करोड़ों खर्च, स्थापना काल से वायरोलॉजी लेबोरेटरी में शोध कार्य नहीं

दरभंगा। कोरोना वायरस के कहर से पूरी दुनिया बेहाल है। कोरोना ने करीब डेढ़ साल से तब

By JagranEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 11:31 PM (IST) Updated:Sun, 09 May 2021 11:31 PM (IST)
करोड़ों खर्च, स्थापना काल से वायरोलॉजी लेबोरेटरी में शोध कार्य नहीं
करोड़ों खर्च, स्थापना काल से वायरोलॉजी लेबोरेटरी में शोध कार्य नहीं

दरभंगा। कोरोना वायरस के कहर से पूरी दुनिया बेहाल है। कोरोना ने करीब डेढ़ साल से तबाही मचा रखी है। दुनिया भर में तरह-तरह से शोध हो रहे हैं। लेकिन, अपने शोध के लिए पूरी दुनिया में चर्चित दरभंगा मेडिकल कॉलेज में इस वायरस पर अबतक शोध नहीं शुरू हो सका है। बावजूद इसके कि इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च कर अत्याधुनिक मशीनों की खरीद की गई। सरकार शोध के लिए हर माह तीन करोड़ से अधिक रुपये शोधकर्ताओं के मानदेय पर खर्च करती है। इसके लिए बड़े-बड़े चिकित्सकों की स्थाई बहाली की गई है। कोरोना से पहले ही अज्ञात वायरस की जांच के लिए यहां के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में करोड़ों राशि की लागत से दो-दो वायरोलॉजी लेबोरेटरी की स्थापना की गई है। लेकिन, इनमें स्थापना से लेकर अबतक वायरस पर कोई शोध-अनुसंधान नहीं हुआ है। चर्चित कोरोना वायरस ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल (डीएमसीएच) में वायरस के जांच व्यवस्था की कलई खोल दी है।

वायरस पर शोध के लिए दो लेबोरेटरी :

डीएमसीएच में वायरस से जुड़ी दो लेबोरेटरी हैं। बायो सेफ्टी लेवल यानी बीएसएल-दो और बीएसएल-तीन है। पहली लेबोरेटरी परीक्षण के लिए है। दूसरे में शोध-अनुसंधान की भी व्यवस्था है। डीएमसीएच में बीएसएल-तीन बिहार की पहली और पूर्वोत्तर क्षेत्र की दूसरी वायरोलॉजी लेबोरेटरी थी। इस लैब में महामारी से संबंधित जांच की व्यवस्था है।

किट उपलब्ध नही होने से बंद रहा लैब :

वीआरडीएल लेबोरेटरी-तीन में कोरोना काल से पहले दो वर्षों से डायग्नोस्टिक जांच नहीं हो पा रही थी। बताया गया मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इसके लिए आवश्यक किट उपलब्ध नहीं कराया। 2014 में स्थापित लैब में 2017-18 तक कुछ जांच हुए। लेकिन, जून 2018 के बाद जांच बंद हो गया। छह जून 2018 तक डेंगू, इंसेफेलाइटिस, स्वाइन फ्लू आदि की जांच हुई।

5 करोड़ 24 लाख खर्च, नतीजा शून्य

बताते हैं- वायरोलॉजी रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी (वीआरडीएल) की स्थापना जून 2018 में करीब 5 करोड़ 24 लाख खर्च कर स्थापित लेबोरेटरी की गुणवत्ता की जांच के लिए भारत सरकार की ओर से नामित विज्ञानियों की चार सदस्यीय टीम आई। प्रमाणपत्र जारी करने से पहले यहां चार दिनों तक लगातार इस लेबोरेटरी की गुणवत्ता की जांच की गई थी। इसके लिए ही आरएनए चैंबर, डीएनए चैंबर, एक्सट्रैक्शन चैंबर समेत अन्य महत्वपूर्ण उपकरण लगाए गए। इसमें रिसर्च और परीक्षण दोनों तरह की व्यवस्था है। पूरी तरह स्वचालित लेबोरेटरी में स्थापना के बाद से एक भी रिसर्च नहीं हुआ। महामारी के इस दौर में भी हाल बुरा रहा। हालांकि इसके पूर्व माइक्रोबायोलॉजी विभाग में पीजी के छात्रों को बैक्टेरिया, फंगस इम्यूनोलॉजी, पैरासाइट आदि पर रिसर्च कराए गए हैं, लेकिन वायरस के क्षेत्र में कुछ भी नहीं।

पांच से छह छात्रों का होता रिसर्च के लिए नामांकन :

माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पीजी में हर साल पांच से छह छात्रों का नामांकन रिसर्च के लिए होता है। इस तरह से एक बैच में छह छात्र होते हैं और तीन बैच मिलाकर कुल 18 छात्र प्रशिक्षण और रिसर्च का काम करते हैं। छात्रों को हर साल 60 से 70 हजार तक मासिक मानदेय मिलता है।

सरकार की ओर से रिसर्च के लिए हरेक तरह की मशीन और उपकरण समेत अन्य कीटाणुओं की जांच के लिए भी कीमती और उम्दा किस्म की मशीन- उपकरण आदि की खरीद होती है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) की टीम भी समय-समय पर पीजी छात्रों को कई विषयों पर रिसर्च कराने और लेबोरेटरी के पूर्ण उपयोग की हिदायत भी देती रहती है। बावजूद इसके अधिक समय लगने के डर से यहां के चिकित्सक कठिन टॉपिक पर रिसर्च कराने से कतराते हैं।

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