कवि कैलाश ने भारत माता की जय का किया जयघोष

आजादी की लड़ाई में भोजपुर जिले का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिले के स्वतंत्रता सेनानियों की एक लंबी फेहरिश्त है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 10:20 PM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 05:14 AM (IST)
कवि कैलाश ने भारत माता की 
जय का किया जयघोष
कवि कैलाश ने भारत माता की जय का किया जयघोष

आरा। आजादी की लड़ाई में भोजपुर जिले का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिले के स्वतंत्रता सेनानियों की एक लंबी फेहरिश्त है। प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों, जिन्हें आज भी लोग बार-बार याद करते हैं, उनमें एक प्रमुख नाम है-अमर शहीद कैलाशपति सिंह उर्फ कवि कैलाश। आरा सदर प्रखंड के घोड़ादेई गांव में 1889 को जन्मे कवि कैलाश ने स्थानीय समाहरणालय के पास 28 सितंबर 1942 अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की। अंग्रेजों भारत छोड़ो, भारत माता की जय और महात्मा गांधी की जय का जयघोष किया, जिसके कारण अंग्रेजी सैनिकों द्वारा बर्बरतापूर्वक कार्रवाई करते हुए उनकी हत्या कर दी गई। इस घटना को लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं।

--------------

पौधारोपण के लिए किया ग्रामीणों को प्रेरित : बचपन से ही कवि कैलाश जिज्ञासु प्रवृति के थे। उन्होंने प्रकृति और मनुष्य के गहरे संबंधों को भी समझा। एक बगीचा में कई फलदार वृक्ष लगाये। एक नर्सरी भी स्थापित की। साथ ही पौधरोपण के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया। इनकी नर्सरी की ख्याति दूर-दूर तक फैलने के कारण डुमरांव महाराज के बगीचे को समृद्ध और विकसित करने का अवसर मिला।

-------------

आर्थिक संकट के कारण फौज में हुए भर्ती : आर्थिक संकट से जूझ रहे कवि कैलाश द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने के पूर्व सेना में भर्ती हो गए। 11वें राजपूत रेजिमेंट में सिगनल मैन की नौकरी की। लगभग 8 साल तक फौज की नौकरी के दौरान कई देशों में ब्रिटिश सरकार का सिपाही बनकर वीरतापूर्वक युद्ध में लड़ाई लड़ी। इनकी वीरता के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

-------

फौज में बने कवि : फौज में रहने के दौरान एक घटना घटी। चमत्कारपूर्ण उस घटना के बाद वे अपनी बातों को तुकबंदी व कविता में कहने लगे। इसके बाद लोगों ने इन्हें कवि जी या कवि कैलाश कहना शुरु किया।

-------

फौज में ही भारत को स्वतंत्र कराने का लिया संकल्प : सेना में रहते हुए अंग्रेजों के द्वारा भारतीय लोगों के साथ भेदभाव को देखकर उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया। फौज से त्याग पत्र देकर वह घर आएं। इसके बाद इनका बागीचा कांग्रेसियों व स्वतंत्रता सेनानियों का जमघट बना। कवि कैलाश कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बनकर गांव-गांव घूमकर गांधी जी की नीतियों से लोगों को अवगत कराते और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार की प्रेरणा देते।

--------

समाहरणालय पर तिरंगा फहराने के दौरान हुए शहीद : कवि कैलाश की नर्सरी में जिले के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक बैठक में 28 सितंबर 1942 को सुबह 6 बजे जोगवलिया गांव के बगीचा में एकत्रित होकर कलक्ट्री के लिए प्रस्थान करने व समाहरणालय पर तिरंगा फहराकर मालगुजारी देने से मना करने का निर्णय लिया गया। कवि कैलाश ने इसका नेतृत्व स्वयं करने की बात कही। 28 सितंबर को आरा में 144 लगा दिया गया था। कलक्ट्री के पास अंग्रेजों ने सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर रखा था। कवि कैलाश अपने चंद साथियों के साथ कलक्ट्री परिसर पहुंचकर झंडे को झोले से निकालकर एक छड़ी में लगाया और झंडा को लहराते हुए भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय और अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए आगे बढ़े, तभी अंग्रेज सिपाहियों ने कवि कैलाश को पकड़कर निर्ममतापूर्वक मारा। सिपाहियों ने बंदूक की बट, बूट से मारा। उन्हें उछाल-उछालकर पटका, लोहे के खूंटे पर पटक दिया। इससे भी जब जालिमों का मन नहीं भरा तो उनके बदन पर गर्म पानी फेंका और बदन पर नमक डाला। बावजूद कवि कैलाश अंतिम सांस तक नारा लगाए और मातृभूमि के लिए शहादत देकर अमर हो गए।

chat bot
आपका साथी