अपने त चूड़ा फांकि कय रहि जेबय, पर मवेशी के की देबय..

लोग तो अपना दुखड़ा दूसरे को सुना सकते हैं लेकिन बेजुबान पशु अपना दर्द किसको सुनाएं। बाढ़ ने जहां लोगों के जीवन को तार-तार कर दिया है वहीं पशुओं की हालत दयनीय होती जा रही है। पशुपालक किसी तरह पशुओं को जिदा रखने का प्रयास कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Jul 2019 01:38 AM (IST) Updated:Thu, 18 Jul 2019 06:29 AM (IST)
अपने त चूड़ा फांकि कय रहि जेबय, पर मवेशी के की देबय..
अपने त चूड़ा फांकि कय रहि जेबय, पर मवेशी के की देबय..

दरभंगा । लोग तो अपना दुखड़ा दूसरे को सुना सकते हैं, लेकिन बेजुबान पशु अपना दर्द किसको सुनाएं। बाढ़ ने जहां लोगों के जीवन को तार-तार कर दिया है, वहीं पशुओं की हालत दयनीय होती जा रही है। पशुपालक किसी तरह पशुओं को जिदा रखने का प्रयास कर रहे हैं। बाढ़ में सबसे अधिक पशुचारा की किल्लत हुई है। खेतों में लगी फसल बाढ़ के पानी ने लील लिया है। जिससे पशुपालकों को पशुचारा के लिए परेशानी झेलनी पड़ रही है। दर्जनों पशुपालक इन दिनों घर छोड़ सिरनियां तटबंध, अकराहा पुल, रेलवे मुंडा पुल के समीप खुले आसमान के नीचे पॉलीथिन में पशुओं के साथ जीवन जी रहे हैं। किसी तरह अपने लिए तो कमोबेश खाने के लिए कुछ उपलब्ध हो जाता है, लेकिन पशुओं के लिए चारा कहां से लाएं, यह मुश्किल साबित हो रहा है। कई पशुपालक मीलों दूर पानी से गुजरते हुए जाकर चारा की व्यवस्था भी करते हैं, लेकिन वो भी नाकाफी ही साबित हो रहा है। पशुओं को भूखा रहना पड़ रहा है। तटबंध व सड़क किनारे कई दर्जनों पशुओं को बंधा देख ऐसा लगता है कि अगर कुछ दिन और इन्हें चारा नहीं मिला तो कई पशु असमय काल के गाल में समा जाएंगे। पशुपालक महेश्वर सहनी, जमेदार यादव आदि ने बताया कि कई दिनों से यही हाल है। घर में तो भूसा रखा था, वह डूब गया है। किसी तरह पशुओं को लेकर घर से बाहर आ गए। अब इनके लिए चारा लाना समस्या है। अमल देवी, बुचिया देवी कहती है कि अपने त चूड़ा फांकि कय रहि जेबय, पर मवेशी के की देबय। उनलोगों का कहना था कि सवेरे से हमलोग चारा की खोज में निकलते हैं, पर दिन में थोड़ा बहुत चारा मिलता है। वही अपने पशुओं को खिला रहे हैं। सरकार द्वारा अभी तक चारा की व्यवस्था नहीं की गई है।

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