जनतांत्रिक संघर्षों की आवाज थे राहत इंदौरी

जन संस्कृति मंच ने सुविख्यात शायर राहत इंदौरी की मौत को देश की साझी संस्कृति और हिदुस्तानी साहित्य के लिए बहुत बड़ी क्षति बताया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 Aug 2020 10:24 PM (IST) Updated:Tue, 11 Aug 2020 10:24 PM (IST)
जनतांत्रिक संघर्षों  की आवाज थे राहत इंदौरी
जनतांत्रिक संघर्षों की आवाज थे राहत इंदौरी

आरा। जन संस्कृति मंच ने सुविख्यात शायर राहत इंदौरी की मौत को देश की साझी संस्कृति और हिदुस्तानी साहित्य के लिए बहुत बड़ी क्षति बताया है। जसम के राज्य सचिव सुधीर सुमन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि इस वक्त जब इस मुल्क में सदियों पुराने भाईचारे को धार्मिक-सांप्रदायिक फासीवादी राजनीति लगातार तोड़ रही है, तब उसके खिलाफ राहत साहब अपनी शायरी के जरिए कौमी एकता और आम अवाम के पक्ष में ताकतवर तरीके से आवाज बुलंद कर रहे थे। सांप्रदायिक फासीवादी जहर और व्यवस्थाजन्य त्रासदियों के खिलाफ संघर्ष करने वाले या बदलाव चाहने वाले तमाम लोगों के वे महबूब शायर थे। नागरिकता संबंधी कानूनों के खिलाफ जो आंदोलन पूरे देश में उभरा था, उसे भी राहत साहब की शायरी से मदद मिल रही थी। उन्होंने गजल में सेकुलर-जनतांत्रिक तर्कों को जगह दी, जिसके कारण उनकी रचनाएं आम अवाम के लोकतांत्रिक-संवैधानिक हक-अधिकार के संघर्ष से जुड़ गईं। उनका शेर 'सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में/ किसी के बाप का हिदुस्तान थोड़ी है' एकाधिकारवादी, सांप्रदायिक-वर्णवादी राष्ट्र की परिकल्पना के खिलाफ आम अवाम के राष्ट्र की अवधारणा के तौर पर मकबूल है।

हिदुस्तानी अकलियतों की पीड़ा और संकल्प भी उनकी शायरी की खासियत है। वे एक जिदादिल शायर थे। उनकी जिदादिली और उनका संघर्षशील मिजाज आने वाले वक्त भी हमें रोशनी दिखाता रहेगा। राहत इंदौरी के निधन पर शोक प्रकट करने वालों में कवि राम निहाल गुंजन, कवि-कथाकार जितेंद्र कुमार, कवि-नाटककार सुरेश कांटक, कवि-कथाकार सुमन कुमार सिंह, चित्रकार राकेश दिवाकर, कवि सुनील चौधरी आदि थे।

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