World Museum Day 2021: सांस्कृतिक धरोहर के ज्ञान का महत्वपूर्ण साधन है यहां संग्रहित वस्‍तु, आप भी देखिए

World Museum Day 2021 संग्रहालय में संयोजी वस्तुएं सांस्कृतिक धरोहर के ज्ञानार्जन का महत्वपूर्ण साधन। शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिए गौरवशाली अतीत का जीवंत तस्वीर। भागलपुर संग्रहालय का 11 नवंबर 1976 और विक्रमशिला में 2004 में हुआ था स्थापना।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 08:57 AM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 08:57 AM (IST)
World Museum Day 2021: सांस्कृतिक धरोहर के ज्ञान का महत्वपूर्ण साधन है यहां संग्रहित वस्‍तु, आप भी देखिए
भागलपुर के विभिन्‍न संग्रालयों में सुरक्षित है पुरातात्विक अवशेष।

भागलपुर [अमरेंद्र कुमार तिवारी]। World Museum Day: अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस प्रत्येक वर्ष 18 मई को मनाया जाता है। वर्ष 1983 में 18 मई को संयुक्त राष्ट्र ने संग्रहालय की विशेषता एवं महत्व को समझते हुए अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने का निर्णय लिया था।

क्या था इसका मूल मकसद

इसका मूल मकसद जनसामान्य में संग्रहालयों के प्रति जागरूकता तथा उनके कार्यकलापों के बारे में जन जागृति फैलाना। इसका यह भी एक उद्देश्य था कि लोग संग्रहालयों में अपने इतिहास और प्राचीन समृद्ध परंपराओ को अच्छी तरह जाने और समझे। इसी कड़ी में 11 नवंबर 1976 को भागलपुर संग्रहालय की स्थापना की गई थी इसके बाद विक्रमशिला बहुत बिहार में भी वर्ष 2004 में एक और संग्रहालय की स्थापना हुई जो हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर की जीवन तस्वीर को संजो कर रखा है यह संग्रहालय शिक्षकों एवं शोधार्थियों के ज्ञानार्जन का महत्वपूर्ण साधन।

मानव सभ्यता का याद दिलाता है संग्रहालय

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार संग्राहालय में ऐसी अनेक चीजें सुरक्षित रखी जाती हैं जो मानव सभ्यता की याद दिलाती है। संग्रहालय में रखी वस्तु हमारी सांस्कृतिक धरोहर तथा प्रकृति को प्रदर्शित करती है।

आईसीओएम संस्कृति और ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध

इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूजियम (आइसीओएम) संग्रहालयों और संग्रहालय पेशेवरों का एक वैश्विक क्षेत्र है, जो कि प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत, वर्तमान और भविष्य, मूर्त और अमूर्त के प्रचार और संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। संस्कृति और ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए आईसीओएम की प्रतिबद्धता अपनी 31 अंतर्राष्ट्रीय समितियों द्वारा के लिए समर्पित है, जो अपने संबंधित क्षेत्रों में संग्रहालय समुदाय के लाभ के लिए उन्नत शोध करते हैं। संगठन, अवैध तस्करी से लड़ने, आपातकालीन स्थितियों में संग्रहालयों की सहायता करने, और अन्य कार्यकलापों में शामिल है। आईसीओएम ने 1977 में अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया।

संगठन हर वर्ष ज्ञानार्जन के लिए करता है कार्यक्रम आयोजित

संगठन 1992 से हर साल इसके विषय का चयन करता है और कार्यक्रम का समन्वय करता है। जनसामान्य को संग्रहालय विशेषज्ञों से मिलाने एवं संग्रहालय की चुनौतियों से अवगत कराने के लिए स्रोत सामग्री विकसित करता है। 2020-21 के लिए थीम "म्यूजियम फॉर इक्वलिटी :  डायवर्सिटी एंड इंक्लूजन" है। इसका उद्देश्य विश्वभर में संग्रहालयों की भूमिका के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है।

संग्रहालय में रखी वस्तुएं प्रकृति और सांस्कृतिक धरोहर को करती है प्रदर्शित

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद' के अनुसार, "संग्रहालय में ऐसी अनेक चीज़ें सुरक्षित रखी जाती हैं, जो मानव सभ्यता की याद दिलाती हैं। संग्रहालयों में रखी गई वस्तुएं प्रकृति और सांस्कृतिक धरोहरों को प्रदर्शित करती हैं। इस दिवस का उद्देश्य विकासशील समाज में संग्रहालयों की भूमिका के प्रति जन-जागरूकता को बढ़ाना है।

रविंद्र भवन टीला कोठी में भी है एक संग्रहालय

एक संग्रहालय ति. मा. भागलपुर विश्वविद्यालय के पी. जी. प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, रवींद्र भवन(तिलहा कोठी) में स्थित है, जहाँ पुरातात्विक महत्व की अनेक वस्तुओं के साथ ही प्राचीन सिक्के और विभिन्न पाषाण उपकरण संगृहीत हैं, परंतु मुख्य रूप से दो जिले में दो भागलपुर संग्रहालय और विक्रमशिला पुरातात्विक स्थल संग्रहालय काफी महत्वपूर्ण है। यहां के प्रदर्श इस क्षेत्र से सम्बन्धित सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं।

भागलपुर संग्रहालय की खासियत

इसकी स्थापना 11 नवंबर, 1976 को किया गया। इसमें प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर आधुनिक काल तक की अनेक कलाकृतियां प्रदर्शित हैं, जो कि ब्राह्मण, जैन और बौद्ध धर्म से संबंधित हैं! जिसमें वराह,सरस्वती, दशावतार, सप्तमातृका, बुद्धपट्टिका के साथ ही 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य की खण्डित प्रतिमा उल्लेखनीय है, इसके साथ ही छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आहत सिक्के और बाद के प्राचीन सिक्के, पांडुलिपियाँ इत्यादि भी महत्वपूर्ण हैं! प्रमुख प्रदर्शों में मंदार से प्राप्त गणेश की षटभूजीय खंडित प्रतिमा तथा दूसरी अन्य खंडित गणेश प्रतिमा है। महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) की काले पत्थर द्वारा निर्मित बांका से प्राप्त खंडित प्रतिमा, सी एम एस स्कूल भागलपुर से प्राप्त काले पत्थर की चतुर्भुज दुर्गा प्रतिमा भी विशिष्ट कलाकृति हैं। इसके साथ ही विष्णु की कई प्रतिमाएं भी हैं, जो सभी उत्तरगुप्तकालीन है! यहां जो एक महत्वपूर्ण अद्भुत प्रतिमा है, वह कुषाणकालीन यक्षिणी है जो शाहकुंड से प्राप्त है! इसके साथ ही हाल में ही शाहकुण्ड से प्राप्त सेण्डस्टोन प्रतिमा (लकुलीश, यक्ष) भी यहीं प्रदर्शित की गई है! गुप्तकालीन सारनाथ की बुद्ध प्रतिमा के अनुरूप ही यहां, सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा की एक विशिष्ट प्रतिमा इस संग्रहालय में है, जिसमें पारदर्शी वस्त्र उष्णीय एवं उर्ण का अंकन काफी कुशलतापूर्वक किया गया है।

विक्रमशिला संग्रहालय की विशेषता

यह संग्रहालय भी काफी महत्वपूर्ण है, इसकी स्थापना नवंबर 2004 में की गई। यहां 1972- 82 में किए गए पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त कलाकृतियां संरक्षित है। यहां की मुख्य प्रदर्शों में बुद्ध की बलुआ पत्थर से निर्मित भूमिस्पर्श मुद्रा की प्रतिमा काफी महत्वपूर्ण है, इसमें बुद्ध को दाहिने हाथ की अंगुली द्वारा भूमि स्पर्श करते हुए दिखाया गया है साथ ही चारों और बुद्ध की जीवन से संबंधित घटनाओं को दिखाते हुए सात अन्य बुद्ध की आकृति का भी अंकन है! वज्रयान के केंद्र होने के कारण यहां से प्राप्त बौद्ध धर्म की देवी तारा की प्रतिमा भी यहां प्रदर्शित है। यह प्रतिमा हाई रिलीफ तकनीक द्वारा काले बेसाल्ट पत्थर द्वारा निर्मित है, जिसमें देवी का अलंकरण का अंकन आद्वीतीय रूप से किया गया है।

वज्रयानी बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण शिव के महाकाल स्वरूप की भी प्रतिमा यहां प्राप्त होती है जो कि इस संग्रहालय में प्रदर्शित है। तंत्र प्रभाव के कारण इसमें महाकाल को दानव का भक्षण और रक्तपान करते हुए प्रदर्शित किया गया है अंकन प्रतीत होता है। एक अन्य महाकाल प्रतिमा में महाकाल को घने दाढ़ी और मूंछों के साथ खुले मुख के रूप में प्रदर्शित किया गया है, वह चार भुजाओं में शंख, कपाल खोपड़ी, त्रिशूल और कटोरा एवं नर मुंडो की माला गले में धारण किए हुए हैं, जो शिव के रौद्र रूप का प्रतीक है। इसके अलावा इस संग्रहालय में सूर्य, पार्वती, उमा-महेश्वर इत्यादि की कई महत्वपूर्ण प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं।

कृष्ण- सुदामा का स्थापत्य फलक भी काफी महत्वपूर्ण है जिसमें सुदामा के जीर्ण-शीर्ण दाढ़ीयुक्त शरीर का अंकन कुशलतापूर्वक किया गया है इसमें दरिद्रता और कुपोषण का सफल अंकन उसके न्यून वस्त्रों और उभरी हुई पसलियों के अंकन द्वारा किया गया है। इसके अलावा इस संग्रहालय में एक नवग्रह फलक जिसमें सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु ग्रहों का मानव स्वरूप में अंकन किया गया है, काफी कलात्मक एवं महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यहां कई कांस्य एवं अष्टधातु धातु की भी प्रतिमाएं  प्रदर्शित हैं, जिनमें मंजूश्री और तारा की प्रतिमाएं महत्वपूर्ण है जो कि नालंदा और कुर्किहार की प्रतिमाओं के समकक्ष स्थान रखती है। टेराकोटा के रूप में यहां डिस्क, खिलौना, त्वचा रगड़ने वाला, मनके और मुहर इत्यादि भी प्रदर्शित हैं। यहां सभी प्रदर्श 8वीं से 12वीं शताब्दी तक के मध्य के हैं जो इस क्षेत्र के समकालीन सामान्य जीवनशैली और विशेष रूप से विक्रमशिला महाविहार के स्थापना काल की संस्कृति को जीवित जीवंत करते हैं।

क्या कहते हैं टीएमबीयू के शिक्षक

पीजी प्राचीन भारतीय इतिहास, संसकृति एवं पुरातत्त्व विभाग, तिमा भागलपुर विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ पवन शेखर ने कहा कि ये दोनों संग्रहालय शिक्षकों, शोध छात्रों, विद्यार्थियों के साथ ही सामान्य जनों को अनुसंधान और अपने विरासत को जानने- समक्ष ने का विशिष्ट माध्यम प्रदान करते हैं।

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