किसानों के लिए वरदान साबित होगा जलकुंभी, कम खर्च में ज्‍यादा पैदावार ले सकेंगे, बीएयू ने की यह पहल

जलकुभी अब किसानों के लिए वरदान साबित होगा। कम खर्च में किसान ज्‍यादा लाभ ले सकते हैं। इसके लिए बिहार कृषि विवि ने पहल की है। दरअसल यह अब तक सबसे खतरनाम खरपतवार माना जाता था। लेकिन अब...!

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 07:09 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 07:09 AM (IST)
किसानों के लिए वरदान साबित होगा जलकुंभी, कम खर्च में ज्‍यादा पैदावार ले सकेंगे, बीएयू ने की यह पहल
जलकुभी अब किसानों के लिए वरदान साबित होगा।

भागलपुर [ललन तिवारी]। सबसे घातक खर-पतवारों में प्रचलित जलकुंभी से बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वर्मी कंपोस्ट तैयार किया है जो राज्य के किसानों के लिए वरदान साबित होगा। इसके उपयोग से न सिर्फ खेतों की मिट्टी मजबूत होगी, बल्कि किसानों की उत्पादन लागत भी घटेगी और वे आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे। वर्मी कंपोस्ट में इसका उपयोग किए जाने से जल स्वच्छता को भी बल मिलेगा।

अन्य कंपोस्ट की तुलना में है ज्यादा गुणवत्तापूर्ण

जलकुंभी से तैयार वर्मी कंपोस्ट अन्य कंपोस्ट की तुलना में ज्यादा गुणवत्तापूर्ण है। इसमें विटामिन, मिनरल्स, एंजाइम और काकटेल की मात्रा पाई जाती है जो मिट्टी के पोषक तत्वों को बनाए रखती है। प्रति हेक्टेयर जहां सामान्य वर्मी कंपोस्ट 100 किलो लगता है, वहीं जलकुंभी से तैयार वर्मी कंपोस्ट 60 किलोग्राम ही उपयोग किया जा सकेगा।

जलकुंभी से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के तरीके

सबसे पहले तालाब या नदियों से जलकुंभी को बाहर निकाल लें। उसे अच्छी तरह सुखा लें। जलकुंभी की जड़ सूखने के बाद अलग कर लें। फिर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटें। तत्पश्चात गोबर और पानी का मोटा घोल तैयार कर उसमें सूखे हुए जलकुंभी को अच्छी तरह मिलाएं। फिर उसे टैंक में डालें। तैयार मिश्रण केंचुए के लिए काफी स्वादिष्ट भोजन बन जाता है। इस मिश्रण में केंचुए को डालते ही वह धीरे-धीरे वर्मी कंपोस्ट तैयार करना शुरू कर देता है। इस तरह तैयार वर्मी कंपोस्ट अन्य कंपोस्ट की तुलना में ज्यादा गुणवत्तापूर्ण होता है।

युवाओं के लिए रोजगार का होगा साधन

शोध परियोजना के पीआइ और बिहार कृषि विश्वविद्यालय विज्ञान के सहायक प्राध्यापक व कनीय वैज्ञानिक डा. एससी पाल ने कहा कि जलकुंभी एवं पार्थेनियम जैसे खरपतवार दिन-प्रतिदिन लोगों के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं। ऐसे खरपतवारों का भी सही उपयोग कर इससे वर्मी कंपोस्ट बनाया जा सकता है और इसका बेहतर उपयोग कृषि कार्य में किया जा सकता है। इससे हम युवाओं के लिए रोजगार उत्पन्न कर सकते हैं। इसी दिशा में इस शोध परियोजना को मुकाम पर पहुंचाया गया है जो किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि जलकुंभी वर्मी टैंक से प्राप्त लिक्विड का भी उपयोग पौधों में लगे रोग व्याधियों को नियंत्रित करने के लिए कर सकते हैं। इसका भी शोध में अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ है।

किसानों को जल्द दिया जाएगा प्रशिक्षण

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने कासिमपुर गांव को गोद लिया है। वहां के किसानों को जल्द जलकुंभी से वर्मी कंपोस्ट बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में उगी जलकुंभी का किसान बेहतर उपयोग कर सकें। उन्होंने कहा कि अब राज्य के किसानों के लिए जलकुंभी और पार्थेनियम जैसे खर-पतवार संकट के कारण नहीं बनेंगे।

कोट

विश्वविद्यालय किसानों की आर्थिक समृद्धि की दिशा में कार्य करने को प्रतिबद्ध है। यहां के वैज्ञानिक नित्य नए शोध में लगे हुए हैं। जलकुंभी अब परेशानी का सबब नहीं, बल्कि यह अब किसानों के लिए वरदान बनेगा।

डा. अरुण कुमार कुलपति बीएयू सबौर  

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