सुपौल में डीएपी की भारी किल्लत, कई जगहों पर किसानों ने किया प्रदर्शन, गेहूं और तिलहन की बुआई पर असर
सुपौल में डीएपी की भारी किल्लत हो गई है। इससे तिलहन और गेहूं की बुआई काफी धीमी रफ्तार से हो रही है। इसको लेकर कई जगहों पर किसानों ने रोड पर उतर कर प्रदर्शन भी किया। किसानों का कहना है कि...
जागरण संवाददाता, सुपौल। रबी की बोआई का समय चल रहा है। इस सीजन में गेहूं के साथ तेलहन की बोआई की जाती है। फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान खाद का प्रयोग करते हैं। इसमें रासायनिक खाद, जैविक खाद, कंपोस्ट आदि प्रमुख हैं। इस समय रासायनिक खाद खासकर डीएपी के लिए हाहाकार की स्थिति है। इसके लिए किसान सड़कों पर उतर रहे हैं।
किसानों के साथ पुलिस को भी उतरना पड़ रहा है। इतनी परेशानी के बावजूद किसान जैविक खेती से इन्कार कर रहे हैं। जबकि रासायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग से धरा की उर्वरा शक्ति कम होती जाती है। रासायनिक खाद का कम से कम प्रयोग और जैविक खाद के सहारे खेतों में हरियाली लाने के लिए सरकार की ओर से तरह-तरह के प्रयास चल रहे हैं।
किसानों के लिए आयोजित हुई कार्यशालाएं
सरकार के साथ कृषि विभाग द्वारा जैविक खाद के उपयोग के लिए कई कार्यशाला व शिविर आयोजित कर किसानों को जागरूक किया गया। पशुपालकों को भी जैविक खाद उत्पादन को लेकर तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए गए। शुरुआती दौर में किसान और पशुपालक इस दिशा में जागरूक भी हुए, परंतु जैविक खाद निर्माण में आने वाली कई तरह की बाधाओं और सु²ढ़ बाजार व्यवस्था नहीं रहने के कारण उनका मोहभंग होता चला गया।
आर्थिक सहायता भी नहीं आ सकी काम
जैविक खाद यानी वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन को लेकर कई तरह के प्रयास किए गए। किसानों व पशुपालकों को प्रोत्साहित कर वर्मी बेड बनाया गया। इसके लिए उन्हें आर्थिक सहायता भी दी गई लेकिन यह योजना धरातल पर सफल नहीं हो पाई। किसानों और पशुपालकों ने जो जैविक खाद का उत्पादन किया, उसका खरीदार नहीं मिल पाया। नतीजा हुआ कि किसानों ने अपने ही खेतों में वर्मी डालकर उसे ङ्क्षपड छुड़ाना उचित समझा। वर्तमान समय में इसको लेकर किसानों और पशुपालकों में कोई उत्सुकता नहीं दिख रही है।
तीन साल नहीं आई है राशि
वर्मी खाद को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रोत्साहन राशि के तौर पर अनुदान देती थी। तीन वर्षों से इस मद में राशि नहीं आई है। अनुदान नहीं मिलने से भी किसानों की अभिरुचि कम होती चली गई है।
बोले विज्ञानी
कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर के विज्ञानी डा. मनोज कुमार का कहना है कि जैविक खाद रासायनिक खाद की तुलना में अच्छी और कम हानिकारक है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है न कि कोई बुरा असर पड़ता है। किसानों को जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए।
कहते हैं खाद विक्रेता
वर्मी बेचने में भी तरह-तरह की परेशानियां सामने आती है। एक तो खरीदार नहीं है और दूसरा वर्मी खाद कुछ दिन गोदाम में रह जाने के बाद खराब हो जाती है। कोई लेने को तैयार नहीं होता।