वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु को मिली थी मुक्ति

रक्सौल। क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष्

By JagranEdited By: Publish:Wed, 25 Nov 2020 12:09 AM (IST) Updated:Wed, 25 Nov 2020 12:09 AM (IST)
वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु को मिली थी मुक्ति
वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु को मिली थी मुक्ति

रक्सौल। क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी को जगेंगे। आज से हिदू धर्म में विवाह, गृह-प्रवेश, उपनयन संस्कार आदि सहित कई मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। इसके साथ ही आज से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा एक साथ होगी। इससे पूर्व दीवाली के दिन केवल मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। क्योंकि तब भगवान विष्णु घोर निद्रा में होते है। इसे देवउठान एकादशी के नाम से जाना जाता है। साथ ही देव दीवाली भी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप में तुलसी के साथ विवाह हुआ था। धर्मशास्त्रों के अनुसार दैत्य और भगवान विष्णु के बीच घोर युद्ध चल रहा था। तब भाद्रपद मास के एकादशी तिथि को उन्होंने संखासुर को मार गिराया था। युद्ध में थक जाने के कारण भगवान विष्णु क्षीर सागर में जाकर सो गए थे। जो चार माह बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी को जगे थे। इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवउठान एकादशी भी कहा जाता है। भगवान विष्णु के जगने पर सभी देवताओं ने मिलकर भगवान की पूजा की थी।

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भगवान विष्णु को वृंदा के शाप से मिली थी मुक्ति एक पौराणिक कथा है। जिसमें बताया गया है कि भगवान विष्णु और जालंधर नामक राक्षस के बीच युद्ध चल रहा था। युद्ध भयंकर हुआ । तब भगवान विष्णु की अन्य भक्तों में एक वृंदा जो भगवान की तरह पति की कामना करती थी, उसका अपहरण कर जालंधर ने शादी कर लिया था। तब भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप बनाकर युद्ध के समय पूजा कर रहे वृंदा के सामने चले गए थे। इस बीच वृंदा का अनुष्ठान रूका। इतने में उसके पति जालंधर का वध हो गया। तब वृंदा ने पूछा तो भगवान विष्णु प्रकट हुए। इसके बाद क्रोधित वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया था। जिसे भगवान पत्थर हो गए थे। इसके बाद माता लक्ष्मी ने वृंदा से विनती की। जिसपर वृंदा ने भगवान को पत्थर से मुक्त कर सती हो गई थी । इसके बाद उस राख से तुलसी के पौधे का उत्पति हुआ। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। इस दिन भगवान विष्णु रूपी शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह हुआ था। तब से लोग इस दिन तुलसी विवाह के साथ धूमधाम से पूजा-पाठ करते है। तब भगवान ने कहा था बिना तुलसीजी के प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा।

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कब है व्रत

देवउठनी एकादशी बुधवार को मनाई जाएगी। -एकादशी तिथि का प्रारंभ होगा - 25 नवंबर की अल सुबह बुधवार 06 बजकर 14 मिनट से रात 08 बजकर 23 मिनट तक

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