कालाजार की बेहतर दवा की खोज कर डॉ. मोहन मिश्र ने पूरी दुनिया में बनाई थी अमिट पहचान

दरभंगा। मिथिलांचल ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी उत्कृष्ट सेवा के लिए चर्चित पद्मश्री डॉ. मोहन ि

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 11:29 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 11:29 PM (IST)
कालाजार की बेहतर दवा की खोज कर डॉ. मोहन मिश्र ने पूरी दुनिया में बनाई थी अमिट पहचान
कालाजार की बेहतर दवा की खोज कर डॉ. मोहन मिश्र ने पूरी दुनिया में बनाई थी अमिट पहचान

दरभंगा। मिथिलांचल ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी उत्कृष्ट सेवा के लिए चर्चित पद्मश्री डॉ. मोहन मिश्रा के निधन के बाद दरभंगा के चिकित्सा जगत में एक खालीपन आ गया है। गुरुवार की देर रात हृदय गति रुकने से उनकी मौत 86 साल की उम्र में हो गई। बताया गया है कि वे कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। इस दौरान कोविड-19 की जांच की रिपोर्ट निगेटिव आई थी। इस बीच गुरुवार की रात दरभंगा के लहेरियासराय बंगाली टोली स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना जंगल के आग की तरह पूरे जिले में फैली। इसी के साथ उनकी कीर्ति को याद कर लोग भाव-विभोर होने लगे। जो जहां था वहीं सन्न रह गया।

सबकी जुबान पर एक ही नाम, एक ही कहानी-डॉ. मोहन मिश्र। स्थानीय लोग बताते हैं- डॉ. मोहन मिश्र की ख्याति विश्व स्तर पर थी। उन्होंने चिकित्सा से संबंधित कई विषय व बीमारियों पर शोध किए। इस क्रम में जिसके बाद उनको पद्मश्री से भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें कालाजार पर शोध के लिए 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। उन्होंने कालाजार के रोगियों के इलाज के लिए मेट्रोनिडाजोल की खोज की। कालाजार पर इनका शोध ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ था। ब्राह्माी के पौधे से निकाली थी भूलने की दवा: जब पूरे विश्व में डिस्मेंशिया मतलब भूलने की बीमारी पर प्रभावी रिसर्च नहीं हो सका था। तभी डॉ. मोहन ने ब्राह्मी नामक पौधे से इस बीमारी का इलाज करने में सफलता पाई थी। उनके इस रिसर्च को भी ब्रिटिश जर्नल में जगह मिली थी। दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (डीएमसीएच) में मेडिसिन विभाग के एचओडी के रूप में डॉ. मोहन मिश्र वर्ष 1995 में सेवानिवृत्त हुए। तब से वे लहेरियासराय बंगाली टोला स्थित घर पर मरीजों की सेवा में लग गए। इस दौरान उनके पास डिमेंशिया के कई मरीज आते थे। इसकी कोई सटीक दवा फिजीशियन में नहीं होने के चलते मरीजों को बहुत फायदा नहीं होता था। तब उनका ध्यान आयुर्वेद की तरफ गया। ब्राह्मी के पौधे की विशेषता की जानकारी ली। आयुर्वेद के कई चिकित्सकों से बात की। फिर इस पौधे से डिमेंशिया के इलाज पर रिसर्च का निर्णय लिया और उसमें सफल हुए।

डॉ. अजय और डॉ. उछ्वट के साथ किया था ब्राह्मी से बनी दवा पर रिसर्च निजी क्लीनिक चलाने वाले डॉ. अजय कुमार मिश्र व डॉ. उछ्वट मिश्र के साथ जून 2015 से मई 2016 तक 12 मरीजों पर रिसर्च किया। सभी को ब्राह्मी से निर्मित दवा प्रतिदिन दो बार लगातार तीन माह तक दी गई। सभी पर बेहतर परिणाम सामने आए। यह शोध व‌र्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन में पंजीकृत हुआ। यह रिसर्च वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के प्रोफेशनल नेटवर्क 'रिसर्च गेट' पर भी उपलब्ध है। इसे लंदन के 'फ्यूचर हेल्थकेयर जर्नल' ने भी प्रकाशित किया। इस शोध को वे 25 व 26 जून 2018 को लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन के इनोवेशन इन मेडिसिन सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था।

मधुबनी जिले के कोइलख में दाह-संस्कार

डॉ. मिश्र के निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर दाह-संस्कार के लिए मधुबनी जिला के कोयलख गांव ले जाया गया है। वे अपने पीछे 2 पुत्र और दो पुत्री समेत एक भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके पुत्र डॉ. उछ्वट मिश्रा ने बताया कि उनका निधन हदय गति रुक जाने से हुआ। वो पिछले तीन दिनों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव में किया जाएगा। इसके लिए उनका पार्थिव शरीर मधुबनी के पैतृक गांव ले जाया जा रहा है।

1962 में एक रेजिडेंट के रूप में डीएमसीएच से शुरू किया था कॅरियर

डॉ. मोहन मिश्रा का जन्म 19 मई 1937 को मधुबनी जिले के कोइलख में हुआ था। उन्होंने चिकित्सा जगत में अपना कॅरियर 1962 में दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से एक रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर के रूप में शुरू किया। फिर वे लगातार 1995 तक यहां विभिन्न पदों पर रहे। डीएमसीएच में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने एमआरसीपी को सुरक्षित करने के लिए 1970 में एक संक्षिप्त विश्राम लिया। ब्रिटेन से डिग्री ली। फिर 1979 में डॉ. मिश्रा जनरल मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर बन गए। एफआरसीपी की एक और उच्च डिग्री 1984 में एडिनबर्ग से प्राप्त की। दो साल बाद 1986 में वो जनरल मेडिसिन विभाग के प्रमुख बन गए। 1988 में लंदन से एफआरसीपी भी हासिल की। वक्त के साथ उन्होंने अपने कॅरियर को खूब चलाया। 1995 में सेवानिवृत्त हुए। फिर स्वेच्छा से डीएमसीएच में अपना कॅरियर पूरा कर समाज सेवा में लग गए।

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