भगवत कथा से है बिहार के इस गांव की पहचान, सौ साल का इतिहास है गवाह, वजह जान कर सिहर उठेंगे आप

बिहार के इस गांव की पहचान भगवतकथा से है। सौ साल का इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है। हालांकि इसके पीछे दुख भरी कहानी है। साथ ही हर साल करीब तीन महीने तक गांव के लोग...!

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Fri, 23 Jul 2021 01:18 PM (IST) Updated:Fri, 23 Jul 2021 01:18 PM (IST)
भगवत कथा से है बिहार के इस गांव की पहचान, सौ साल का इतिहास है गवाह, वजह जान कर सिहर उठेंगे आप
बिहार के इस गांव की पहचान भगवतकथा से है। भगवतकथा।

बांका [बिजेन्द्र कुमार राजबंधु]। बांका और मुंगेर जिले के सीमा पर स्थित बेलहर प्रखंड के धौरी गांव में भागवत कथा किसी पर्व से कम नहीं है। यहां एक सौ साल से अधिक समय से हर वर्ष इस माह भागवत कथा का आयोजन होता है। 1500 की आबादी वाले इस गांव में इस पूजा को लेकर आषाढ़ माह से सावन तक कोई व्यक्ति लहसून -प्याज तक का सेवन नहीं करते हैं। 85 वर्षीय कैलाश ङ्क्षसह बताते हैं कि 1911 में एमपी के भिड मुरैना मठ से पहुंचे हुए कुल गुरु व्यास जी इस गांव में आए थे। उनके आदेश पर आजतक भागवत कथा सामूहिक सहयोग से ग्रामीण कराते आ रहे हैं। यहां भागवत कथा एक पर्व बन गया है। आज नवमी है। शनिवार को दशमी पर गांव भर में कुमारी कन्या पूजन होगा। इसके बाद हवन के साथ इसका समापन होगा।

खासकर कांवरिया पथ किनारे यह गांव हैं। इस कारण भागवत कथा की महत्ता और बढ़ जाती है। आस्था ऐसी है कि गांव के लगभग पुरुष एवं महिलाएं कथा को लेकर आषाढ़ माह से ही शाकाहारी भोजन करते हैं। सेवानिवृत 80 वर्षीय पेशकार उमेद प्रसाद ङ्क्षसह ने बताया कि गांव में 1911 में महामारी में 42 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद गांव पहुंचे कुलगुरु व्यासजी के आग्रह पर शुरु हुए भागवत कथा जारी है। इस कारण

इस माह में एक भी घरों में लहसून और प्याज तक वर्जित होता है।

95 वर्षीय वृद्ध योगेन्द्र प्रसाद सिंह ने बताया भागवत कथा गांव की पहचान बन गई है। सामूहिक रूप से चंदा कर इसका आयोजन दस दिनों तक होता है। गांव के बाहर रहनेवाले लोग भी कथा को लेकर गांव पहुंच जाते हैं। गिरिश प्रसाद ङ्क्षसह ने बताया कि प्रत्येक साल सावन के प्रथम दिन इस कथा का समापन होता है। ग्रामीण संजीव कुमार ङ्क्षसह ने बताया कि शनिवार को गांव की कुमारी कन्या पूजन के साथ दस दिवसीय कथा का समापन होगा। इसमें गांव की सभी कन्याएं शामिल होंगी। इस बार के कथावाचक श्यामसुंदर मिश्र एवं सहायक केशव पांडेय हैं।  

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