मोतिहारी में पुरानी मशीनों से पुश्तैनी व्यवसाय जीवित रखे हैं 40 परिवार

मोतिहारी। मेहसी में पुराने सीप बटन उद्योग को अभी 40 परिवार जीवित रखे हुए हैं। इसके जरि

By JagranEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 10:50 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 10:50 PM (IST)
मोतिहारी में पुरानी मशीनों से पुश्तैनी व्यवसाय जीवित रखे हैं 40 परिवार
मोतिहारी में पुरानी मशीनों से पुश्तैनी व्यवसाय जीवित रखे हैं 40 परिवार

मोतिहारी। मेहसी में पुराने सीप बटन उद्योग को अभी 40 परिवार जीवित रखे हुए हैं। इसके जरिए न सिर्फ उनकी रोजी-रोटी चल रही, बल्कि 400 लोगों को रोजगार भी मिला है। कोरोना महामारी ने इनकी स्थिति पर असर डाला है, लेकिन हौसला कम नहीं हुआ है। वर्ष 1906 में मेहसी में स्थापित सीप बटन उद्योग के पहले छह सौ से अधिक छोटे-बड़े कारखाने चलते थे। तकरीबन 20 हजार लोगों को रोजगार मिला था। अब 40 कारखाने ही बचे हैं। एक में 10 लोगों को रोजगार मिला है।

चीन की नई तकनीक से पिछड़े : मेहसी के चंद्रिका प्रसाद ठाकुर बताते हैं कि 1995 में सीप बटन उद्योग में चीन ने कदम रखा और नई तकनीक का उपयोग कर वैश्विक बाजार में अपनी पहुंच बढ़ाई। उसकी गुणवत्ता यहां नि?मत सीप बटन से बेहतर थी। इस कारण यह उद्योग दम तोडऩे लगा। केंद्र सरकार ने स्फूर्ति योजना के तहत इस उद्योग को जीवित करने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सका।

कई पीढिय़ों से इस काम में लगे : हैदर इमाम अंजार बताते हैं कि राज्य सरकार के प्रयास से आधुनिक मशीनें लगाकर दो क्लस्टर शुरू हुए हैं, लेकिन अब भी पुरानी मशीनों से काम बंद नहीं हुआ है। जिनके पास पूंजी नहीं है, वे इस पर काम कर रहे। वे कई पीढिय़ों से इस काम से जुड़े हैं। उनके यहां 10 लोग काम करते हैं। कच्चा माल स्थानीय नदियों और उत्तर प्रदेश से मंगाया जाता है।

कोरोना के चलते काम ठप : अमरजीत ठाकुर का कहना है कि कोरोना से पहले काम ठीक-ठाक चल रहा था। सभी 40 कारखानों को मिलाकर प्रतिमाह 60 लाख का व्यवसाय हो जाता था। यहां से तैयार उत्पाद दिल्ली, मुंबई व कोलकाता भेजा जाता था। कोरोना के चलते पिछले डेढ़ साल से काम ठप है। कम पूंजी होने की वजह से काम प्रारंभ करने में परेशानी हो रही है।

आधुनिक तकनीक और मार्केटिग की जरूरत : चकलालू निवासी मोहम्मद वसीम हैदर बताते हैं कि इस उद्योग को आधुनिक तकनीक और बेहतर मार्केटिग की जरूरत है। सीप बटन और इससे बनने वाली ज्वेलरी का व्यापार मेहसी से ही हो ताकि क्षेत्र के बेरोजगार कारीगरों और उद्यमियों को लाभ मिल सके और इसे बिहार का ब्रांड भी बनाया जा सके।

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