हाथ में चप्पल लेकर नंगे पांव वैक्सीन लगाने गांव पहुंचे स्वास्थ्य कर्मी

बक्सर सरकार ने वायदा किया था कि पांच सौ की आबादी वाले गांव सड़क से सीधे जुड़ेंगे। इन वायद

By JagranEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 05:31 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 05:31 PM (IST)
हाथ में चप्पल लेकर नंगे पांव वैक्सीन लगाने गांव पहुंचे स्वास्थ्य कर्मी
हाथ में चप्पल लेकर नंगे पांव वैक्सीन लगाने गांव पहुंचे स्वास्थ्य कर्मी

बक्सर : सरकार ने वायदा किया था कि पांच सौ की आबादी वाले गांव सड़क से सीधे जुड़ेंगे। इन वायदों का क्या हश्र है, इसका अहसास उन स्वास्थ्य कर्मियों को भी हुआ, जो मंगलवार को कोविड-19 का टीकाकरण करने के लिए गांव पहुंचे। वहां जाने में उन्हें नौ नतीजे झेलने पड़े और हाथ में चप्पल एवं सिर पर वैक्सीनेशन कैरियर लेकर टीका केंद्र तक पहुंचना पड़ा।

हालांकि, उनकी मेहनत गांव वालों ने सार्थक की दी और खबर लिखे जाने तक 70 लोगों ने कोरोना का टीका लिया। डेढ़ किलोमीटर पानी में पैदल चलकर पहुंचने के बाद स्वास्थ्य कर्मियों में काफी नाराजगी देखने को मिली। गांव के लोगों का कहना था कि गांव से किसी बेटी के ससुराल विदाई होती हैं तो उन्हें पगडंडी पर लंबी दूरी का सफर तय करना होता है या फिर मामूली सी बरसात में किसी दूल्हे की परिछावन कंधे पर बिठाकर होता है। सबसे दयनीय हालत तो तब होती है, जब यहां किसी की तबीयत अचानक खराब हो जाती है। इस बदलते युग में आज भी यहां के मरीजों को खटियां पर लाद कर अस्पताल पहुंचाया जाता है। इसको लेकर ग्रामीणों द्वारा पूर्व में कई बार जन प्रतिनिधियों और सरकारी हुक्मरानों का ध्यान आकृष्ट कराया गया, लेकिन आज तक इस गंभीर समस्या की ओर किसी के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

ग्रामीण रमाशंकर यादव, श्रीगणेश यादव, सरदार यादव, मनरिका यादव, नथु यादव, मुकेश कुमार, रमेश कुमार, मोरा यादव, सुखदेव यादव, भीम यादव और जनार्दन यादव सहित कई लोगों ने बताया कि यहां के ग्रामिणों को पगडंडियों पर गिरते फिसलते पैदल ही मंजिल तय करना नियति बन गई है। युवा समाजसेवी अभय सिंह ने बताया कि पूर्व में कई बार इस गंभीर समस्या की ओर प्रतिनिधियों और सरकारी हुक्मरानों का ध्यान आकृष्ट कराया गया परन्तु आज तक किसी के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

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पुरैना गांव में पहुंच मार्ग की गंभीर समस्या है। पूर्व में कुछ लोग अपनी जमीन दिए थे, जिस पर सड़क निर्माण कार्य शुरू भी हुआ, लेकिन ज्यादातर लोग अपनी रैयती जमीन देने को तैयार नहीं हुए, जिससे सड़क नहीं बन पा रही है।

सैयद सरफराजुद्दीन अहमद (बीडीओ, चौगाईं)।

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