खोजने पर भी नहीं मिल रहे कैथी लिपी के विद्वान, खगडिय़ा में सरकारी जमीन पर भू-माफिया का कब्जा

खगडिय़ा में खोजने के बाद भी कैथी लिपि के जानकार नहीं मिल रहे हैं। कैथी लिपि की जानकारी के अभाव का फायदा भू-माफिया उठा रहे हैं। खगडिय़ा जिले की आबादी 16 लाख से अधिक है लेकिन इस लिपि के जानकर चार से पांच हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 03:21 PM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 03:21 PM (IST)
खोजने पर भी नहीं मिल रहे कैथी लिपी के विद्वान, खगडिय़ा में सरकारी जमीन पर भू-माफिया का कब्जा
खगडिय़ा में खोजने के बाद भी कैथी लिपि के जानकार नहीं मिल रहे हैं।

खगडिय़ा [निर्भय]। राजा टोडरमल भी खगडिय़ा की मापी नहीं कर सके थे। इसलिए इसे राजस्व की ²ष्टि से फरक (अलग) कर दिया और यह फरकिया कहलाने लगा। यहां 1903 के बाद सर्वे का कोई कार्य नहीं हुआ। 2021 में सर्वे कार्य शुरू हुआ, जो आज की तारीख में पूरा नहीं हुआ है। सात नदियों, 54 धाराओं और उपधाराओं के कारण फरकिया का भूगोल उलझा हुआ है। यहां के जमीन से संबंधित अधिकांश पुराने कागजात कैथी लिपि में हैं।

अधिवक्ता अजिताभ कहते हैं- कोर्ट में बराबर कहा जाता है-जमीन के पुराने दस्तावेज का कैथी से लिप्यांतर कर ङ्क्षहदी में प्रस्तुत करें। कैथी लिपि की जानकारी के अभाव का फायदा भू-माफिया उठा रहे हैं। मालूम हो कि महान स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सहयोगी राजकुमार शुक्ला की डायरी भी कैथी में ही है। मुंगेर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रंजीत कांत वर्मा के अनुसार यह लिपि ढाई हजार वर्ष पुरानी है।

अब अंगुली पर हैं कैथी लिपि के जानकार

इस लिपि के जानकर अब अंगुली पर गिनने लायक बच गए हैं। खगडिय़ा जिले की आबादी 16 लाख से अधिक है, लेकिन इस लिपि के जानकर चार से पांच हैं। कोरोना की दूसरी लहर में कैथी लिपि के दिग्गज जानकार कातिब जनार्दन बाबू चल बसे। उनके शिष्य अनिल कुमार सिन्हा(रांको) जीवित हैं। मेडिकल रिप्रजेंटिव अमित कृष्ण (गोगरी जमालपुर) भी कैथी लिपि की बारीकी से अवगत हैं। जिला मुख्यालय स्थित चित्रगुप्तनगर की 75 वर्षीय सावित्री देवी भी कैथी की गहन जानकार हैं।

चित्रगुप्त महापरिवार कैथी लिपि के संरक्षण को आया आगे

अब चित्रगुप्त महापरिवार खगडिय़ा कैथी लिपि को बचाने आगे आया है। वर्ष की शुरुआत में कैथी लिपि अध्ययन केंद्र की स्थापना की गई। इसके संरक्षण को लेकर रणनीति तैयार हो गई थी, परंतु कोरोना की दूसरी लहर ने इस पर ब्रेक लगा दिया। अब पुन: अध्ययन केंद्र को सुचारू रूप से संचालित किया जाएगा। चित्रगुप्त महापरिवार के संयुक्त सचिव अजिताभ सिन्हा ने बताया कि दो-चार दिनों के अंदर फिर बैठक होने वाली है।

इसमें कैथी लिपि के संरक्षण, इसे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर गंभीर विचार-विमर्श होगा। सबकुछ ठीक-ठाक रहा, तो नवंबर में अध्ययन केंद्र चालू हो जाएगा। तीन माह का कोर्स फ्रेम किया गया है। सीखने के इच्छुक व्यक्ति को प्रतिमाह एक हजार रुपये देने होंगे, ताकि सिखाने वाले को पारिश्रमिक दिया जा सके। महापरिवार के अध्यक्ष अशोक नारायण कर्ण, नीलरत्न अंबष्ठ, रविशचंद्र, मुकेश कुमार,

संजीव कुमार सिन्हा, अनिल कुमार सिन्हा आदि इस अभियान में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।

मैं पहले परिजन-पुरजन को कैथी में ही पत्र लिखती थी। अब तो इसके जानकार ही नहीं हैं। इसलिए पत्र कैथी में नहीं, देवनागरी में लिखती हूं। इस लिपि के सरंक्षण का प्रयास चित्रगुप्त महापरिवार ने आरंभ किया है। इस पहल का स्वागत है। -सावित्री देवी (कैथी लिपि के जानकार)।

कैथी लिपि ढाई हजार साल पुरानी है। कैथी और गुजराती लिपि में बहुत सामानता है। इस लिपि में जाब की भी आपर संभावना है। चित्रगुप्त महापरिवार खगडिय़ा की पहल स्वागतयोग्य है। -प्रो. रंजीत कांत वर्मा, पूर्व कुलपति, मुंगेर विश्वविद्यालय

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