कोरोना की 'मौत' ने निगल लिया रिश्तों को तो अनजान युवा टीम अंतिम यात्रा की साथी
दरभंगा। घर की दहलीज पर पड़ी लाश। आंखों से बह रही अश्रूधारा और अंतिम बार अपने प्रिय को
दरभंगा। घर की दहलीज पर पड़ी लाश। आंखों से बह रही अश्रूधारा और अंतिम बार अपने प्रिय को देखने की चाहत का होता दमन। वजह मौत का खौफ। पत्नी, पति, बेटा-बेटी, दामाद सरीखे रिश्ते मौत की खामोशी की भेंट चढ़ रहे हैं। कोरोना संक्रमण से हो रही मौत रिश्तों को भी कई बार निगल जा रही है। कुछ मजबूरी में और कुछ डर के मारे अपनों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पा रहे है। ऐसी स्थिति में इस कोरोना काल में जाति-धर्म के बंधन को तोड़ते हुए कई हिंदू-मुस्लिम समुदाय कई युवाओं की टीम ऐसे शवों का अंतिम संस्कार कर रही है, जिनको सद्गति देने में अपने सक्षम नहीं। मानों पिछले जन्म का कोई रिश्ता जुड़ा हुआ हो। आज जहां अपने ही अपनों से दूरी बना रहे है, वैसे समय में शहर की कबीर सेवा संस्था उनके लिए अपनों से कम नहीं है। अपनी जान की परवाह किए बगैर संस्था के सदस्य लोगों को सद्गति देने में लगे हुए है। सुबह से लेकर देर रात तक अपने मानवता का फर्ज निभाते संस्था के लोग एक पल की देरी किए फौरन उस स्थान पर पहुंच जाते है, जहां स्वजन भी जाने से परहेज करते नजर आ रहे हैं। वह भी बिना किसी के मदद के। पिछले एक हफ्ते के अंदर जिले में कोरोना से हुई कई मौत के मामले में यह देखने को मिल रहा है कि अस्पताल में लाश छोड़कर लोग चले जा रहे है। लाश को देखने वालों कोई नहीं है। मानों कभी इनसे कोई रिश्ता ही नहीं रहा हो। ऐसे हृदयविदारक ²श्य को देख किसी का भी मन विचलित हो जाता है। लेकिन, मजबूरी ऐसी की सब कुछ रहने के बाद भी अंत समय में अपने के साथ खड़ा होना तक नसीब नहीं हो रहा। शुक्रवार को भी जिले के केवटी, बहेड़ी सहित अन्य प्रखंडों से कोरोना मरीजों की डेड बॉडी के अंतिम संस्कार को लेकर फोन की घंटियां बजनी शुरु हो गई।
विचलित करती है लोगों के रोने की आवाज
कबीर सेवा संस्थान के नवीन कुमार सिन्हा बताते है कि संस्था पहले से ही लावारिश लाशों का उनके जाति-धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार करती आ रही है। लेकिन, इस कोरोना काल में पिछले एक वर्ष में दर्जनों लोगों का अंतिम संस्कार संस्था की ओर से किया गया है। ऐसा नहीं है कि डर नहीं लगता। लेकिन, संस्था के सदस्य कोरोना को मात देते हुए मानवता का धर्म निभा रहे है। सुबह से लेकर देर रात तक फोन की घंटियां बजती रहती है। चारों ओर से रोने की आवाज मन को विचलित करती है। ऐसे में लगता है कि यदि कोई आगे नहीं आएगा तो आखिर उनका अंतिम संस्कार और उनकी आत्मा को कैसी शांति मिलेगी। संस्था के सदस्य कोरोना गाइडलाइन के मुताबिक, पीपीई किट पहनकर लाशों का अंतिम संस्कार करने में जुटे हुए है। बताया कि उनकी संस्था शहरी क्षेत्र में कोरोना से मृत हुए लोगों का केवल अंतिम संस्कार कर रही है। जबकि, फोन पूरे जिले से आते है। ऐसे में कई बार मन को तकलीफ भी पहुंचती है कि दूसरे प्रखंड के लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे है।
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