जब तक हिदी सिनेमा रहेगा, तब तक जिदा रहेंगे दिलीप कुमार

मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान का बुधवार की सुबह 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 07 Jul 2021 10:55 PM (IST) Updated:Wed, 07 Jul 2021 10:55 PM (IST)
जब तक हिदी सिनेमा रहेगा, तब तक जिदा रहेंगे दिलीप कुमार
जब तक हिदी सिनेमा रहेगा, तब तक जिदा रहेंगे दिलीप कुमार

आरा : मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान का बुधवार की सुबह 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से बीमार थे। कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मुम्बई के जुहू कब्रिस्तान में शाम में राजकीय समारोह के साथ सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस मौके पर फिल्म दुनिया से जुड़ी कई हस्तियों व सगे-संबंधियों के साथ बड़ी संख्या में उनके प्रशंसक मौजूद थे। ट्रेजेडी किग कहलाने वाले दिलीप कुमार ने अपने पांच दशक के लंबे कैरियर में मुगले आजम, देवदास, नया दौर, राम और श्याम, गंगा-जमुना, विधाता, दुनिया, कर्मा, सौदागर, शक्ति जैसी हिट फिल्में दी।भारतीय फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज समेत अन्य सम्मानों से नवाजे गए थे। आरा शहर में दिलीप कुमार के प्रशंसकों की एक लंबी फेहरिश्त है। प्रस्तुत है चंद लोगों से बातचीत के अंश।

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फोटो फाइल 7 आरा 35

--------------- दिलीप कुमार भारत की मिली-जुली तहजीब के नुमाइंदा थे। उन्हें यहां की संस्कृति, साहित्य, भाषा, संगीत और कला से गहरी मुहब्बत थी। उर्दू-हिदी मिश्रित रससिक्त जबान में उनकी संवाद-अदायगी का जादू देखने लायक होता था। 'गंगा जमुना' में उन्होंने अवधी बोला तो उसमें भी माटी की वही खुश्बू महसूस की गई। उनकी जबान वही थी, जो प्रेमचंद, फिराक, फैज, साहिर जैसों की जबान थी। मेरे परिवार में दादा से लेकर मेरी पीढ़ी तक के लोगों को उनकी फिल्में पसंद रहीं। उनकी कई फिल्में मैंने घर वालों को बिना बताए मार्निंग शो में देखी। टीवी पर कोई फिल्म आज भी आती है, तो उसे देखना हम नहीं भूलते। ऐसे शालीन, सभ्य, सुसंस्कृत और संवेदनशील एक्टर बहुत कम होते हैं। जब तक हिन्दी सिनेमा रहेगा, तब तक वे जिदा रहेंगे। सुधीर सुमन, युवा लेखक व संस्कृतिकर्मी

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दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान एक बेहतरीन अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी अदाकारी से किरदारों को जीवंतता प्रदान की। अपने गंभीर अभिनय के कारण उन्हें ट्रेजरी किग के रूप में जाना जाता था, पर जब कामेडी की बारी आई तो उसमें भी उनका बेहतरीन अभिनय देखने को मिला- राम और श्याम, मुगल-ए-आजम, देवदास , कोहिनूर समेत कई फिल्में उनकी बेमिसाल अदाकारी का उदाहरण हैं। उनके बिना इन फिल्मों के किरदारों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आज उनके निधन से सिने जगत के एक युग का अंत हो गया।

डा. विभा कुमारी, सचिव, रेड क्रास सोसायटी, भोजपुर आज दुनिया के मशहूर ऐक्टिग सम्राट ट्रेजडी किग दिलीप कुमार साहब हमारे बीच नही रहे। एक जमाना था जब उनकी कोई भी फिल्म मैं पहले दिन ही देखने की कोशिश करता था। उनकी फिल्म मुगलेआजम, देवदास तो बहुत बार देखा। उनकी फिल्म बार-बार देखने से भी दिल को इत्मीनान नहीं होता है। वह अपने किरदार को निभाने में खुद को उस किरदार में डूबा देते थे, जिससे हर किरदार में वास्तविक लगते थे। मैं उनका बहुत बड़ा फैन हूं। आज भी उनकी कोई फिल्म टीवी पर आता है तो मैं सारा काम छोड़ कर उनकी फिल्म देखता हूं। वह एक बड़े अभिनेता के साथ एक अच्छे इंसान भी थे।

सरफराज अहमद खान,

महासचिव, वीर कुंवर सिंह स्मारक, आरा उन्होंने मोहब्बत के लिए हिदुस्तान की सल्तनत ठुकरा दी थी। उन्होंने नए दौर की बस को अपने तांगे से पीछे छोड़ा था। वह चंद्रमुखी और पारो के बीच झूलता हुआ देवदास थे, जिसे •ादिगी और मोहब्बत की •ाुबान से अनजान लोगों ने ट्रैजडी किग बताया। वह राम और श्याम के द्वंद्व में फंसे ऐसा आदमी थे, जिसे उसकी इंसानियत बार-बार रास्ता दिखाती रही। वह एक बेचैन बाप थे, जिसने अपने मुजरिम बेटे को गोली मारी थी।

वह एक •ाख्मी रूह थे, जिसने आसमान में क्रांति लिखी और फिर फ़ै•ा के नग़मे को कुछ बदल कर गाया।

कौंधती आंखों और लरजती आवा•ा वाले उस नायक से आने वाले नायकों ने अदाकारी का हुनर चुराया। कृष्णेन्दू, फिल्म निर्देशक

------------------- दिलीप कुमार साहब बहुत ही कलाकार के साथ अच्छे इंसान भी थे। उनकी मैं फैन हूं। बचपन से ही उनके अभिनय की मैं प्रशंसक रही। जब उनकी फिल्में हाल में लगती थी, तो उन्हें देखकर मुझे खुशी होती थी। उनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। भले ही आज वे हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनका विभिन्न फिल्मों में अभिनय को आने वाली नई पीढ़ी भी देखेगी और सीखेगी। देश-विदेश में बड़ी संख्या में मौजूद उनके हमेशा याद रखेंगे।

छंदा सेन, वरिष्ठ अभिनेत्री

--------------- लाजवाब कलाकार थे दिलीप साहब। इस दुनिया को अलविदा कहने के कारण उनके करोड़ों प्रशंसक गमगीन हैं। दादा साहब फाल्के पुरस्कार के साथ आठ बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से नवाजे गए ट्रेजडी किग दिलीप कुमार का मैं जबरदस्त फैन रहा। उनकी आखें जुबान से पहले संवाद सुना देती थीं। एक दौर था, जब इनकी फिल्में सिनेमा हाल में लगती थीं तो इनके फैन की भीड़ उमड़ पड़ती थी। हम उन्हे कभी भूल नहीं पाएंगे।

वीरेन्द्र पांडेय, गीतकार

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