मोक्ष प्रदायनी निर्जला (भीमसेनी) एकादशी सोमवार को
मोतिहारी। वर्ष भर की सबसे कठिन एवं पुण्य फलदायक एकादशी जिसे निर्जला एकादशी या भीमसेनी एका
मोतिहारी। वर्ष भर की सबसे कठिन एवं पुण्य फलदायक एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं, उसका मान वैष्णव व गृहस्थ दोनों के लिए 21 जून सोमवार को है। व्रत का पारण 22 जून मंगलवार को प्रात: 05:13 बजे के बाद तिल से किया जाएगा। एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं। शास्त्र में इसे मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत बताया गया है। ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत के नियम अन्य एकादशी के मुकाबले ज्यादा कठिन होते हैं, परन्तु यह व्रत जितना कठिन है उतना ही पुण्य फलदायक भी है। इसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी नाम से भी जाना जाता है। महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडव के यहां सभी सदस्य एकादशी व्रत करते थे, लेकिन भीम को उपवास रहने में दिक्कत होती थी। जिससे वे व्रत नहीं कर पाते थे। इस बात से भीम बहुत दुखी होते थे। इस समस्या को लेकर भीम महर्षि वेदव्यास जी के पास गए। तब वेदव्यास जी ने कहा-अगर आप मोक्ष पाना चाहते हैं तो एकादशी का व्रत आवश्यक है।
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मां गंगा के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक गंगा दशहरा
फोटो 19 एमटीएच 23
मोतिहारी, संस : आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को स्वर्ग में बहने वाली गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा इस दिन पृथ्वी पर उतरीं थी। शास्त्र एवं पुराण में इस तिथि को महान् पुण्यदायक माना गया है। इस दिन विशेषत: गंगा में अथवा किसी भी पुण्यसलिला सरिता में स्नान, दान व तर्पण करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु-लोक का अधिकारी बन जाता है। गंगा दशहरे को सुबह सूर्योदय से पहले जगना चाहिए और फिर निकट के गंगा तट पर जाकर स्नान करना चाहिए। अगर आप गंगा नदी में स्नान करने में असमर्थ हैं तो अपने शहर की ही किसी नदी में स्नान कर सकते हैं। यदि यह भी संभव न हो सके तो घर में नहाने के जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें। फिर पूजा करें। इसमें जिस भी सामग्री का प्रयोग वह संख्या में 10 होनी चाहिए। जैसे 10 दीये, 10 तरह के फूल, 10 दस तरह के फल आदि।