कहां गुम हो गई चंपा : ढूंढने निकल पड़ा पूरा भागलपुर, पौराणिक नदी का नाम नाला क्यों

1966 में नाथनगर में बने लोहे के पुल पर चंपा नाला ब्रिज नाम के साथ ही नदी नाला बन चुकी थी पर इसका स्वरूप तब पूरी तरह नहीं मिटा था।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Fri, 22 Nov 2019 08:03 AM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 08:03 AM (IST)
कहां गुम हो गई चंपा : ढूंढने निकल पड़ा पूरा भागलपुर, पौराणिक नदी का नाम नाला क्यों
कहां गुम हो गई चंपा : ढूंढने निकल पड़ा पूरा भागलपुर, पौराणिक नदी का नाम नाला क्यों

भागलपुर [अश्विनी]। अपनी धारा में पौराणिक मान्यताओं और सांस्कृतिक विरासत को सहेज सदियों से बह रही आस्था की एक नदी नाला बन गई। इससे नदी होने की पहचान छीन ली गई। इसका नाम है चंपा..चंपा नदी! सिल्क सिटी के नाम से मशहूर भागलपुर (बिहार) की नदी। सवाल एक नदी के गुम होने का है, जल-जीवन संरक्षण का है। इसलिए दैनिक जागरण ने इसके अस्तित्व और पहचान को बरकरार रखने के लिए समाचारीय अभियान छेड़ा है- कहां गुम हो गई चंपा!

वाल्मीकि रामायण से लेकर पुराण आदि ही इस नदी के अति प्राचीन अस्तित्व की गवाही दे रहे हैं। भले ही भगवान बुद्ध और भगवान वासुपूज्य इसके तट पर कभी ध्यान लगाकर बैठे हों, पर दशकों से कीचड़ में लथपथ यह नदी लोगों की जुबान पर नाले के ही रूप में चढ़ चुकी है। दुर्भाग्य ही है कि इस नदी को लोग चंपा नाला बोलते हैं।

1966 में नाथनगर में बने लोहे के पुल पर चंपा नाला ब्रिज नाम के साथ ही नदी नाला बन चुकी थी, पर इसका स्वरूप तब पूरी तरह नहीं मिटा था। 1980 तक नदी अपने अस्तित्व में थी, पर के नामकरण का असर आहिस्ता-आहिस्ता होता चला गया और सारा कूड़ा-कचरा, गाद-कीचड़ इसी में बहा-बहाकर इसे नाला ही बना दिया गया।

नदी पर टिकी थी बड़े भूभाग की अर्थव्यवस्था

इस नदी से प्राचीन अंग क्षेत्र यानी भागलपुर प्रक्षेत्र की बिहुला विषहरी की कथा जुड़ी है। मशहूर मंजूषा कला के रिश्ते भी इसी नदी की धारा से जुड़े रहे हैं। दुनिया भर में मशहूर भागलपुरी सिल्क के धागों को इसी नदी ने धो-धोकर अलग चमक दी। यह इतिहास में दर्ज है कि मौर्यकाल से ब्रिटिशकाल तक यह नदी व्यापारिक जलमार्ग थी। देश-विदेश में मशहूर यहां के कतरनी चावल की खुशबू इसी नदी के पानी की देन थी। चूंकि नदी नाला बनती चली गई, तो इसका असर खेती पर भी पड़ा और पैदावार बुरी तरह प्रभावित होती गई। यानी, एक नदी के नाले में परिवर्तित होने का जबर्दस्त असर पूरे क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक स्वरूप पर भी पड़ा।

नदी को नवजीवन मिलने तक जारी रहेगा अभियान

यह अभियान शुरू करने से पहले विशेषज्ञों, इस क्षेत्र के जानकारों, ग्रामीणों, नदी तट पर रहने वाले लोगों से बात की गई। नदी के उद्गम स्थल से लेकर उसके बिगड़ते स्वरूप के कारणों की तलाश भी। लोगों ने जो कुछ बताया और दिखा, वह झकझोर देने वाला था। पिछले दस सालों में इसमें दस लाख मीटिक टन से भी ज्यादा कूड़ा-कचरा गिराकर अस्तित्व को मिटा दिया गया। बहरहाल, अब इस नदी को बचाने के लिए समाज के लोग न सिर्फ आगे आने लगे हैं, बल्कि गांव से शहर तक जागरूकता की पहल भी शुरू हो चुकी है। यह उम्मीद की एक नई किरण है। नदी को नवजीवन मिलने तक जागरण का यह अभियान जारी रहेगा।

लेखक दैनिक जागरण भागलपुर के संपादकीय प्रभारी है।

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