सिक्कों की खोज में दिनभर मासूम लगाते हैं गोता, भागलपुर के गंगा घाट पर भी जारी है ये 'परंपरा'

भागलपुर के गंगा घाट ही नहीं देशभर के पवित्र नदियों के पुल और घाटों पर एक परंपरा वर्षों से चली आ रही है। सिक्कों के खोज की परंपरा जिनसे घाट किनारे बसे परिवारों का भरण पोषण चलता है। इन्हीं सिक्कों की खोज में एक हुनर भी तैर रहा है

By Shivam BajpaiEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 01:36 PM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 01:36 PM (IST)
सिक्कों की खोज में दिनभर मासूम लगाते हैं गोता, भागलपुर के गंगा घाट पर भी जारी है ये 'परंपरा'
गंगा में गोते लगा सिक्कों की खोज में मासूम शंकर।

आनलाइन डेस्क, भागलपुर। 'हां मैं गंगा को तैर कर पार कर सकता हूं। ये काम तो कई दिनों से  कर रहा हूं। सिक्कों की तलाश में कभी-कभी सोना-चांदी मिल जाता है। नाव चलाना भी जानते हैं और बढ़िया तैरना भी।' गंगा में आए उफान के बीच अंगिका में बचपनी आवाज में ये कहते हुए तीन-साढ़े तीन साल के शंकर भागलपुर गंगा तट पर पूरे दिन सिक्कों की तलाश में गोते लगाते हैं। मासूमों की टोली दिनभर पानी में रहती है। इनको ऐसे डुबकी लगाते हुए कई सवाल उठते हैं, जिनका जवाब ये खुद देते हैं।

भागलपुर ही नहीं देशभर में पवित्र नदियों के घाटों, पुल के नीचे ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है। परंपरा सिक्कों की तलाश कर पेट पालने की। चुंबक को एक डोर में फंसा जिंदगी की डोर की ये लीला इनके बालिग होने तक चलती है और यही शायद घाटों के किनारे बसे परिवारों की आत्मनिर्भरता है। शंकर के अन्य साथियों से पूछने पर वे बताते हैं कि हमारे घरवाले तो मछली पालन (मछली पकड़ते) करते हैं, नाव चलाते हैं। कुछ के मजदूरी भी करते हैं। तैरना कहां से सीखा? इसका जवाब वे 'खुद से' अपनी तोतली जुबान से कहते हुए देते हैं और जोर से गंगा में छलांग लगा देते हैं। हां शाम को गंगा घाट पर पहुंचे तो ये थक चुके थे लेकिन जैसे ही इनसे बात करनी शुरू की गई। मानों इनको बूस्टर मिल गया हो।

(मिल गया सिक्का-हाथ में चुंबक)

गंगा घाट पर मनाया जाने वाला बिहार का महापर्व छठ हो या गुरु पूर्णिमा जैसे पर्व, ये सभी इनके लिए किसी वरदान से कम नहीं। विक्रमशिला सेतु पुल के नीचे तो इन्हें खजाना मिलता है। आने-जाने वाले राहगीर गंगा माई को जो कुछ अर्पण करते हैं, उसकी खोज इनके द्वारा पूरी होती है। इस उम्र में बच्चे जहां खेल खिलौनों से खेलते हैं। वहीं इन बच्चों के लिए यही खेल है और अपनी जेबखर्च का जरिया भी। आम दिनों में दिन में ये 100 से 150 सिक्के तलाश लेते हैं और तीज त्योहार में अपने हुनर से यही सिक्के दोगुने कर लेते हैं।

2015 में एक फिल्म आई थी 'मसान', उसमें एक खेल खेला जाता है... सिक्कों की खोज का। उसे रील लाइफ को रियल में देखा जा सकता है। खेल से ही ताजा हो जाता है ओलंपिक, जिसमें  भारत को तैराकी में गोल्ड नहीं मिला। वही तैराकी, जिसके ये बच्चे धुरंधर हैं। सिक्कों की खोज में इनके अंदर जो हुनर पल रहा है, उसे इस निगाह से भी देखा जा सकता है। बड़े होकर इनका हुनर सदियों से गंगा की धार में बह जाता रहा है। क्या इनके इस हुनर को तराश जिस सोने की तलाश देश करता है, वो हासिल नहीं हो सकता सवाल ये है।

बिहार, नदियों का प्रदेश, जहां हर साल बाढ़ कहर मचाती है। गंगा के उफान के बीच भी इनका ये खेल अनवरत जारी रहता है। बाढ़ में हर सैकड़ों की मौत डूबने से हो जाती है। कुछ को इनके जैसे ही बड़े हो चुके तैराक बचाते भी हैं। उस समय ये किसी सुपर हीरो से कम नहीं। तो क्या इनको उस तट रक्षक बनाने के लिए तराशा नहीं जा सकता? यहां ये भी बताना चाहेंगे कि सिक्कों की तलाश में कइयों की जीवनलीला भी समाप्त हो चुकी है।

अंत में बस इतना, 'डिग्रियां तो तालीम के खर्चे की रसीदें हैं साहब, असल इल्म तो वो है जो किरदार में नजर आता है।'  इनका किरदार कुशल तैराक बनने जैसा है लेकिन आगे चलकर ये मजदूर न बन जाए, इसपर ध्यान देने की जरूरत है आखिर देश सोने की तलाश में जो है और इनकी उम्र ही क्या है? 

chat bot
आपका साथी