महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि पर दिखा जनकपुर का नजारा

बक्सर सिय-पिय मिलन महोत्सव में विश्वामित्र की नगरी सोमवार को जनकपुर में तब्दील हो गई। इस दौर

By JagranEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 07:54 PM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 07:54 PM (IST)
महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि पर दिखा जनकपुर का नजारा
महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि पर दिखा जनकपुर का नजारा

बक्सर : सिय-पिय मिलन महोत्सव में विश्वामित्र की नगरी सोमवार को जनकपुर में तब्दील हो गई। इस दौरान सीताराम आश्रम में पुष्प-वाटिका प्रसंग का मंचन किया गया। साथ ही रात्रि बेला में धनुष यज्ञ के आयोजन के साथ ही सीता स्वयंवर का अलौकिक नजारा दर्शकों के सामने दृश्यमान हुआ। महोत्सव के छठवें दिन पुष्प वाटिका प्रसंग के गवाह बनने वालों में मलुक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज, किशोरी शरण दास जी महाराज, महामंडलेश्वर बनवारी दास जी महाराज और जोधपुर के बृज बिहारी दास जी भक्तमाली शामिल रहे।

साधु-संतों में बसांव पीठाधीश्वर अच्युत प्रपन्नाचार्य, पूज्य स्नेही संत हरिराम शास्त्री जी, मोहन दास जी महाराज, श्री सीताराम दास त्यागी जी, और राघव दास जी भी शामिल थे। वहीं, प्रतिमा के रूप में महर्षि खाकी बाबा सरकार एवं मामाजी महाराज भी मंच पर विराजमान थे। इधर, सुबह का कार्यक्रम श्रीरामचरितमानस के सामूहिक पाठ से हुआ। सामूहिक नवाह्न परायण पाठ से भक्ति का जो प्रवाह शुरू हुआ वह देर रात तक रामलीला में धनुष यज्ञ मंचन तक चलता रहा।

अलौकिक दिखा पुष्प-वाटिका प्रसंग का नजारा

पुष्प वाटिका प्रसंग के दौरान महोत्सव के पंडाल के बीचों-बीच फूलों से सजे तथा घूमते मंच का अलौकिक न•ारा सबको मंत्रमुग्ध कर रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो सभी कलयुग से त्रेता युग में पहुंच गए हैं। मंच के चारों ओर हजारों की संख्या में महिला, पुरुष, बच्चे, बूढ़े श्रद्धालु संत समाज के लोग बैठे हुए थे। सभी दर्शक एकाग्र चित्त होकर पुष्प वाटिका प्रसंग का आनंद ले रहे थे। सभी की निगाहें पंडाल के बीचो-बीच बने घूमते हुए मंच पर टिकी हुई थी। सभी इस जनप्रिय प्रसंग के साक्षी बनते हुए राम और सीता की एक झलक पाने को व्याकुल थे।

बंधु माली हो हमके चाही कछू तुलसी दल और फूल..

प्रसंग की शुरुआत होती है। वैदेही वाटिका के रखवाली करने वाले माली अपने कार्य पर लगे हुए हैं। इसी बीच श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ गुरु विश्वामित्र के आदेशानुसार पूजन के लिए फूल लेने को राजा जनक नंदिनी की वैदेही वाटिका में पहुंचते हैं। वाटिका के प्रमुख द्वार पर तैनात वाटिका के मुख्य माली ने श्री राम को वाटिका में प्रवेश से रोक दिया। इस पर श्रीराम ने माली से वाटिका में प्रवेश की अनुमति मांगते हुए कहा कि बंधु माली हो हमके चाही कछू तुलसी दल और फूल.। परंतु माली तो प्रभु श्रीराम की बात भी सुनने को तैयार नहीं थे। इसके बाद मुख्य माली के साथ संवाद शुरू हुआ। पुष्प वाटिका प्रसंग में मुख्य माली की भूमिका आश्रम के महंत श्री राजाराम शरण महाराज दिख रहे थे। जिनके सहयोगी की भूमिका आश्रम के परिकरों ने निभायी।

पुष्प वाटिका में हास-परिहास का चला दौर

फूल लेबे अइनी की किशोरी जी के देखे जी, ईमानदारी से करी ई स्वीकार जी.,। पुष्प वाटिका प्रसंग में माली और भगवान श्री राम के बीच संवादों का दौर चला। मालियों तथा प्रभु श्रीराम के बीच हुए संवाद द्वारा ऐसा ²श्य प्रस्तुत किया जा रहा था जिससे कि भगवान के सभी भक्त इस प्रसंग का आनंद लेते हुए भगवान भक्ति के सागर में गोता लगा रहे थे। उधर, श्रीराम तथा लखन लाल और मालियों के सवालों के जवाब बहुत ही चतुरता से दे रहे थे। प्रभु श्रीराम के दर्शन पा माली उनकी भक्ति में खो गए। संवादों के माध्यम से मालियों ने प्रभु को और कुछ देर विलंब कराने की ठान ली। उन्होंने भी कहा कि फूल तोड़ना तो महज बहाना है। आप तो जनक नंदिनी किशोरी जी का दर्शन करने आए हैं। आप ईमानदारी से यह बात स्वीकार कर लीजिए। श्रीराम के द्वारा बार-बार गुरु जी की पूजा के लिए फूल जल्दी ले जाने की बातों को अनसुना कर माली अपने संवादों में प्रभु को फंसा लेते थे। माली श्रीराम से कहते हैं, कोमल-कोमल हाथन से कैसे आप फूल तोड़ब धनुषधारी हो .,। परंतु, श्रीराम गुरु की आज्ञा के अनुसार खुद फूल तोड़ने की बात कहते हैं। अंत में मालियों ने श्रीराम को वैदेही की जय कहने को कहा। जिसे प्रभु ने रघुकुल की शान के विरुद्ध माना और ऐसा करने से इंकार कर दिया। हालांकि, बाद में कोई चारा नहीं चलता देख हार मानकर श्रीराम ने जनकपुर के निवासियों एवं जनक पुत्री के जयकारे लगाए। जयकारे के बाद मालियों ने प्रभु को वैदेही वाटिका में फूल तोड़ने को छूट दे दी।

पुष्पवाटिका में मन ही मन सीता ने श्रीराम का किया वरण

संयोगवश उस समय सीता जी बागीचे में पूजन करने जा रही थीं। मालियों ने दोनों भाईयों को कहा कि आप दोनों भाई किसी पेड़ की आड़ में छुप जाइएगा, ताकि सीता जी की नजर आपलोगों पर न पड़े। मालियों की बात मानते हुए दोनों भाई पेड़ की आड़ में छिप जाते हैं। सीता जी को देखकर भगवान श्रीराम मुग्ध हो जाते हैं। उसी समय सीता जी भी अपनी सखियों के साथ गौरी पूजन को वाटिका में स्थित मंदिर जाती हैं। यहां वह लताओं की ओट से श्रीरामजी को देखती हैं और मन ही मन उनका वरण कर लेती हैं।

धनुष यज्ञ : क्रोधित हुए परशुराम तो श्रीराम ने किया गुस्से को शांत

बक्सर : रात्रि की रामलीला में राजा जनक ने सीता विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें दूर-दूर से राजा और राजकुमार आए। लेकिन कोई भी भगवान शिव के धनुष को तोड़ नहीं पाया। राजा जनक निराश होकर कहने लगे कि लगता है कि यह धरती वीरों से खाली हो गयी है। यह सुन लक्ष्मण क्रोधित होते हैं। हालांकि, प्रभु श्रीराम उन्हें शांत रहने का इशारा करते हैं। कुछ देर बाद गुरु विश्वामित्र की आज्ञा प्राप्त कर श्रीराम शिव धनुष को उठाने जाते हैं तथा धनुष तोड़ देते हैं। तत्पश्चात जानकी जी प्रभु श्री राम के गले में वरमाला डाल देती हैं तथा पूरा पंडाल प्रभु श्री राम तथा श्री जानकी के जयकारों से गूंज उठता है। उधर, धनुष टूटने की खबर सुन परशुराम गुस्से में राजा जनक के दरबार में आते हैं और धनुष तोड़ने वाले का नाम पूछते हैं। उसी क्षण प्रभु श्री राम परशुराम के समक्ष प्रस्तुत होते हैं तथा अपने मधुर वचनों से उन्हें समझा बुझा कर शांत करते हैं।

chat bot
आपका साथी