समय के साथ धूमिल हो गया डुमरांव के सिन्होरा उद्योग का सपना

बक्सर बाबा-बाबा पुकारिला बाबा नाही बोलस हो . बाबा के बलजोरी सिदूर वर डालस हो...। इस

By JagranEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 09:09 PM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 09:09 PM (IST)
समय के साथ धूमिल हो गया डुमरांव के सिन्होरा उद्योग का सपना
समय के साथ धूमिल हो गया डुमरांव के सिन्होरा उद्योग का सपना

बक्सर : बाबा-बाबा पुकारिला, बाबा नाही बोलस हो . बाबा के बलजोरी सिदूर वर डालस हो...। इस गीत को शादी के मंडप में सिदूरदान के समय भोजपुरी लय में जब महिलाएं गाती हैं तो उस समय शादी के मंडप में मौजूद सभी की निगाहें सुहाग की अमिट निशानी सिन्होरा पर टिक जाती हैं। भारतीय संस्कृति में अमिट सुहाग सिदूर के पात्र के रूप में सिन्होरा का प्रचलन रहा है। इसे पूरे विश्व की अनूठी संस्कृति कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है।

शादी के महत्वपूर्ण रस्म सिदूर दान को पूरा करने के लिए शादी के पहले ही सिन्होरा की खरीदारी की जाती है। कई समुदायों के परिवार में दूल्हे का बड़ा भाई सिन्होरा की खरीद करता है। अब देश के विभिन्न जिलों भोजपुर, बक्सर, रोहतास, पटना एवं गया सहित अन्य जिले के शहरों में मौजूद दुकान पर महिलाएं सिन्होरा का खरीदने लगी हैं। बता दें कि पवित्रता के प्रतीक सिन्होरा को बाजार में दुकान से खरीदते समय महिलाएं अपनी आंचल में ही सिन्होरा को ग्रहण करती हैं।

सिन्होरा का पांरपरिक उत्पादन केंद्र रहा डुमरांव

सुहाग सिदूर की अमिट निशानी सिन्होरा का पांरपरिक उत्पादन क्षेत्र जिले का डुमरांव नगर रहा है। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के पैतृक नगर डुमरांव में शताब्दियों पहले से सिन्होरा का निर्माण होता है। स्थानीय नगर के शहीद रोड, काली आश्रम के पास एवं छठिया पोखरा के पास ऐसे करीब एक सौ परिवार है। जो पूर्ण रूप से सिन्होरा निर्माण के कार्य में पुश्त दर पुश्त शामिल हैं।

सिन्होरा निर्माण एवं सामग्री का इस्तेमाल

सिन्होरा के निर्माण में विशुद्ध रूप से आम, खैर एवं बैर की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी के बड़े टुकड़े से करीब 10 ईंच से 14 ईंच लंबाई के छोटे-छोटे टुकड़े बनाए जाते हैं। बाद में हस्तचालित यंत्र कुन के माध्यम से लकड़ी को सिन्होरा का स्वरूप प्रदान किया जाता है। सिन्होरा पात्र तैयार हो जाने के बाद चपड़ा से बने लाल रंग को चढ़ाकर पात्र को धूप में सूखने को छोड़ दिया जाता है। कुछ देर के बाद चमकता हुआ सिन्होरा तैयार दिखने लगता है। हालांकि, इस वैज्ञानिक युग में सिन्होरा तैयार करने में शामिल कई परिवार बिजली के छोटे मोटर के माध्यम से कुन का इस्तेमाल करने लगे है। महीनों सिन्होरा का निर्माण करने के बाद इस उद्योग में शामिल कुन्हेरा एवं खरवार बिरादरी के लोग शादी-विवाह के अवसरों का इंतजार करने लगते हैं। डुमरांव में निर्मित सिन्होरा का निर्यात संपूर्ण बिहार के आलावे मध्यप्रदेश, नई दिल्ली एवं पश्चिम बंगाल में होता है। सिन्होरा उद्योग में शामिल डुमरांव के लोगों ने साझा किया दर्द

सुहाग के सिदूर की अमिट निशानी सिन्होरा का पांरपरिक बाजार डुमरांव नगर है लेकिन, आज की दौर में डुमरांव की अनूठी सांस्कृतिक सिन्होरा उद्योग पर आर्थिक संकट के बादल मंडराने लगे है। डुमरांव सहित आस पास के इलाके से जंगल एवं वनों के समाप्त हो जाने के बाद लकड़ी के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि से इस उद्योग में शामिल लोगो का दर्द छलकने लगा है। सरकारी स्तर पर इस सिन्होरा उद्योग को आर्थिक मदद के बूते संरक्षा एवं सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है। सिन्होरा बनाने वाले अशोक कुमार ने अपनी पीड़ा जागरण से साझा करते हुए कहा कि, मुख्यमंत्री उद्योग विकास योजना तहत उद्योग विभाग द्वारा डुमरांव में सिदूरदान इंडस्ट्रीज खोलने की घोषणा की गई थी। सिदूरदान उद्योग में ढ़ाई करोड़ पूंजी निवेश करने की घोषणा राज्य सरकार द्वारा की गई थी। पर अब तक सरकारी घोषणा हवा हवाई रह गई। सिन्होरा निर्माण में कई पुश्तों के शामिल होने की बात बताते हुए राजू खरवार ने कहा कि मुख्यमंत्री सूक्ष्म एवं लघु उद्योग कलस्टर विकास योजना‌र्न्तगत डुमरांव में सिन्होरा हस्तशिल्प कलस्टर विकास के लिए शिल्पियों की सूचि भेजी गई। लेकिन परिणाम शून्य मिला। सिन्होरा निर्माण कार्य में शामिल मनीष कुमार का कहना है कि सरकार के ध्यान हमनी के प्रति नईखे। अब हमनी के धंधा पर ग्रहण लाग गईल बा। कईसे परिवार चली। सरकार से मदद के जरूरत बा। शिवराज प्रसाद का कहना है कि कड़ी मेहनत एवं समय के अनुपात में इस धंधे में आमदनी नहीं होने से सिन्होरा निर्माण कर्मी दूसरे धंधे की तरफ मुंह मोड़ रहे हैं।

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