके बचाव को लेकर सावधान नहीं हुए तो भारी क्षति उठानी पड़ सकती है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर के वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को लेकर किसानों को उस कीट से लड़ने के लिए अभी से ही प्रयास आरंभ करने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों के सर्वेक्षण में पुन: पाए गए प्रौढ़ कीट केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन ¨सह द्वारा स्वीकृत व राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर द्वारा कार्यान्वित फार्मर फ‌र्स्ट परियोजना के तहत वैज्ञानिकों की दो सदस्यीय टीम ने पूर्व में प्रभावित लीची के बागों का भ्रमण कर सर्वेक्षण किया। टीम में अनुसंधान केंद्र के कीट वैज्ञानिक डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव व वरीय वैज्ञानिक डॉ. संजय ¨सह शामिल थे। बागों के सर्वेक्षण के दौरान ¨स्टक बग नामक यह कीट प्रौढ़ावस्था में काफी संख्या में लीची के बागों में पाए गए हैं। इनसे बचाव के लिए किसानों को अभी से ही सामूहिक प्रयास आरंभ करने की सलाह दी गई है। पिछले वर्ष हुआ था लीची को नुकसान मई 2018 में इस कीट के बड़े पैमाने पर लीची के बागों में आक्रमण के कारण बड़े पैमाने पर लीची के फसल बर्बाद हुए थे। किसानों में त्राहिमाम मच गया था। बाग के बाग सुने पड़ गए थे। जब तक इससे बचाव हेतु कृषि वैज्ञानिक तत्पर होते तब तक बहुत कुछ बर्बाद हो गया था। अब ऐसा नहीं हो इस बात को लेकर वैज्ञानिक पूर्व से ही बचाव को लेकर तत्पर हो चुके हैं। बस किसानों को सक्रिय होने की जरूरत है। कैसे करें बचाव वैज्ञानिकों ने बताया कि इससे बचाव के लिए तत्काल पौधों को हिलाकर गिरे हुए प्रौढ़ कीटों को इकट्ठा कर जमीन में दबा दें। जिन किसानों के बागों में पिछले साल इसका अधिक प्रभाव था वे तत्काल ट्राइजोफास (1.5 मिली), थायोक्लोपीड (0.5 मिली) एवं स्टीकर (0.3 मिली) को एक लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें। उपरोक्त रसायनों का ज्यादा घोल बनाने हेतु दवा की मात्रा प्रति लीटर के अनुसार गुणित कर उपयोग करें। पहला छिड़काव 10 से 15 फरवरी व दूसरा छिड़काव 25 से 28 फरवरी के बीच निश्चित रूप से कर लें। झारखंड से आया है कीट अनुसंधान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ. संजय ¨सह ने बताया कि ¨स्टक बग नामक इस कीट का सर्वाधिक प्रभाव पूर्वी चंपारण के मेहसी व चकिया क्षेत्र में पाया गया है।टेसारो टोमा जवनिका प्रजाति का यह कीट झारखंड में वृहत पैमाने पर पाया जाता है। संभावना व्यक्त की गई है कि लकड़ी लदे किसी ट्रक के माध्यम से यह इस क्षेत्र में पहुंचा है। कुसुम के पौधों से इसे विशेष लगाव है। फरवरी से अप्रैल के बीच लीची के बागों में यह अटैक करता है। 30 सेंटीमीटर मंजर की लंबाई वाले डंटल पर इस कीट की संख्या कम से कम 50 से 100 होती है। जो फसलों को चूस जाता है। उन्होंने कहा कि इससे बचाव के लिए सामूहिक स्तर पर प्रयास ज्यादा सफल साबित होगा। इस संदर्भ में आवश्यक जानकारी के लिए दो नंबर भी सार्वजनिक किए गए हैं।

chat bot
आपका साथी