भोजपुर में लॉकडाउन में गांव के बड़ों का भी लौट आया बचपन

कोरोना खिलाफ जारी जंग में सभी गतिविधियां ठप है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 22 May 2021 10:54 PM (IST) Updated:Sat, 22 May 2021 10:54 PM (IST)
भोजपुर में लॉकडाउन में गांव के बड़ों का भी लौट आया बचपन
भोजपुर में लॉकडाउन में गांव के बड़ों का भी लौट आया बचपन

आरा। कोरोना खिलाफ जारी जंग में सभी गतिविधियां ठप है। सरकार ने कोरोना संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए लॉकडाउन लगाया है। जिसके कारण लोग घरों में टाइम पास के लिए पारंपरिक खेल खेल रहे हैं। जिदगी जीने का अंदाज भी बदल गया है। शहरों में जिदगी जहां ऑनलाइन चल रही है। वहीं गांवों में यह जमीं को चूम रही है। बाड़ी चिक्का, लूडो, लगड़ी खेल, पिट्टो, कंचे गोली आदि पारंपरिक खेल फिर से याद आ गए हैं, जो कभी यादों की गलियों में खो से गए थे। अब नई पीढी के बच्चे व युवा अपने परिजनों के साथ इन खेलों का बहुत ही जोशो-खरोश के साथ लुत्फ उठा रहे हैं। इससे उस पीढ़ी के वे लोग बहुत ही खुश हैं। जिनका बचपन इन खेलों को खेलते-खेलते बीता जवानी में इनके चैंपियन रहे और अब कोरोना काल में वर्षों बाद उन्हीं पारंपरिक खेलों का आनंद ले रहे हैं। गांव आधुनिकता की बयार से अछूते हैं, यह बात नहीं है।गांवों में भी कंप्यूटर, लैपटॉप, टैब और स्मार्ट फोन पहुंच चुके हैं। लेकिन कमजोर मोबाइल नेटवर्क ही है कि ये अभी मात्र शोभा की वस्तु बने हुए हैं। ऐसे में पारंपरिक खेल गतिविधियां आज की पीढ़ी के समय बिताने का जरिया बनी हुई हैं। --- बच्चे के साथ बाड़ी चिक्का खेल रहे गांव के मदन कुशवाहा जीवन के 55 से अधिक वर्ष व्यतीत कर चुके नगरांव के मदन सिंह कुशवाहा बाड़ी चिक्का और कंचे गोली का जिक्र होते ही अतीत में चले जाते हैं. उनके चेहरे को देखकर ही महसूस हो जाता है कि वे बीते पलों को याद कर कितना आनंदित हो रहे हैं. वह बताते है. कि हमने बचपन में बहुत बाड़ी चिक्का और कंचे खेले हैं. कैसे खेलते हैं. कंचों को तो वह बहुत ही उत्साह से बताते है कि इसे कई प्रकार से खेलते हैं. पहले में खुत्ती (गोले) में कंचे डालते और फिर निशाना लगाते हैं. दूसरी पिल-टका खेल, इसमें एक-दूसरे कंचे को धरती पर बैठ कर निशाना लगाना होता है।वही, बाड़ी चिक्का का खेल दोनो हाथ घुटने के अंदर डाल कर रेस लगाना होता है. यानी कि हाथ के बल चलना है. -- शहर में रहकर पढ़ाई करने वाले भी लौटे गांव के दहलीज पर मदन सिंह कुशवाहा कहते है. कि 19 वर्षीय टिकू कुशवाहा शहर में रहकर पढ़ाई करता है. वह गांव के इन खेलों से अपरचित था। गांव के पारंपरिक खेलों का आनंद नहीं लिया था।अब जबकि वह कोरोना काल में बोर हो रहा था। फिर गांव के गलियारे में चल रहे खेल गतिविधियों के देखते ही अब मेरा बेटा पूर उत्साह के साथ कंचे खेल रहा है. वह घर में रहने में रहकर बोर होने से बेहतर महसूस कर रहा है. मोबाइल गेम से बोर होकर गोली टाना का मजा लेने में लग गया। खेल को लेकर काफी उत्साहित है. ---- आधुनिक जमाने में लुप्त हो गया था गांव का पारंपरिक खेल टेक्नोलॉजी की दुनिया में जहां स्मार्टफोन में उपलब्ध तरह-तरह के गेम के कारण आज के दौर के युवा गांव के पारंपरिक खेलों से कोसों दूर है. उन्हें गांव के पारंपरिक खेल पसंद भी नहीं आएगा। शहर में रहकर पढ़ाई करने वाले युवा कोरोना के कारण गांव के दहलीज पर लौटने से मजबूर कर दिया था। जिसके बाद गांव में इंटरनेट की स्पीड नहीं होने के कारण समार्टफोन का उपयोग नही कर पा रहे है. वह मन लगाने के लिए गांव के पुराने खेलों में लग गए हैं।

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