मैथिली की वर्तमान स्थिति पर ¨चतन की आवश्यकता : कुलपति
जिस भाषा में आचार्य रमानाथ झा जैसे वरद पुत्र हो उस भाषा की वर्तमान शिक्षण की स्थिति पर ¨चतन करने की आवश्यकता है।
दरभंगा। जिस भाषा में आचार्य रमानाथ झा जैसे वरद पुत्र हो उस भाषा की वर्तमान शिक्षण की स्थिति पर ¨चतन करने की आवश्यकता है। आचार्य रमानाथ झा स्मृति न्यास एवं एमआरएम कॉलेज मैथिली विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आचार्य रमानाथ झा स्मृति व्याख्यानमाला के उद्घाटन संबोधन में कुलपति डॉ. सुरेंद्र कुमार ¨सह ने शनिवार को ये बातें कही। उन्होंने कहा कि आज के जमाने में लोग अपने पूर्वजों को भूलते जा रहे हैं। ऐसे में इस तरह का आयोजन काफी मायने रखता है। ऐसे आयोजन से युवाओं को प्रेरणा मिलेगी। पीजी समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार चौधरी ने भी आयोजक मंडल को साधुवाद देते हुए कहा कि मैथिली भाषा के उन्नयन के लिए ऐसे समारोहों की नितांत आवश्यकता है। मैथिली समाज के लिए आचार्य रमानाथ झा का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। अध्यक्षीय संबोधन के क्रम में प्रधानाचार्य डॉ. अर¨वद कुमार झा वे मिथिला के दैदिप्यमान नक्षत्र थे। उन्होंने कॉलेज के सभागार का नाम रमानाथ झा के नाम पर करने की घोषणा की। डॉ. मित्रनाथ झा ने कहा कि अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण जीवित ही लीजेंड बन चुके आचार्य प्रवर की जयंती पर व्याख्यानमाला से अपार हर्ष हो रहा है। मैथिली के वयोवृद्ध साहित्यकार व विद्वान डॉ. रामदेव झा ने कहा कि आए दिन किसी न किसी साहित्यकार की जयंती मनाई जाती रहती है। ¨कतु आचार्य रमानाथ झा को लोगों ने दशकों तक अपनी स्मृति से ओझल कर दिया था। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अनुकरणीय है। उन्होंने एक साथ अध्यापन करने के समय के संस्मरणों का भी जिक्र किया। साहित्यकार डॉ. जगदीश मिश्र ने आचार्य प्रवर का मैथिली वांगमय में अवदान की वस्तुपरक चर्चा की। कहा कि उनकी प्रतिभा अछ्वुत थी। उनके कार्यों की जो सुदीर्घ सूची है। उससे उनका कद स्वत: ही निर्धारित हो जाता है। अमल कुमार झा ने पंजी प्रबंध व्यवस्था में आचार्य रमानाथ झा के योगदान पर प्रकाश डाला। किस प्रकार उन्होंने पंजी के माध्यम से मैथिली भाषा और साहित्य की अनंत सेवा की उसका वर्णन किया।
मौके पर आचार्य रमानाथ झा के शिष्यों को एक स्मृति चिह्न भी भेंट किया गया। संचालन डॉ. पुतुल ¨सह एवं धन्यवाद ज्ञापन न्यास के संस्थापक सदस्य डॉ. विद्यानाथ झा ने किया। प्रारंभ में कॉलेज की छात्राओं ने यात्रीजी की ओर से आचार्य रमानाथ झा के अभिनंदन में लिखे काव्य सारस्वत सरमे हे मराल का गान अपने सुमधुर स्वर में किया।