मिथिला व काशी का संबंध अटूट : कुलपति

दरभंगा। मदन मोहन मालवीय एक विराट पुरुष शिक्षाविद् राष्ट्रभक्त व समाजसुधारक थे। मिथिला और काशी का संबंध गहरा और अटूट है। विशेष रूप से शैक्षणिक व सांस्कृतिक रूप से दोनों काफी करीब रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 12:20 AM (IST) Updated:Sat, 25 Jan 2020 12:20 AM (IST)
मिथिला व काशी का संबंध अटूट : कुलपति
मिथिला व काशी का संबंध अटूट : कुलपति

दरभंगा। मदन मोहन मालवीय एक विराट पुरुष, शिक्षाविद्, राष्ट्रभक्त व समाजसुधारक थे। मिथिला और काशी का संबंध गहरा और अटूट है। विशेष रूप से शैक्षणिक व सांस्कृतिक रूप से दोनों काफी करीब रहे हैं। शिक्षा का उद्देश्य मात्र ज्ञानवान बनाना ही नहीं, बल्कि संवेदनशील व्यक्ति बनाना भी है। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर पंडित मालवीय ने 1916 में काशी हिदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, जिसमें दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह का अविस्मरणीय योगदान रहा था। उक्त बातें विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके सिंह ने महामना मालवीय मिशन बिहार इकाई व स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में प्रबंधन भवन में काशी-मिथिला की शिक्षा क्रांति के अग्रदूत महाराज रमेश्वर सिंह व भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय विषय पर संगोष्ठी का मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन करते हुए कही। उन्होंने कहा कि मानवीय मूल्यों की स्थापना में शैक्षणिक संस्थानों का काफी योगदान होता है।पंडित मालवीय का मानना था कि सकारात्मक परिवर्तन सिर्फ शिक्षा से ही संभव है। मिथिला की संस्कृति समृद्धशाली रही है, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।आज अपनी गौरवशाली परंपरा को वापस लाना आवश्यक है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका अहम है। विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय वाणिज्य विभागाध्यक्ष प्रो. हरेकृष्ण सिंह ने कहा कि काशी व मिथिला दोनों शिक्षा के केंद्र रहे हैं। यह संगोष्ठी दोनों को जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है। बीएचयू की स्थापना में महाराज रमेश्वर सिंह ने न केवल आर्थिक सहायता दी, बल्कि सक्रिय योगदान भी दिया। दोनों महापुरुष समकालीन और शैक्षणिक क्रांति के दूत थे। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. जयशंकर झा ने कहा कि महामना का चरित्र बिल्कुल बेदाग रहा, जिन्होंने भारतीय भावना से ओतप्रोत शिक्षा केंद्र के रूप में बीएचयू की स्थापना की, जहां प्राचीन व अर्वाचीन शिक्षा दी जाती है। उनपर भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रभाव था, वहीं रमेश्वर सिंह संस्कृत विद्या के विद्वान थे, जिन्होंने कई विद्यालयों को साधन युक्त किया था। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए मिशन के बिहार इकाई के सचिव आलोक सिंह ने कहा कि शिक्षा के विकास में मालवीय और महाराजा रमेश्वर का अमूल्य योगदान रहा है। बीएचयू की स्थापना में मिथिला की अग्रणी भूमिका थी, जहां आज प्राथमिक से लेकर डीलीट तक 144 विषयों की पढ़ाई होती है। अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. जीवानंद झा ने कहा कि मिथिला त्याग, तपस्या और विद्या की भूमि है। दरभंगा महाराज रमेश्वर सिंह का शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय योगदान रहा है। व्यापक व्यक्तित्व वाले मालवीय द्वारा स्थापित बीएचयू 1300 एकर भूमि में फैली हुई है, जहां 14 संकाय व 75 छात्रावास हैं, जिस कारण यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। संगोष्ठी में मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो. रमण झा, प्रो. एके बच्चन, प्रो. एके मेहता, प्रो. नारायण झा, डॉ. आर एन चौरसिया व अन्य शामिल थे।

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