Saharsa : दिन भर मजदूरी करने वाले उमश शाम ढलते ही गांव भर के बन जाते हैं गुरुजी, बच्‍चे से लेकर बूढ़े तक हैं इनके विद्यार्थी

दिन भर दूसरे के खेतों में मजदूरी करने वाले सहरसा के उमेश यादव पूरे गांव के शिक्षक हैं। शाम ढलते ही उनकी पाठशाला खुल जाती है। इनके यहां बच्‍चे से लेकर बूढ़े तक पढ़ने के लिए पहुंचते हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 01:18 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 01:18 PM (IST)
Saharsa : दिन भर मजदूरी करने वाले उमश शाम ढलते ही गांव भर के बन जाते हैं गुरुजी, बच्‍चे से लेकर बूढ़े तक हैं इनके विद्यार्थी
सहरसा के उमेश यादव अपने गांव के लोगों को बना रहे साक्षर।

सहरसा [कुंदन कुमार]। मनुष्य जिस समाज में जन्म लेता, उस समाज के कर्ज को चुकाना उसका दायित्व है। यह मानना है कि जिले के कचरा गांव निवासी उमेश यादव का। स्नातक की डिग्री प्राप्त कर नौकरी प्राप्त करने असफल उमेश गांव में रहकर मजदूरी कर, अपने खेतों में काम कर जहां जीविका चलाने लगे। वहीं पढ़े- लिखे होने के कारण उनके मन में कुछ कर गुजरने की लालसा बेचैन करती रही। वो गांव में शाम के समय निरक्षर महिला-पुरुषों को अक्षरदान देने लगे। इससे समाज में उनकी काफी इज्जत होने लगी। उमेश के प्रयास से कचरा और अगल- बगल के गांवों के चार सौ से ज्यादा लोगों ने लिखना-पढऩा सीख लिया।

आर्थिक विपन्नता के बावजूद अनवरत जारी रहा सामाजिक कार्य

उमेश जब गांव में थे तो वर्ष 1992 में गोबरगढ़ा में ज्ञान- विज्ञान समिति के एक वातावरण निर्माण कार्यक्रम के दौरान उनकी मुलाकात महेशपुर के उमेश यादव ने हुई। उन्होंने बताया कि केरल में अर्नाकुलम में सफलता प्राप्त करने के बाद पूरे केरल राज्य में शिक्षित लोग निरक्षरों को पढ़ाने- लिखाने का कार्य कर रहे हैं। इस तरह का अभियान हमसबों को भी अपने गांव- समाज में चलाना चाहिए। उमेश इससे प्रभावित हुए और खेतीबारी के साथ- साथ मजदूरी तक अपने बच्चों का लालन- पालन करते हुए गांव में निरक्षरों को बैठाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। उनका कहना है कि आर्थिक विपन्नता के बावजूद परिवार के लोगों ने उन्हें इस कार्य में नैतिक समर्थन दिया। जिससे उनका सामाजिक अभियान अबतक चल रहा है।

कई नवसाक्षरों ने समूह के माध्यम से पाया रोजगार

उमेश ने कचरा और अगल- बगल के गांव में साक्षर हुए लोगों को संगठित कर स्वयं सहायता समूह का गठन किया। इस समूह को बैंक से जोड़कर वित्त पोषित कराया, जिससे कई लोग स्वरोजगार खड़ा कर अपने परिवार की बेहतर तरीके से परवरिश कर रहे हैं। कचरा की सरिता देवी अदौरी बनाकर बेचती है। उनका कहना है कि बैंक से सहयोग मिलने के बाद उनका यह कार्य लगातार चल रहा है और परिवार का भी ठीक से भरण- पोषण हो रहा है। फूल कुमारी पापड़ बनाकर बेचती है और सीता देवी बकरी पालन कर बेहतर तरीके से अपने बच्चों का लालन- पालन कर रही है। इनलोगों का कहना है कि उमेश ने न सिर्फ उनलोगों को शिक्षा की रोशनी दिखाई, बल्कि जीने का रास्ता भी दिखाया। इधर उमेश का सामाजिक कार्य आज भी जारी है। वे गांव में लोगों को नशामुक्ति, दहेज प्रथा समाप्त करने आदि के लिए प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही लोगों को अपने- अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उत्साहित करते हैं। उनका कहना है कि जबतक शरीर में शक्ति रहेगी, उनका सामाजिक अभियान जारी रहेगा।  

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