इस साल भी लोगों को झेलनी होगी प्रदूषण की मार, रोकथाम के लिए नहीं उठाए जा रहे कारगर कदम
विभिन्न माध्यमों से यहां का इलाका भी प्रदूषित होता है और लोगों को प्रदूषण की मार झेलनी पड़ती है। गत वर्ष किसानों ने फसल की कटाई के बाद अवशिष्ट को खेतों में ही जला कर पर्यावरण को प्रदूषित करने में भूमिका निभाई है।
सुपौल, जेएनएन। प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने खड़ी है। यह कई तरह की समस्याओं का कारक बन रही है और इसको लेकर आम जनमानस सशंकित और परेशान हैं। यही कारण है कि आज चहुंओर प्रदूषण के स्तर को कम करने और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने की बात जोर शोर से उठ और चल रही है। बढ़े प्रदूषण का खामियाजा कई राज्य भुगत चुके हैं और भुगत रहे हैं। महानगरों में प्रदूषण का स्तर काफी ऊंचा होना कोई नई बात नहीं। किंतु अब यही प्रदूषण का बढ़ा स्तर या फिर बढ़ा प्रदूषण लोगों को डराने लगा है और उन्हें भविष्य की ङ्क्षचता सताने लगी है।
कोसी के सुपौल जिले में कल कारखाने नहीं है। कल कारखाने से निकलने वाला धुआं इस इलाके में प्रदूषण का कारण नहीं बनता है। ङ्क्षकतु यहां प्रदूषण नहीं है यह नहीं कहा जा सकता। विभिन्न माध्यमों से यहां का इलाका भी प्रदूषित होता है और लोगों को प्रदूषण की मार झेलनी पड़ती है। गत वर्ष किसानों ने फसल की कटाई के बाद अवशिष्ट को खेतों में ही जला कर पर्यावरण को प्रदूषित करने में भूमिका निभाई है मजदूर का अभाव हो या फिर संसाधन की कमी जाने अनजाने किसान भी प्रदूषण को बढ़ावा दे ही जा रहे हालांकि इस दिशा में कृषि विभाग भी सजग हुआ और खेतों में पराली या अवशिष्ट जलाने पर प्रतिबंध लगाई तब जाकर स्थिति सामान्य हो पाई।
सुपौल जिला कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। सीवरेज व ड्रेनेज सिस्टम की समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण इस जिले में जलजमाव की समस्या एक विकट समस्या है। कई कई दिनों तक बारिश का पानी सरकारी कार्यालय स्कूल कॉलेज सड़क किनारे व लोगों के घर में जमा रहता है। नतीजा होता है कि कुछ ही दिनों बाद जमा पानी से दुर्गंध उठने लगती है और लोगों के समक्ष समस्याएं खड़ी हो जाती है जलजमाव से उठने वाला दुर्गंध भी प्रदूषण को बढ़ावा देता है। जिला वासी जलजमाव की इस समस्या से विगत कई वर्षों से जूझते से चले आ रहे हैं और प्रदूषण रूपी इस समस्या को झेलने को विवश है।
जिले में प्रदूषण के वाहक के रूप में ईट चिमनियों के योगदान से भी इनकार नहीं किया जा सकता। जिले में काफी ज्यादा तादाद में ईट चिमिनिया संचालित है। जिन से निकलने वाला धुआं प्रदूषण को बढ़ावा देता है। ईट चिमनियो पर नकेल को लेकर सरकार ने जिगजैग चिमनी बनाने का निर्देश दिया था। उद्देश्य था कि जिगजैग चिमनी के माध्यम से प्रदूषण कम होगा। ङ्क्षकतु सरकार का यह निर्देश धरातल पर साकार होता नहीं दिख रहा और वर्तमान समय में भी अधिकांश ईट चिमनी बिना जिगजैग के चल रहे हैं। यानी ईट चिमनी से निकलने वाला धुआं भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है।
सुपौल जिला सड़कों के जाल से घिरा हुआ है। ईस्ट-वेस्ट-कॉरिडोर फोरलेन 57, एनएच 106 के साथ-साथ कई एसएस भी जिले होकर गुजरती है। नतीजा है कि जिले की सड़कों पर 24 घंटे गाडिय़ों की भागमभाग लगी रहती है। गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं भी प्रदूषण को के स्तर को बढ़ा रहा है। कोरोना संक्रमण काल में जब गाडिय़ों की आवाजाही पर पाबंदी थी और गिनी चुनी गाडिय़ां ही सड़कों पर दौड़ रही थी तो उस समय पर्यावरण का एक अलग फिजा ही दिख रहा था। ङ्क्षकतु वाहनों के परिचालन को मिली छूट के बाद सड़कों पर वाहनों की भागदौड़ बढ़ चली और वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण को बढ़ावा देने में भूमिका निभा रहा है।
प्रदूषण समस्त प्राणियों के लिए घातक और जानलेवा साबित हो सकता है। दूषित वायु से सिर से लेकर पैर तक हानि पहुंचती है। दिल, फेफरों की बीमारी, डायबिटिज, डिमेंशिया, यकृति समस्याओं के साथ-साथ हड्डियों के शिथिल पडऩे और त्वचा तक पहुंचने वाली हानियों के लिए जिम्मेवार हो सकता है। इसके अतिरिक्त भी प्रदूषण कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है। प्रदूषण का स्तर जितना कम रहेगा लोगों की परेशानी उतनी कम होगी। प्रदूषण को कम कर स्वच्छ पर्यावरण के लिए सबों के सहयोग की अपेक्षा की जानी चाहिए।
डॉ. अजय कुमार झा, चिकित्सा पदाधिकारी, सदर अस्पताल सुपौल।
प्रदूषण देश के समक्ष एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में खड़ा है। प्रदूषण का खामियाजा देश का कई हिस्सा भुगत चुका है और भुगत रहा है। खेतों में पराली व अवशिष्ट जलाने का खामियाजा कई महानगर झेल चुका है। दिन में धूंध और दुर्घटनाओं के अंबार से देश के कई हिस्से के लोग रूबरू हो चुके हैं। इ न समस्याओं से निपटने के लिए प्रदूषण पर लगाम जरूरी है। इसके लिए सरकार, विभिन्न स्वयंसेवी संस्थान, समाज और आम लोगों को आगे आना होगा। इसकी भयावहता समझनी होगी। अन्यथा हमारे सामने खड़े प्रलंयकारी प्रदूषण का कोपभाजन तो हमें बनना ही होगा। - भगवान जी पाठक, पर्यावरणविद।